शिमला, 12 फरवरी : लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ (Digital Media) व सोशल मीडिया के बीच का भ्रम दूर हो सकता है। दरअसल, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (H.P Information and Public Relations Department) ने एक अप्रैल 2023 से हिमाचल प्रदेश न्यूज वेबसाइट विज्ञापन और मान्यता व प्रत्यायन नीति 2022 ( Himachal Pradesh News Website Advertisements & Recognition & accreditation Policy 2022) को लागू करने का निर्णय लिया है।
आम लोग इस बात का अंतर नहीं समझ पाते थे कि वास्तव में डिजिटल मीडिया क्या है। न्यूज वेबसाइट व सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी अलग-अलग पहलू हैं। प्रोफेशनल न्यूज वेबसाइट (Professional News Websites) सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को केवल टूल के तौर पर लेती है। असल में प्रकाशक (Publisher) का स्वामित्व वेबसाइट पर ही होता है, जबकि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का असल स्वामित्व उन कंपनियों का है, जो यूजर्स को मंच प्रदान कर रही है।
नीति के मुताबिक न्यूज वेबसाइट को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है। ‘ए’ श्रेणी में वेबसाइट के हर माह न्यूनतम 50 हजार यूनिक विजिटर होने चाहिए। ‘बी’ श्रेणी में ये आंकड़ा 35 से 50 हजार का है। ‘सी’ श्रेणी में न्यूनतम 20 हजार यूनिक विजिटर (unique visitor) होने चाहिए। विभाग ने न्यूज वेबसाइट को इम्पैनल (empanel) करने के लिए 15 मार्च 2023 तक आवेदन भी आमंत्रित किए हैं।

दरअसल, ऑनलाइन जानकारी हासिल करने वाला ये अंतर नहीं समझ पाता है कि जो सूचना उस तक पहुंच रही है, वो वास्तव में प्रमाणिक स़्त्रोत (authentic source) से आ रही है या नहीं। सोशल मीडिया को भी मुख्य धारा का मीडिया समझा जा रहा था। संभवतः इसी भ्रम को दूर करने के मकसद से सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (Information and Public Relations Department) ने नीति को लागू करने का फैसला लिया है। विभाग के इस कदम से वो न्यूज पोर्टल वर्गीकृत (Classified) हो जाएंगे, जो बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर को जुटाने के बाद प्रमाणित जानकारी पाठकों या सोशल मीडिया यूजर्स तक पहुंचा रहे हैं।
पिछली सरकार के कार्यकाल में 200 के करीब वेबसाइटस को इम्पैनल किया गया था। इसमें एक-दो महीने में केवल विज्ञापन ही जारी किया जाता था। इसके अलावा पोर्टल मालिकों (Portal Owners) को अन्य सुविधा नहीं दी जाती थी। इस व्यवस्था में तमाम वेबसाइटस एक ही तराजू में तोली जा रही थी।
अहम बात ये थी कि 80 से 85 प्रतिशत वेबसाइटस के खाते में विजिटर्स होते ही नहीं थे। साथ ही प्रकाशित समाचारों का स्त्रोत भी नहीं होता था।
ये सवाल उठता रहा है कि क्या प्रदेश में कॉपी-पेस्ट का सिस्टम (copy paste system) हावी है। हालांकि, नीति को लेकर अधिसूचना पिछली सरकार के कार्यकाल में ही हो गई थी। लेकिन क्रियान्वयन नहीं हो पाया था। मौजूदा सुक्खू सरकार ने चंद महीने में ही नीति को लागू करने का निर्णय लिया है।
खास बात ये भी है कि सुक्खू सरकार ने जयराम सरकार की अधिसूचना व घोषणाओं को डि नोटिफाई किया है, लेकिन इस नीति को अक्षरशः लागू करने का निर्णय लिया है। इसकी वजह साफ है कि इस नीति की नितांत आवश्यकता थी।
सुक्खू सरकार के इस कदम से उन डिजिटल मीडिया पब्लिशर्स (digital media publishers) को मदद मिलेगी, जो डिजिटल युग में पाठकों के बीच एक विश्वसनीयता कायम करने में सफल हुए हैं।
क्या है यूनिक विजिटर…
न्यूज पोर्टल पर यूनिक विजिटर का काउंट तय अवधि में किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि एक व्यक्ति चार बार अलग-अलग खबरों को क्लिक करता है तो उसका काउंट एक ही माना जाएगा। ट्रैफिक वेब पोर्टल (traffic web portal) का एक सामान्य शब्द है।
देखना ये होगा…
विभाग के सामने नीति को लागू करने में कुछ चुनौतियां भी आ सकती हैं। मसलन, यूनिक विजिटर का काउंट कौन से स्रोत से प्रमाणित समझा जाएगा। हालांकि, विभाग ने गुगल एनालेटिक्स (google analytics) का जिक्र किया है।
इम्पैनलमेंटके लिए विभाग द्वारा गठित इम्पैनलमेंट व रेट एडवाइजरी कमेटी (rate advisory committee) को आवेदनों की पड़ताल बारीकी से करनी होगी। बड़ा सवाल ये भी है कि पारदर्शिता रह पाएगी या नहीं।