बिलासपुर, 25 फरवरी : देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपनी संस्कृति व मठ-मंदिरों के लिए विश्वभर में जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश की ऊंची पहाड़ियों में न जाने कितने प्राचीन मंदिर व शक्तिपीठ विद्यमान है, जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु नत मस्तक होने पहुंचते हैं। ऐसा ही एक शक्तिपीठ मां नैनादेवी का दरबार है, जहां माता सती के नयन गिरे थे। जिस कारण यहां का नाम नैनादेवी पड़ा।

शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर के समीप कपाली कुंड का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। जिसमें फव्वारा व टाइल लगाकर इसका सौन्दर्यकरण किया जाएगा। कुंड को दोबारा पानी से भरकर सरोवर का रूप प्रदान किया जाएगा।
शक्तिपीठ के इस कपाल कुंड से जुड़ी कथा
शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर में बने कपाली कुंड का संबंध एक खतरनाक राक्षस महिषासुर से है। प्राचीन मान्यता अनुसार देवताओं व राक्षसों के बीच युद्ध हुआ। महिषासुर ने हर जगह तबाही मचाना शुरू कर दिया था। जिसपर सभी देवताओं ने इकट्ठा होकर अपनी शक्तियों को एकजुट कर मां भगवती नैनादेवी को शस्त्र प्रदान किए व मां नैनादेवी ने महिषासुर का वध कर उसका कपाल यानी सिर धड़ से अलग कर दिया। महिषासुर की इच्छा पर उसके कपाल को मंदिर के समीप ही दफन कर दिया गया था। तभी से इस कुंड को कपाली कुंड के नाम से जाना जाता है।
वहीं मंदिर न्यास द्वारा इस कुंड को पानी से भरा जाता है ताकि जो भी श्रद्धालु माता नैना देवी के दर्शनों के लिए आएगा वह पहले इस कुंड में स्नान करेगा। ताकि उसके सभी दुख दूर हो जाएं व माता का आशीर्वाद प्राप्त कर सके। कुछ वर्षों से कुंड के जीर्णोद्धार के चलते इसमें पानी नहीं भरा जाता है।
मंदिर के पुजारी प्रदीप शर्मा व दीपक भूषण शर्मा ने कहा कि कपाली कुंड का अपना प्राचीन महत्व है। इस कुंड में जहां माता नैना देवी ने राक्षस महिषासुर का वध कर उसका कपाल दफन किया था, वहीं इस कुंड में स्नान करने से किसी श्रद्धालु पर बुरी आत्माओं का प्रभाव, जादू टोना व महिलाओं का बांझपन दूर हो जाता है। उनकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती है।
श्रद्धालु द्वारा इस कुंड में स्नान करने के पश्चात मां नैना देवी के दर्शन करने से माता रानी खुश हो जाती है और उनकी कृपा हमेशा भक्त पर बनी रहती है। श्रद्धालु पहले की भांति इस सरोवर में स्नान कर अपने दुखों को दूर कर सकेंगे।