मंडी, 02 फरवरी : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब खिलाड़ी मैडल जीतते हैं, तो ओलंपिक विजेता खिलाड़ियों पर सरकार करोड़ों रुपए लुटाती हैं। उन्हें उच्च पदों पर सरकारी नौकरियां भी दी जाती हैं। इसके विपरीत शायद अक्षम खिलाड़ियों की सरकार की नजरों में कोई वैल्यू नहीं होती है या फिर इन विशेष खिलाड़ियों की उपलब्धि सरकार की नजरों में कोई मायने नहीं रखती है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मंडी जिले की एक दिव्यांग ओलंपिक विजेता खिलाड़ी बीते 8 वर्षों से अपने हक का इंतजार कर रही, लेकिन सरकार के पास शायद इस दिव्यांग खिलाड़ी को देने के लिए कुछ भी नहीं है।
बात मंडी जिले के सरकाघाट उपमंडल के भडरेसा गांव की 22 वर्षीय दिव्यांग खिलाड़ी पलक भारद्वाज की हो रही है। 2015 में पलक ने अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुए स्पेशल ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और रोलर स्केटिंग में देश को दो सिल्वर मैडल दिलाए। पलक जब वापस अपने देश पहुंची तो सरकार ने इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। पलक के पिता भीम सिंह भारद्वाज ने 2015-2017 तक अपनी बेटी के हक की लड़ाई लड़ी और मीडिया के माध्यम से सरकार तक अपनी बात पहुंचाई। तत्कालीन सरकार ने ऐसे खिलाड़ियों को 25 हजार प्रति मैडल की दर से प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय लिया, जिसे पलक के परिजनों ने पूरी तरह से ठुकरा दिया।

भीम सिंह भारद्वाज ने बताया कि पड़ोसी राज्यों ने अपने प्रदेश के विशेष खिलाड़ियों पर लाखों रुपये प्रोत्साहन राशि के तौर पर दिए लेकिन हिमाचल सरकार ऐसा नहीं कर पाई। पिता का कहना है कि इस बारे में वे केंद्रीय युवा कार्यक्रम व खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से भी मिल चुके हैं। लेकिन 1 साल बीत जाने के बाद भी उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है। इन्होंने सरकार से मांग उठाई है कि उनकी बेटी को सम्मानजनक प्रोत्साहन राशि और सरकारी नौकरी दी जाए, ताकि वो भी पूरे सम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर सके।
वहीं, स्पष्ट रूप से बोलने में असमर्थ पलक भी यही चाह रही है कि सरकार उसे उचित मान-सम्मान दे। पलक ने बताया कि उसे सरकारी नौकरी की जरूरत है ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो सके। गौरतलब है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और प्रदेश के मुखिया सुखविंदर सिंह सुक्खू ने निराश्रित बच्चों, वृद्धजनों, दिव्यांगों के लिए दरियादिली दिखाई है। अब देखना होगा कि सरकार की नजरों में इन खिलाड़ियों के प्रति रवैये में बदलाव आता है या नहीं।