शिमला, 18 फरवरी : हिमाचल प्रदेश में पुलिस विभाग (Police Department) हमेशा ही कानून व ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर स्टाफ की कमी की दुहाई देता है। ऐसे में अगर विधायक सुरक्षा कर्मी (PSO) लेने से इनकार करते हैं तो न केवल सरकारी खर्च बचता है, बल्कि इन कर्मचारियों की तैनाती रूटीन पुलिसिंग में भी की जा सकती है।

ये बात, इस कारण चर्चा में हैं, क्योंकि सुक्खू सरकार (sukhu government) के मुख्य संसदीय सचिव व अर्की के विधायक संजय अवस्थी, कसौली से युवा विधायक विनोद सुल्तानपुरी, घुमारवीं के विधायक राजेश धर्माणी के अलावा भाजपा के शीर्ष व तेज तर्रार नेता डाॅ. राजीव बिंदल को हराकर पहली बार नाहन के विधायक बने अजय सोलंकी ने पीएसओ लेने से इनकार किया है।
दरअसल, विधायकों को निजी सुरक्षा कर्मी मुहैया करवाए जाते हैं। पुलिस विभाग द्वारा अमूमन विधायकों के अनुमोदन पर पसंद के दो कर्मियों की तैनाती की जाती है। विधायक के साथ मूवमेंट पर सुरक्षा कर्मियों को टीए-डीए का लाभ भी दिया जाता है।
चारों विधायकों का निर्णय सराहनीय माना जा रहा है। इसके पीछे कुछ भी वजह रही हो, लेकिन सरकारी खर्च तो बचेगा ही साथ ही कर्मियों की तैनाती फील्ड में की जा सकती है। विगत के मामलों को देखा जाए तो कई मर्तबा राजनीतिज्ञों के पीएसओ भी नेता व आम लोगों के बीच दरार बनते हैं।
जयराम ठाकुर (Jairam Thakur) के कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री के सुरक्षा कर्मियों से पुलिस अधीक्षक के बीच का टकराव बड़े पैमाने पर सुर्खियों में आया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि चारों विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में दो-दो अतिरिक्त पुलिस कर्मियों की तैनाती ट्रैफिक व्यवस्था में की जाएगी। ट्रैफिक की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। ये एक सामान्य समस्या है।
कुल मिलाकर दिलचस्प बात ये भी है कि विधायकों ने स्वेच्छा से पीएसओ लेने से इनकार किया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू (CM Sukhwinder Singh Sukhu) ने सुख आश्रय कोष में अंशदान का आह्वान किया था, लेकिन सुरक्षा को लेकर कोई आग्रह विधायकों से नहीं किया था।
उल्लेखनीय है कि अर्की व घुमारवीं के विधायकों ने पीएसओ लेने से इनकार किया था, इसे बाद में नाहन व कसौली के विधायकों ने भी इसे फाॅलो किया।