चंबा, 16 दिसंबर : गुरबत की यह दास्तां एक ऐसे बेबस पिता की है, जिसने महज एक साल के भीतर दो मासूम बच्चों को खो दिया। विडंबना देखिए, मौजूदा में 13 साल की बेटी भी पीजीआई (PGI Chandigarh) में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही है। चौथा बेटा पांचवी कक्षा में पढ़ रहा है। सबसे बड़े बेटे को दिल की बीमारी थी।
दिहाड़ीदार पिता ने इलाज के लिए हर संभव कोशिश की। बेटे के निधन के आंसू सूखे भी नहीं थे कि दूसरे नंबर की बेटी भी अचानक बीमार होने के बाद चल बसी। एक साल से भी कम समय में दो बच्चो के निधन से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। दो बच्चो के चले जाने के बाद परिवार गम से उबर ही रहा था कि तीसरी संतान किरण भी अचानक बीमार हो गई।
हालांकि 13 वर्षीय बेटी किरण के उपचार के लिए कुलदीप सिंह ने पहले भी मदद की गुहार लगाई थी। इसके बाद 10 से 12 लाख रुपए का इंतजाम भी हो गया, लेकिन हाल ही में जब कुलदीप सिंह को पता चला कि हार्ट ट्रांसप्लांट में 25 लाख का खर्च आएगा तो उसके पांव तले की जमीन खिसक गई। लिहाजा दोबारा मसीहा की तलाश में निकला है।
चंबा जिला की गेहरा पंचायत की मासूम बच्ची किरण पहले ही बीमारी के कारण दो भाई- बहनों को हमेशा के लिए खो चुकी है। खुद भी PGI में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही है। किरण हार्ट की गंभीर बीमारी से पीड़ित है। बेबस पिता हर मुमकिन कोशिश कर रहा है कि घर के चिराग को बुझने से बचा सके।
पिता कुलदीप सिंह का कहना है कि बेटी का इलाज पीजीआई (PGI Chandigarh) में चल रहा है। हर महीने वो जो भी कमाते है, वो राशि तीन-चार बार चंडीगढ़ जाने में ही खर्च हो जाती है। डॉक्टरों ने हार्ट ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) करने की बात कही है, जिसमें करीब 20 से 22 लाख का खर्च आएगा। उनके पास इसके लिए पैसे नहीं है।
#HP : एक साल में खोए दो मासूम बच्चे, तीसरी बेटी भी लड़ रही जिंदगी की जंग
एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से फोन पर बातचीत में कुलदीप सिंह ने कहा कि 10 से 12 लाख जमा हुए तो उसने मदद भेजने से इंकार कर दिया था, लेकिन अब पता चला है कि 25-27 लाख तक का खर्च आएगा।
कुलदीप सिंह ने कहा कि ताउम्र की बचत पहले ही दो बच्चों के इलाज पर खर्च हो गई थी। बावजूद इसके उनकी जान नहीं बच सकी। पिता ने रुंधे गले से बताया कि उनके पास अब बेटी के इलाज के लिए पैसे नहीं है। पिता ने बच्ची का जीवन बचाने के लिए दानी सज्जनों से सहयोग की अपील की है।
बच्ची के पिता ने बताया कि वे दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं, लेकिन उससे भी उनकी बच्ची के इलाज का खर्च और घर चलाना दूभर हो गया है। उनके पास अब के इलाज के लिए माकूल धन नहीं है। लोगों की मदद से ही उनकी नन्ही सी बच्ची को नवजीवन मिल सकता है। पिता का कहना है कि वह पहले ही अपने दो बच्चों को खो चुका है अब नन्ही बच्ची किरण ही उसका एक मात्र सहारा है। यदि आप बच्ची के इलाज में एक पिता की मदद करना चाहते है, तो आप इस माध्यम से पैसे भेज सकते हैं…
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