शिमला, 9अप्रैल : हिमाचल में सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार को 4 माह का समय हो गया है। चुनाव से पहले राजनीतिक पर्यवेक्षक ये मान कर चल रहे थे कि स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के बाद कांग्रेस को संगठित करना बेहद मुश्किल होगा। बंपर जीत के साथ कांग्रेस 40 सीटें लेकर बहुमत में आई।
कांग्रेस हाईकमान ने जबरदस्त निर्णय लेते हुए मुख्यमंत्री के रूप में सुखविंदर सिंह सुक्खू का चयन किया। यह निर्णय कांग्रेस के अलावा भाजपा के लिए भी हैरान करने वाला था। पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी की दावेदारी को दरकिनार कर आला कमान ने “सुक्खू “को कमान सौंपी। सीएम बनने के बाद एक परिपक्व नेता की तरह “सुक्खू” ने 4 माह में कई जबरदस्त निर्णय लिए, जिसकी वजह से वो एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह द्वारा देश के 100 पावरफुल नेताओं की सूची में आंके गए है।
जानिए, क्यों हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू मात्र तीन महीने में ही बन गए ताकतवर राजनीतिज्ञ…
राजनीतिक कौशल… ये निर्णय इसलिए भी थोड़ा हैरान कर देने वाला था कि कांग्रेस में कई दिग्गज मुख्यमंत्री की दौड़ में थे। कारण था कि “सुक्खू” कभी मंत्री नहीं रहे। मगर मुख्यमंत्री बनते ही सुक्खू ने चतुराई से धीरे-धीरे योजनाबद्ध तरीके से मंत्रिमंडल के गठन में आलाकमान का विश्वास जीत लिया।
मंत्रिमंडल की शपथ से ठीक पहले अप्रत्याशित तरीके से मुख्य संसदीय सचिवों को शपथ दिलाई। एक रात पहले तक भी किसी को अंदाजा नहीं था कि मुख्य संसदीय सचिव (CPS) नियुक्त किये जा रहे है। इसके बाद मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। क्षेत्रीय व जातीय समीकरण साधते हुए मंत्रिमंडल का गठन किया। मंत्रिमंडल के विस्तार में भो वो किया जो खुद को सही लगा।
शिमला जिला को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। विरोध के बावजूद शिमला से 3 कैबिनेट मंत्री बनाए। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह को पीडब्ल्यूडी जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया। इसके अलावा अपने खास रोहित ठाकुर व अनिरुद्ध सिंह को मंत्रिमंडल में जगह दी। यही नहीं, सिरमौर से हर्षवर्धन चौहान को कैबिनेट का हिस्सा बना उद्योग व संसदीय कार्यों जैसा महत्वपूर्ण विभाग दे कर उनकी ईमानदारी, पार्टी के प्रति वफादारी व ज्ञान का पुरस्कार दिया।
मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम के अलावा जल शक्ति विभाग व परिवहन जैसे दो बड़े विभाग दिए। इसके अलावा कांगड़ा से वयोवृद्ध नेता चंद्रकुमार को मंत्रिमंडल में लिया। हालांकि अभी मंडी व बिलासपुर जिला को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। गुंजाइश रखते हुए मंत्रियों के 3 पद खाली रखे। मंझे हुए नेता की तरह वह विधानसभा अध्यक्ष पद पर कानून की पढ़ाई करने वाले कुलदीप पठानिया को मनाने में सफल हुए। क्योंकि कोई भी विधायक विधानसभा अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं था। इस तरह “सुक्खू” ने पहली बाधा को चतुराई से पार किया।
सीमेंट उद्योगों की हड़ताल… सरकार बनते ही दो बड़ी सीमेंट कंपनियों ने उत्पादन बंद कर दिया। मुख्यमंत्री पर चौतरफा दबाव था। कई दिनों की कोशिश के बाद भी बात बनती नहीं दिखी। यहां सुक्खू ने सीनियर व बुद्धिमान मंत्री हर्षवर्धन चौहान को मुश्किल के समाधान की जिम्मेदारी सौंपी। इसी दौरान सुक्खू ने पार्टी लाइन से हटकर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से भी मदद मांगी। परिणामस्वरूप सीमेंट उद्योगपतियों व ट्रक ऑपरेटरों के बीच का विवाद सुलझने में देर नहीं लगी। यह मुख्यमंत्री के रूप में उनकी पहली सफलता थी।
चुनावी वायदे… बगैर मंत्रिमंडल के ही डिप्टी सीएम को विश्वास में लेकर ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का निर्णय ले लिया। विपक्ष हमला बोलता रहा,लेकिन परवाह नहीं की। गरीब महिला को 1500 रुपए प्रति माह देने के वादे पर तेजी से काम शुरू हुआ। पशुपालकों को दूध की सही कीमत दिलवाने की दिशा में काम शुरू किया।
