नाहन, 09 दिसंबर : हिमाचल प्रदेश में 14वीं विधानसभा की तस्वीर साफ हो चुकी है। सिरमौर का पच्छाद विधानसभा क्षेत्र ‘हाॅट सीट’ के तौर पर देखा जा रहा था। इसकी एक वजह ये थी कि ये हलका भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप का गृह निर्वाचन क्षेत्र है। दूसरा ये कि कांग्रेस के दिग्गज नेता गंगूराम मुसाफिर ने बगावत कर हुंकार भरी थी।
चुनाव परिणाम के आंकड़े इस बात की साफ तौर पर तस्दीक कर रहे हैं कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप की साख को आजाद उम्मीदवार गंगूराम मुसाफिर ने बचाया है। इसमें राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी के सुशील कुमार भृगु ने भी आहुति डाली है। 2019 के विधानसभा चुनाव की तुलना की जाए तो भाजपा का ग्राफ 40.85 प्रतिशत से गिरकर 34.52 प्रतिशत रह गया है।
2017 के चुनाव में भाजपा का ग्राफ 54.26 प्रतिशत था। अगर कांग्रेस प्रत्याशी दयाल प्यारी की बात की जाए तो वो हार कर भी वोट प्रतिशतता में बढ़ोतरी दर्ज करने में सफल रही है। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 21 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। कांग्रेस के टिकट पर 28.25 प्रतिशत वोट प्राप्त किए हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर कांग्रेस को बगावत का सामना न करना पड़ता तो पार्टी का ग्राफ 50 प्रतिशत का आंकड़ा भी पार कर सकता था। दयाल प्यारी को 28.25 प्रतिशत वोट पड़े तो मुसाफिर ने 21.46 प्रतिशत पर कब्जा किया।
राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी के सुशील कुमार भृगु ने भी 13.2 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। ऐसी प्रबल संभावना है कि भृगु ने भाजपा की तुलना में कांग्रेस के खेल को ज्यादा खराब किया। रीना को 21,215 वोट पड़े तो दयाल प्यारी ने 17,358 वोट हासिल कर दूसरा स्थान हासिल किया। तीसरे स्थान पर मुसाफिर को 13,187 वोट पड़े। भृगु ने 8113 पर कब्जा किया। आशीष कुमार व अजय सिंह ने क्रमशः 543 व 568 वोट प्राप्त किए। नोटा पर 466 ने बटन दबाया। कुल मिलाकर ये तय है कि अगर कांग्रेस व भाजपा में आमने-सामने की भिडंत होती तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप की लाज नहीं बचती।
गौरतलब है कि कांग्रेस में आकर दयाल प्यारी मात्र सवा 7 प्रतिशत वोट बैंक बढ़ाने में कामयाब रही, क्योंकि वो आजाद उम्मीदवार के तौर पर भी उप चुनाव में 21 प्रतिशत वोट हासिल कर पाई थी। इसमें बड़ा हिस्सा भाजपा का था।