नाहन, 05 फरवरी : आरक्षी अमरिंदर सिंह….। निवासी : मोहल्ला गोविंदगढ़ नाहन। उम्र : 32 साल। पुलिस विभाग में नियुक्ति : 14 फरवरी 2013। हिमाचल पुलिस के साइबर क्राइम में परिचित काॅप। डीजीपी डिस्क अवार्ड : एक। सीसी सर्टिफिकेट : 40
बचपन में अक्सर बच्चे डाॅक्टर, इंजीनियर (Engineer) या पायलट (Pilot) इत्यादि बनने के सपने देखते हैं, लेकिन आरक्षी अमरिंदर सिंह ने पिता को खाकी वर्दी में देखा। इसके बाद क्राइम शो (Crime Show) देखने का शौक हो गया। स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही अमरिंदर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के सपने देखने लगा। 2013 में पुलिस में आरक्षी का पद मिल गया।

2014 में साइबर क्राइम से निपटने की जिम्मेदारी मिली। इसके बाद 8 साल से पीछे मुड़कर नहीं देखा है। क्राइम को अंजाम देने में बदमाश कितना भी शातिर क्यों न हो, लेकिन कांस्टेबल अमरिंदर ये बखूबी जानता है कि कोई भी गुनाह परफेक्ट नहीं होता। इसी को मूल मंत्र मानकर केस की इंवेस्टिगेशन में तब तक सांस नहीं लेता, जब तक अपराधी सलाखों के पीछे न पहुंच जाए। बता दें आरक्षी अमरिंदर सिंह के पिता छठी आईआरबी बटालियन (6th IRB Battalion) कोलर में सब इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) खासकर दक्षिण क्षेत्र में साइबर क्राइम (Cyber Crime) का पेंच अड़ जाए तो जांच कर रही टीम को आरक्षी अमरिंदर सिंह की याद आती है। यकीन मानिए, सिरमौर के अलावा नालागढ़, बद्दी में ऑनलाइन फ्राॅड (online fraud) के साथ-साथ जघन्य अपराध के 66 वारदातों को क्रैक करने में आरक्षी अमरिंदर सिंह की अहम भूमिका रही है। वो लैपटाॅप पर बैठकर अपराधियों की मूमेंट तो भांपता ही है, साथ ही फ्रंट मोर्चे पर भी बदमाशों को दबोचने में माहिर है।

2018-19 में हरियाणा (Haryana) के मेवात में एक अपराधी की गिरफ्तारी के बाद फायरिंग का सामना भी करना पड़ा था। हरियाणा का ये इलाका कुख्यात अपराधियों के लिए पहचाना जाता है। 2014 से साइबर क्राइम को क्रैक करने के मोर्चे पर अमरिंदर डटा हुआ है।
66 ऑनलाइन व जघन्य अपराधों में कांस्टेबल अमरिंदर सिंह की भूमिका की वजह से 150 के करीब आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचना पड़ा। तकरीबन 75 लाख रुपए की रिकवरी हुई, इसमें 7 मामले ब्लाइंड मर्डर (blind murder) के अलग हैं।
तत्कालीन डीजीपी ने दिया था टास्क….
हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (Director General of police) एसआर मरडी ने आपराधिक गतिविधियों के लिए संवेदनशील क्षेत्र बीबीएन में एक वारदात को क्रैक करने का टास्क भी दिया था। इसमें गोली कांड को अंजाम देकर डकैती की गई थी। हालांकि, आरक्षी को 6 महीने के लिए बीबीएन भेजा गया था, लेकिन पांच महीने में ही लौटना पड़ा था, क्योंकि पांवटा साहिब थाना के अंतर्गत हत्या के एक जघन्य अपराध में जांच टीम को अमरिंदर की आवश्यकता पड़ गई थी। 10 दिन के भीतर पांवटा साहिब पुलिस ने मामला क्रैक कर लिया था।
जघन्य अपराधों को क्रैक करने में आरक्षी ने कुल्लू व मंडी में भी अपनी सेवाएं प्रदान की। 2019 में पुलिस महानिदेशक के आदेश पर बद्दी पुलिस के कर्मियों को साइबर क्राइम से जुड़ा प्रशिक्षण भी प्रदान किया। अलग-अलग पुलिस रेंज में भी आरक्षी अमरिंदर की सेवाएं प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए ली जाती हैं।

