शिमला, 13 मार्च : हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) की एक रिपोर्ट में खुलकर इस बात का जिक्र किया गया है कि इंसान के शरीर में तेजी से प्लास्टिक पहुंच रहा है। इस कारण कैंसर (Cancer) जैसी घातक बीमारी के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं। देश में ऐसे हालात के बावजूद पहाड़ी प्रदेश ‘हिमाचल’ में सिंगल यूज प्लास्टिक (Single Use Plastic) पर प्रतिबंध की फाइल ठंडे बस्ते में नजर आ रही है।

दरअसल, चंद माह पहले सरकार ने एक व्यवस्था बनाई थी। इसके मुताबिक 80 जीएसएम (80GSM) से नीचे के नॉन वोवन कैरी बैग (Non Woven Carry Bags) व अन्य प्रोडक्ट मार्केट में नहीं बेचे जाएंगे। लेकिन हैरान कर देने वाली बात ये है कि इस फरमान की सरेआम धज्जियां उ़ड़ाई जा रही हैं।
एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को लेकर सरकार के 13 विभागों को कार्रवाई की शक्तियां प्राप्त हैं। इसके लिए विशेष टास्क फोर्स (special task force) भी गठित की गई थी। लेकिन मौजूदा में बाजारों में 80 जीएसएम से कम नॉन वोवन प्लास्टिक कैरी बैगस के साथ-साथ शादी समारोहों में प्लास्टिक के गिलास व चम्मच का उपयोग बगैर डर के किया जा रहा है।
2022 में बने नियम के मुताबिक दूध व दही के पैकेट पर मैन्युफैक्चरर का नाम, प्लास्टिक की वैल्यू को प्रिंट करना अनिवार्य बनाया गया था। हैरान कर देने वाली बात है कि राज्य में थैली बंद दूध व दही पर ये प्रिंटिंग नहीं की जा रही है। जानकारों ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर सिंगल यूज प्लास्टिक से बने प्रोडक्ट को बेचने वाले 3-4 थोक विक्रेता ही होते हैं। ये विक्रेता चंद चांदी के सिक्कों के लालच में खुदरा व्यापारियों तक इसे पहुंचाते हैं।
यदि विभाग कार्रवाई करता है तो गाज भी खुदरा व्यापारियों पर ही गिरती है। सवाल उठता है कि नियम स्पष्ट होने के बावजूद भी सिंगल यूज प्लास्टिक लोकल मार्किट में इतने धड़ल्ले से कैसे बिक रहा है। ऐसे में सरकारी विभागों की थोक विक्रेताओं से कथित मिलीभगत की भी आशंका जाहिर की जा रही है।
ये बोले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अध्यक्ष…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने इस गंभीर मसले पर हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष संजय गुप्ता से बात की। बोर्ड के चेयरमैन ने इसे गंभीर बताया। उन्होंने कहा कि हाल ही में कार्यभार संभाला है। जल्द ही अधीनस्थ अधिकारियों व कर्मचारियों को इस दिशा में सख्त कदम उठाने के निर्देश जारी करेंगे।
80 जीएसएम क्यों….
दरअसल, बाजार में नॉन वोवन कैरी बैग के अलावा कई ऐसे प्रोडक्ट हैं, जो पर्यावरण के साथ-साथ प्रदूषण से तो खिलवाड़ कर ही रहे हैं, साथ ही इसका असर इंसानों पर भी पड़ना शुरू हो गया है। 80 जीएसएम की शर्त लागू करने के पीछे ये तर्क था कि इसे इस्तेमाल करने वाला जल्दी से कैरी बैग को नहीं फैंकता है, इसका इस्तेमाल बार-बार होता है। वहीं, कम मोटाई के नॉन वोवन बैग सड़कों के अलावा नदी-नालों व गंदगी इत्यादि के ढेर में नजर आते हैं। चूंकि ये नॉन वोवन बैग नष्ट नहीं होते, लिहाजा लंबे अरसे तक हानिकारक बने रहते हैं।
80 जीएसएम की मोटाई से बनने वाला कैरी बैग आम तौर पर बार-बार इस्तेमाल होता है। हालांकि इस समय की आवश्यकता प्लास्टिक पर सौ फीसदी प्रतिबंध लगाने की है, लेकिन इसके पीछे वाद-विवाद शुरू कर दिया जाता है। 80 जीएसएम के नॉन वोवन बैग प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के पीछे एक सही कदम था, ताकि आने वाले समय में इसे शून्य किया जा सके।
आपको बता दें कि पहले दुकानदारों का तर्क ये भी रहता था कि बायोडिग्रेडेबल बैग (biodegradable bags) महंगे होते हैं, लेकिन पर्यावरण हितैषी बैगस (eco friendly bags) के दाम या तो बराबर हो चुके हैं या फिर कम भी हैं। देखना होगा कि आने वाले समय में हिमाचल का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (H.P pollution control board) क्या ठोस कदम उठाता है।