नाहन, 23 जनवरी : हिमाचल प्रदेश की पांवटा घाटी के साल के जंगल में टाइगर (Tiger) की कदमताल के सबूत मिले हैं। शमशेर जंग नेशनल पार्क (Shamsher Jung National Park) के करीब टाइगर के पगमार्क (पदचिन्ह) मिलने से वन्य प्राणी महकमा उत्साहित है। साथ ही वन्य प्राणी प्रेमी भी हर्षित है। टाइगर के पग मार्क (Foot Print) कई मायनों में दुर्लभ है। हालांकि इलाके के लोग कहते हैं कि 80 के दशक तक टाइगर इलाके में आता था, लेकिन इसके बाद टाइगर की मौजूदगी को लेकर साक्ष्य नहीं मिले।

ये अलग बात है कि इलाके में टाइगर आता-जाता रहता होगा। विभाग ने चंद रोज पहले ही इस बात की तसल्ली कर ली थी कि पग मार्क वास्तव में टाइगर के हैं या नहीं। टाइगर के पदचिन्ह मिलने की बात को गोपनीय रखने की कोशिश भी की गई, ताकि शानदार वन्य प्राणी की सुरक्षा को लेकर कोई खतरा पैदा न हो। विभाग के ट्वीट के बाद ही टाइगर के पग मार्क मिलने की बात सामने आई।
पहाड़ी प्रदेश में टाइगर की मौजूदगी दुर्लभ है। केवल पांवटा घाटी ही एक ऐसा इलाका है, जहां टाइगर के आने की संभावना रहती है। हालांकि वन्य प्राणी विभाग ने टाइगर के पग मार्क मिलने के बाद ट्रैप कैमरे भी इंस्टॉल कर दिए हैं, ताकि टाइगर की मूवमेंट को लेकर अधिक जानकारी जुटाई जा सके। हालांकि यह कंफर्म नहीं है कि टाइगर इस समय हिमाचल की सीमा में मौजूद है या नहीं। ऐसी भी उम्मीद है कि वो वापस लौट चुका होगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क (Raja Ji National Park) से ही टाइगर यमुना नदी को पार करने के बाद हिमाचल की सीमा में दाखिल हुआ होगा। गौरतलब यह भी है कि यमुना नदी का जलस्तर कम होने के बाद ही हाथियों का झुंड भी हिमाचल की सीमा में दाखिल होता है। इस बार टाइगर भी हिमाचल पहुंचा है।
खास बात यह है कि वन्य प्राणी विभाग रेणुका सफारी के लिए टाइगर के जोड़ों को लाने के लंबे अरसे से जद्दोजहद कर रहा है, लेकिन टाइगर कुदरती तरीके से ही सिरमौर की धरती पर दशकों बाद दोबारा आना शुरू हुआ है। ऐसा भी धारणा है कि रियासत काल के समय में टाइगर कटासन देवी के मंदिर तक हर साल आता था। माता के दरबार में शीश नवा कर लौट जाता था।
बड़ा सवाल… टाइगर के दशकों बाद हिमाचल की सीमा में दाखिल होने को लेकर भी कई सवाल है। पहला यह कि दशकों बाद टाइगर 2023 में ही क्यों आया। इसको लेकर वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि पांवटा घाटी के जंगलों के साथ-साथ नेशनल पार्क में टाइगर का भोजन या कहें शिकार प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो गया है। इसी कारण टाइगर ने आना शुरू किया होगा। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि शिकार के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने की बात ही टाइगर को इलाके की तरफ आकर्षित करते हैं।
ये बोले APCCF … एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत करते हुए वन्य प्राणी विभाग के अतिरिक्त मुख्य प्रधान सचिव अनिल ठाकुर ने कहा कि टाइगर के पगमार्क की तस्वीर क्लिक हुई है। इस बात की तस्दीक हो चुकी है कि जंगल में मिले पग मार्क टाइगर के ही है। उन्होंने कहा कि पूरी संभावना है कि यमुना नदी का जलस्तर कम होने की वजह से ही टाइगर आसानी से हिमाचल में प्रवेश कर गया
। उन्होंने कहा कि फिलहाल यह पक्की जानकारी नहीं है कि टाइगर इस समय पांवटा घाटी में ही मौजूद है या नहीं। अलबत्ता यह खुशी की बात है कि टाइगर ने हिमाचल की तरफ रुख किया है। उन्होंने कहा कि राजाजी नेशनल पार्क के साथ-साथ सिंबल वाला नेशनल पार्क (Simbal Wala National Park) के लिए भी टाइगर की कदमताल अच्छा संकेत है। उन्होंने कहा कि टाइगर को संरक्षण के लिए उठाए जा रहे कदम को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
ऐसा भी माना जाता है…. ऐसा भी माना जाता है कि टाइगर की मूवमेंट अपने मूल स्थान से उस समय होती है, जब आबादी बढ़ जाए। ऐसी स्थिति में टाइगर के कुनबे में शिकार को लेकर भी कॉम्पिटिशन बढ़ जाता है। शिकार की तलाश में वह नए ठिकानों की तलाश शुरू कर देता है।
पांवटा घाटी में वन्य प्राणी की खासियत… हिमाचल प्रदेश में पांवटा साहिब घाटी वन्य प्राणियों के लिए एक शानदार शरणस्थली बन गई है। प्रदेश में सबसे पहले किंग कोबरा की मौजूदगी के सबूत भी इसी घाटी में मिले। किंग कोबरा (King Cobra) की साइटिंग के 2 साल से भी कम वक्त में टाइगर का आना एक शानदार संकेत है।
उल्लेखनीय यह भी है कि पहाड़ी प्रदेश में हाथियों का झुंड भी केवल इसी घाटी में ही स्पॉट होता है। हालांकि हाथी किसानों के खेतों में तबाही भी बड़े स्तर पर मचाने लगे हैं। धीरे-धीरे हाथियों का झुंड नाहन से करीब 10 किलोमीटर दूर तक भी आना शुरू हो गया है।