66 मामलों का लेखा-जोखा….
ब्लाइंड मर्डर के 7 मामले क्रैक हुए। अपराधियों को हरियाणा, बिहार, दिल्ली व पंजाब से दबोचा गया। 19 मामले डकैती, चोरी व अपहरण से जुड़े हुए थे। एक वारदात में डकैती के दौरान हत्या भी की गई थी। ये मामला, नालागढ़ में सामने आया था। वारदात में लुटेरों ने स्कूल के प्रिंसिपल की हत्या कर दी थी।
बद्दी में बंदूक की नोक पर 7 लाख की लूट की वारदात में 15 आरोपियों को हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, गोवा व दिल्ली से काबू किया गया था। किडनैपिंग Kidnapping case) व रेप के 8 मामले क्रैक हुए। नाहन थाना में रेप की एक वारदात में आरोपियों ने मोबाइल भी बंद कर रखे थे। आईपीसी की धारा-407 के तीन मामलों में कालाअंब के एक मामले में अनट्रेस रिपोर्ट बन गई थी। पुलिस अधिकारियों ने अमरिंदर को जांच का हिस्सा बनाया। हरियाणा से आरोपी काबू कर लिए गए।

धोखाधड़ी के 18 मामलों में अमरिंदर की भूमिका के कारण ऑनलाइन फ्राॅड भी पकड़े गए। नाहन पुलिस थाना में दर्ज एक मामले में अमरिंदर ने एक खास तरीका ईजाद किया था। पहले लड़की बनकर फेसबुक एकाउंट क्रिएट किया। इसके बाद आरोपी का विश्वास जीत लिया। मोबाइल नंबर मिलने पर लोकेशन ट्रेस हो गई।
ये मिल चुके हैं अवार्ड….
मात्र 9 साल की सेवाओं में आरक्षी अमरिंदर सिंह को पुलिस विभाग ने बेशुमार ईनामों से नवाजा है। पुलिस विभाग में सेवा शुरू करने के महज तीन साल बाद ही विभाग ने डीजीपी डिस्क अवार्ड (DGP Disk Award) से अलंकृत किया। वो अब तक सीसी क्लास-1 के 10 प्रशस्ति पत्र ले चुका है। सीसी क्लास-2 का एक प्रशस्ति पत्र मिला है। इसके अलावा क्लास-3 के 29 प्रशस्ति पत्र मिले हैं। कुल 13,150 रुपए का कैश रिवार्ड भी अमरिंदर को मिल चुका है। यानि, कहें तो 66 मामलों को क्रैक करने में भूमिका निभाने पर विभाग ने औसतन एक या दो बार अमरिंदर को पुरस्कृत किया है।
क्या बोले….
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में आरक्षी अमरिंदर सिंह ने कहा कि अपराध को अंजाम देने वाला खुद को कितना भी शातिर समझ ले, अगर वो टैक्नोलाॅजी (technology) का इस्तेमाल कर वारदात को अंजाम देता है तो पुलिस भी टैक्नोलाॅजी का इस्तेमाल कर सकती है। केवल जांच को एक दिशा देने की आवश्यकता होती है। इसके बाद तार जुड़ते रहते हैं। आरक्षी ने कहा कि वो अपने तमाम वरिष्ठ अधिकारियों व सहकर्मियों का भी धन्यवाद करना चाहते हैं, क्योंकि अक्सर उनसे मार्गदर्शन भी प्राप्त होता है।
‘‘ तो अब आप समझ गए होंगे समाचार के शीर्षक के मायने।’’