शिमला 25 मार्च : जिला की आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी धग्याना बीते करीब चार वर्षों से बदहाली के आंसू बहा रही है। आजतक विभाग के अधिकारियों द्वारा इसकी कोई सुध नहीं ली गई है। औषधालय भवन जर्जर हालत में हो चुका है, जोकि कभी भी धराशायी हो सकता है।

आलम यह है कि डिस्पेंसरी में डाॅक्टर और फार्मासिस्ट के पद भी बीते तीन वर्षों से रिक्त पड़े हुए हैं। डिस्पेंसरी में दवाईयां भी उपलब्ध नहीं है और स्टाफ के नाम पर केवल एक मिड वाइफ कार्यरत है। बता दें कि डिस्पेंसरी के भवन का लोकापर्ण पूर्व काबीना मंत्री विद्या स्टोक्स द्वारा 12 दिसंबर, 2016 को किया गया था। हैरत है कि छः वर्षों में भवन जर्जर हालत में हो चुका है।
जिला परिषद सदस्य सुभाष कैंथला ने बताया कि भवन का निर्माण नारकंडा की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए नहीं किया गया है। निर्माण एजेंसी बीएसएनएल द्वारा भवन की छत पर लैंटर डाला गया, जो कि जलवायु के अनुरूप व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि नारकंडा क्षेत्र में काफी बर्फ गिरती है। जिसके चलते इस भवन की छत पर लोहे की चादरें लगाई जानी चाहिए थी। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा इस मुद्दे को विभाग के निदेशक, उप निदेशक और जिला आयुर्वेद अधिकारी के समक्ष कई बार उठाया जा चुका है, परंतु किसी भी स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हुई है।
स्थानीय पंचायत सिहल के प्रधान सुरेन्द्र भंडारी ने बताया कि ग्राम पंचायत के माध्यम से काफी प्रस्ताव पारित करके सरकार व विभाग को भेजे गए हैं। उन्होने बताया कि डिस्पेंसरी में दवाएं न होने पर लोगों को छुटपुट बीमारी के इलाज के लिए 8 किलोमीटर दूर नारकंडा जाना पड़ता है। बताया कि उद्घाटन के तीन वर्ष बाद भवन की हालत दयनीय हो गई थी, जिसकी मरम्मत का वर्ष 2019 में विभाग के अधिकारियों द्वारा प्राक्कलन तैयार करके सरकार को भेजा गया था।
उप मंडलीय आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी रामपुर डाॅ. प्रदीप शर्मा ने बताया कि भवन की दयनीय हालत बारे विभाग को अवगत करवा दिया गया है। इसके अतिरिक्त डिस्पेंसरी में फार्मासिस्ट को डेपुटेशन पर भेजने बारे भी उच्चाधिकारियों से पत्राचार किया गया है। जिला आयुर्वेद अधिकारी शिमला डाॅ. पवन जैरथ से जब इस बारे बात करनी चाही उनका मोबाइल स्विच ऑफ पाया गया।