नाहन, 10 फरवरी : आप जब रक्तदान करते हैं, तो आप वास्तव में लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells), प्लेटलेट्स (Platelets) और प्लाज्मा (Plasma) सहित कई जीवन रक्षक घटक दे रहे होते हैं। संपूर्ण रक्तदान के बाद, आपके रक्त को प्रयोगशाला में भेजा जाता है, जहां ब्लड को नीचे की तरफ घुमाया जाता है और इसमें मौजूद घटकों को अलग किया जाता है। लाल रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा को पृथक किया जाता है, ताकि रोगी की आवश्यकता के मुताबिक उसे ब्लड का घटक उपलब्ध करवाया जा सके।

हैरानी वाली बात ये है कि तकरीबन 300 करोड़ की लागत से मेडिकल कॉलेज का भवन का निर्माण तो किया जा रहा है, लेकिन रक्त के घटको को अलग करने वाला ब्लड कम्पोनेंट सेपरेटर (Blood Component Separator) उपलब्ध नहीं है। बता दे कि मेडिकल कॉलेज को बने भी करीब 6 साल हो चुके हैं।
हालांकि,ये मामला एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने पहले भी उठाया था, लेकिन इस बार रक्तदाताओं ने ही गंभीर मसले को विधायक अजय सोलंकी के सामने उठाया है। इसमें ड्रॉप्स ऑफ़ हाॅप ग्रुप (drops of hope group) ने विधायक से ब्लड को पृथक करने वाले उपकरण को जल्द से जल्द उपलब्ध करवाने का आग्रह किया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुविधा के शुरू होने से प्लाज्मा, प्लेटलेट्स, सफेद रक्त कोशिका व पीआरबीसी की उपलब्धता भी अस्पताल में हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि मरीजों में प्लेटलेट्स (Platelets) कम होने की बीमारी काफी सामान्य हो चुकी है, ऐसे में ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर को जल्द से जल्द लगाया जाना चाहिए।
मौजूदा में ब्लड तो उपलब्ध करवा दिया जाता है, लेकिन सीधे ही एक मरीज को रक्त दे दिया जाता है, जबकि मरीज को एक विशेष घटक की ही आवश्यकता होती है। हालांकि, तमाम घटक चढ़ाए जाने से मरीज को कोई नुकसान नहीं है, लेकिन ये तय है कि तीन घटक (Component) बर्बाद हो जाते हैं। जानकारों का कहना है कि प्रयोगशाला में ब्लड में मौजूद घटको का परीक्षण करने के लिए हेमाटोलॉजी विश्लेषक को भी बदलने का समय आ चुका है।
ड्रॉप्स ऑफ़ हाॅप ग्रुप के संचालक ईशान राव ने कहा कि ब्लड के तीन घटक मरीजों को नहीं मिल पाते हैं, इसके लिए मरीजों को आईजीएमसी (IGMC) या पीजीआई चंडीगढ़ (PGI Chandigarh) जाना पड़ता है।

वैश्विक महामारी के दौरान भी असंख्य मरीजों को प्लाज्मा की आवश्यकता पड़ी थी। इसके लिए मरीजों को यमुनानगर, चंडीगढ़, पंचकुला व मोहाली का रुख करना पड़ रहा था। सरकारी अस्पताल में प्लाज्मा (Plasma), प्लेटलेट्स इत्यादि को चढ़ाने तक की सुविधा नहीं है, जबकि आधुनिक चिकित्सा में ये बेसिक सुविधाएं मेडिकल काॅलेज में उपलब्ध होनी चाहिए।
जानकारों का कहना है कि मेडिकल काॅलेज में दो विभागों में पीजी कोर्स के लिए एमसीआई (MCI) की टीम निरीक्षण कर चुकी है। लेकिन ब्लड बैंक में कंपोनेंट सेपरेटर उपलब्ध न होने की वजह से मंजूरी में रोड़ा अटक सकता है, लिहाजा विभाग को तत्काल ही ये सुविधा उपलब्ध करवाकर न केवल मरीजों को लाभ देने, बल्कि पीजी कोर्स का मार्ग सभी प्रशस्त करना चाहिए।
उधर, डाॅ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज की ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ. निशी जसवाल ने कहा कि इस मामले को सरकार के समक्ष भेजा गया था। उम्मीद है कि तीन से चार महीने में मशीन उपलब्ध हो जाएगी। उन्होंने कहा कि करीब 80 से 90 लाख के बजट को सचिवालय स्तर पर मंजूरी मिलने की जानकारी है।