ऊना, 27 फरवरी : उत्तर भारत में सुविख्यात बाबा बड़भाग सिंह की तपोस्थली लोगों की आस्था का प्रतीक सुप्रसिद्ध मैड़ी मेला/ होला मुहल्ला मेला इस वर्ष 27 फरवरी से 10 मार्च तक आयोजित किया जा रहा है। मेले में लाखों की तादाद में बाहरी राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली इत्यादि से श्रद्धालु आते हैं। वहीं मेले से सम्बन्धित कई लोक मान्यताएं प्रचलित हैं।
कहते हैं कि यह पवित्र स्थान सोढी संत बाबा वड़भाग सिंह (1716-1762) की तपोस्थली है। 300 वर्ष पूर्व बाबा राम सिंह के सुपुत्र संत बाबा बड़भाग सिंह करतारपुर पंजाब से आकर यहां बसे थे। अहमद शाह अब्दाली के 13वें हमले से क्षुब्ध होकर बाबा जी को मजबूरन करतारपुर छोड़कर पहाड़ों की ओर जाना पड़ा। कहा जाता है कि उस समय मैड़ी गांव में दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। यदि कोई व्यक्ति गलती से इस स्थान में प्रवेश करता था तो उसे प्रेतात्मा अपने कब्जे में लेकर उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देकर प्रताड़ित करती थी या पागल व बीमार बनाकर अपने वश में कर लेती थी। इस स्थान पर बाबा बड़भाग सिंह जी ने घोर तपस्या की। प्रेतात्मा ने उन्हें भी तंग करके अपने वश में करने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाई।
वहीं, एक बार बाबा बड़भाग सिंह की आत्मा शरीर को त्याग कर स्वर्गलोक चली गई और काफी दिनों तक उनका शरीर बिना आत्मा के पड़ा रहा। बाबाजी ने अपने परिवारजनों को ऐसी अवस्था में किसी भी प्रकार के डर से दूर रहने के लिए कहा था। लेकिन परिवारजनों ने उनके शरीर का अंमित संस्कार कर दिया। परिवार बाबाजी की मौत से काफी दुखी रहता था। वहीं होली के दिन बाबाजी मैड़ी में निवास करते हैं और प्रेतात्माओं से सताए हुए लोगों को प्रेतात्माओं से मुक्ति दिलाते हैं।
मैड़ी से एक किलोमीटर दूर चरणगंगा है, जिसका भी अपना एक विशेष महत्व है। मान्यता है कि जब बाबा बड़भाग सिंह बाल्यकाल में ही अध्यात्म को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही सर्वोपरि मानते थे। एक दिन बाबाजी घूमते हुए मैड़ी गांव में स्थित दर्शनी खड्ड जिसे वर्तमान में चरणगंगा के नाम से जाना जाता है, वहां पहुंचे और यहां स्नान करने के उपरान्त मैड़ी में एक बैरी वृक्ष के नीचे अन्र्तध्यान हो गए। मैड़ी का यह स्थान बिल्कुल वीरान था। दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी।
एक दिन बाबाजी व नाहर सिंह का आमना-सामना हुआ तो अपनी घोर तपस्या के कारण नाहर सिंह को बैरी वृक्ष के नीचे पिंजरे में बंद कर लिया। नाहर सिंह ने स्वतंत्र होने के लिए बाबाजी से प्रार्थना की। जिसपर बाबाजी ने उन्हें इस शर्त पर रिहा किया कि वह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार व प्रेत आत्माओं से ग्रसित लोगों का उपचार कर ठीक करेंगे। साथ ही निसंतान लोगों को फलने-फूलने का आशीर्वाद देंगे। यह बैरी का पेड़ आज भी वहां मौजूद है और लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर माथा टेकते हैं। चरणगंगा के पानी को चमत्कारिक माना जाता है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से हर प्रकार के चर्म रोग एवं दैविक रोगों का विनाश होता है।
लोकमान्यता के अनुसार इस स्थान पर एक बहुत बड़ा पिशाच रहता था, जो मायावी शक्तियों से भरपूर होने के कारण स्थानीय लोगों को बहुत परेशान करता था। एक दिन बाबाजी उसी रात मंजी पर अकेले लेटकर उस पिशाच का इंतजार करने लगे। आधी रात होने पर पिशाच उन्हें डराने लगा। कभी प्रकट होता तो कभी अदृश्य हो जाता, तो कभी बाबाजी के साथ छेड़खानी करता। बाबाजी ने उसे शक्ति परीक्षण के ललकारा तो पिशाच अपनी मायावी शक्तियों से बाबाजी को मंजी सहित उठाने का प्रयास करने लगा, लेकिन वह सफल न हो पाया। अंत में पिशाच को बाबाजी की असीम दिव्य शक्तियों का आभास हो गया और उसने बाबाजी के समक्ष समर्पण कर दिया।
होली के दिन यहां झंडा निशान साहिब चढ़ाया जाता है। इस गुरूद्वारे में अनेकों श्रद्धालु माथा टेकने के लिए समूचे उत्तर भारत-पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से आते हैं। मैड़ी मेला में आने वाले श्रद्धालु बाबा बड़भाग सिंह व चरणगंगा के बाद दो अन्य धार्मिक स्थलों कुज्जासर तथा वीर नाहर सिंह में माथा टेकते हैं। होली की रात को डेरा बाबा बड़भाग सिंह में प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत अपने-अपने गंतव्यों की ओर प्रस्थान कर जाते हैं।