गोपनीयता का खौफ… यही नहीं, सीएम ने सचिवालय में अधिकारियों व कर्मचारियों को सख्त निर्देश देते हुए गोपनीयता को ध्यान में रखने की नसीहत दी । सरकार के निर्णय को लीक करने पर कठोर कार्यवाही करने का पाठ पढ़ाया। असर ये हुआ कि तबादलों से लेकर नियुक्तियों तक मीडिया या अन्य जगहों पर सरकार के निर्णय लीक होने बंद हो गए। जानकारी सिर्फ मुख्यमंत्री या संसदीय कार्य मंत्री ही देने लगे। कर्मचारियों के तबादलों में कमी आई। थोक के भाव तबादले न कर जरूरी ट्रांसफर की गई।
मानवीय संवेदनाओं भरे निर्णय… प्रदेश के निराश्रित बच्चों के लिए “सुखाश्रय योजना” के तहत सैंकड़ों बच्चों को सरकार ने गोद लेकर रहने, खाने व पढ़ाई का खर्चा उठाने का जिम्मा उठाया। बच्चों को “पॉकेट मनी” देने का निर्णय लिया। जिससे सीएम ने साफ कर दिया कि मानवीय संवेदनाओं को लेकर वह कितने गंभीर हैं। रात को देर तक सचिवालय में काम करने से आईएएस अधिकारियों पर लगाम लगी। किसी को प्रताड़ित भी नहीं किया। 6 हजार निराश्रित बच्चों को “चिल्ड्रन ऑफ़ स्टेट” के रूप में अपनाया।
27 वर्ष तक उनकी उच्च शिक्षा का प्रबंध भी किया। भूमिहीनों, अनाथों व निराश्रित को 3 बिस्वा भूमि आवंटन के साथ आवास अनुदान का भी प्रावधान किया।
सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार…. फिर बारी आई सरकारी नौकरियों की भर्ती फैले भ्रष्टाचार की लगाम कसने की। सीएम ने हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को भंग कर सबको हैरान कर दिया। भर्तियां जारी रहें, इसके लिए हिमाचल लोक सेवा आयोग के माध्यम से भर्तियां करने का निर्णय लिया।
नहीं लिया कोई यू-टर्न… 4 माह दौरान मुख्यमंत्री ने जो निर्णय लिए, उन पर यू-टर्न नहीं लिया। चाहे वह संस्थानों को डिनोटिफाइड करने का मामला हो या नए कार्यालयों को बंद करने का फरमान। पलटू मुख्यमंत्री की इमेज में पेटेंट नहीं हुए। जो अन्य नीतिगत निर्णय लिए गए, उन्हें तत्काल लागू भी किया। इसके अलावा पुलिस विभाग को चिट्टे जैसे नशे को रोकने के लिए ताबड़तोड़ छापेमारी के आदेश भी दिए। पिछले कई दिनों से चिट्टे के खिलाफ मुहिम रंग लाई। इसमें शामिल कई लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाया।
आय बढ़ाने के लिए प्रयास जारी… प्रदेश सरकार की आय को बढ़ाने के लिए नई आबकारी नीति ने सरकार को लाभ की स्थिति में ला खड़ा किया। शराब की बोतल पर सेस लगाया। ताकि आवारा पशुओं के लिए गऊशालाएं बनाई जा सके। वाटर सेस को लेकर पंजाब व हरियाणा के मुख्यमंत्रियों से वार्तालाप बढ़ाया। समय-समय पर केंद्र सरकार से प्रदेश के हकों की बात उठाई। ठेकों का नवीनीकरण नहीं किया बल्कि नीलामी से करीब 500 करोड़ का फायदा लिया।
अफसरशाही पर जताया भरोसा…
अमूमन सरकार बदलते ही अफसरशाही के धड़ाधड़ तबादले शुरू हो जाते हैं। सरकार का तकरीबन चार महीने का वक्त इसी में व्यर्थ हो जाता है। लेकिन सुक्खू ने इस पर समय की बर्बादी नहीं की। बल्कि इन्हीं चार महीनों में खुद को साबित कर दिखाया है। अचानक तबादलों से अफसरशाही भी रुष्ट होती है।
खुद अफसर तक भी हैरान थे कि मुख्यमंत्री ने भरोसा जताया है। लिहाजा अफसरशाही भी कार्य के प्रति गहरी रुचि लेने लगी। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपना पहला कार्यकाल इसी अंदाज में शुरू किया था। मोदी ने पीएमओ में यूपीए-2 के दौरान अधिकारियों को नहीं हटाया।
ये भी अहम…
सुक्खू ने 11 दिसंबर 2022 को पारी शुरू कर दी, जबकि भाजपा सरकार ने 25 दिसंबर को पारी शुरू की थी। 14 दिनों में भी सुक्खू ने कई चौंकाने वाले निर्णय लिए। सबसे अहम बात ये है कि बगैर मंत्रिमंडल के विस्तार के ही सरकार को चलाने का दम भी दिखाया।
विपक्ष डि नोटिफाई संस्थानों को लेकर लगातार सरकार पर दबाव बनाता रहा, लेकिन सुक्खू टस से मस नहीं हुए। महज दो दिन पहले भी पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के विधानसभा क्षेत्र में दो प्राथमिक पाठशालाओं को डि नोटिफाई कर दिया। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि विपक्ष भी मान गया है कि डि नोटिफाई संस्थानों पर कुछ नहीं होने वाला।
कुल मिलाकर ये साफ है कि ऐसे ही नहीं कोई महज चार महीनों में देश का ताकतवर राजनीतिज्ञ बन जाता है।