बिलासपुर, 30 जनवरी : हिमाचल की सबसे बड़ी कृत्रिम झील गोविंद सागर में लगातार मछली उत्पादन घट रहा है,जो चिंता का सबब बना है। वर्ष 2014 से पहले झील में लगातार मछली का उत्पादन बढ़ रहा था। मगर कोलडैम निर्माण के बाद गोविंद सागर झील के जल स्तर के उतार-चढ़ाव व प्राकृतिक फीड कम होने के साथ फोरलेन निर्माण के दौरान डंपिंग ने उत्पादन पर प्रतिकूल असर डाला। हर साल 50 टन तक मछली उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा रही है।

गौरतलब है कि बीते 3 सालों में गोविंद सागर झील में हुए मछली उत्पादन पर नजर डाली जाए तो वर्ष 2020-21 में 342 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। साल 2021-22 में उत्पादन 271 मीट्रिक टन रह गया। वहीं दिसंबर 2022 तक भी मछली उत्पादन में काफी गिरावट दर्ज की गई, उत्पादन केवल 170 मीट्रिक टन ही रह गया है।
मछली उत्पादन में गिरावट को समझने के लिए केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान बैरकपुर कोलकत्ता से भी एक टीम ने निरीक्षण किया था। जिसकी रिपोर्ट में कोलडैम निर्माण, किरतपुर से नेरचौक फोरलेन निर्माण के दौरान झील में डंपिंग को वजह बताया गया था।
मिट्टी व बारिश में कमी के चलते झील के जलस्तर में गिरावट आई, जिससे मछलियों की फीड व ब्रीडिंग में कमी दर्ज की गई। मात्स्यिकी निदेशालय हिमाचल प्रदेश के निदेशक सतपाल मेहता ने कहा कि प्रदेश के पांच जलाशयों पौंगडैम, कोलडैम, गोविंद सागर झील, चमेरा व रंजीत सागर झील में से केवल गोविंद सागर झील ही है,जहां 2014 से उत्पादन में कमी दर्ज की गई है।
उन्होंने बताया कि मछली उत्पादन में कमी केवल सिल्वर कार्प वेरायटी की मछली में ही देखने को मिल रही है। रोहू, मृगल व कतला सहित अन्य प्रजाति की मछलियों के उत्पादन पर खासा असर देखने को नहीं मिला है। मेहता का कहना है कि केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान की स्टडी के आधार पर गोविंद सागर झील में मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस बार 70 एमएम के करीब एक करोड़ बीज डाला गया है। ताकि वह झील में सर्वाइव कर सके।