शिमला, 08 दिसंबर : हिमाचल में भाजपा चुनाव में लगभग पूरी तरह परास्त हुई है। केंद्रीय नेताओं की बड़ी-बड़ी रैलियां व टिकट आबंटन का फार्मूला भाजपा के लिए आत्मघाती सिद्ध हुआ। पूरे प्रदेश में भाजपा के करीब 21 बागियों ने चुनाव को प्रभावित किया। कृपाल परमार व प्रधानमंत्री की वायरल वीडियो का संदेश भी मतदाताओं में गलत गया। दो मंत्रियों के हलके बदलने से वो दोनों भी हार गए।
नालागढ़ व देहरा में भाजपा ने अपने उम्मीदवारों को टिकट नहीं दी। नालागढ़ में कांग्रेस से आए लखविंद्र राणा भाजपा टिकट पर चुनाव हारे तो देहरा में होशियार सिंह ने रमेश ध्वाला को हरा कर भाजपा की टिकट आबंटन की नीति पर सवालिया निशान लगाए। धर्मशाला में जीत के दावेदार विशाल नैहरिया का टिकट काट दिया गया। कुछ सीटें ऐसी रही, जहां भाजपा बहुत कम मार्जिन से हारी।
नड्डा, धूमल व जयराम गुटों में बंटी भाजपा को मंडी जिला के अलावा अन्य जिलों में मतदाताओं ने बुरी तरह नकार दिया। आपसी फूट के चलते भी भाजपा के कई उम्मीदवार चुनावी वैतरणी को पार करने में असफल रहे। इसके अलावा व्यक्तिगत छवि के कारण भी उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा।
हिमाचल की जनता ने राष्ट्रीय मुद्दों को दरकिनार कर उस दल को बहुमत दिया, जो प्रदेश में उनके दुख-दर्द को ज्यादा प्राथमिकता पर हल करना चाहती है।
कांग्रेस ने पूरे चुनाव में स्थानीय मुद्दों को हथियार बनाया। यहां तक कि केंद्रीय नेता प्रियंका गांधी ने भी हिमाचल की ज्वलंत समस्याओं पर ही पूरा प्रचार केंद्रित रखा। हिमाचल के चुनाव में युवाओं ने कांग्रेस को भरपूर समर्थन दिया। उसका सबसे बड़ा कारण केंद्र सरकार द्वारा अग्निवीर योजना को लागू करना माना जा रहा है।
हिमाचल के लोग फौज की नौकरी को सबसे अधिक वरीयता देते रहे हैं। कई परमवीर चक्र इस प्रदेश ने प्राप्त किए हैं। यह मुद्दा पूरे प्रदेश में युवाओं के सिर चढ़कर बोला। आक्रोशित युवाओं ने सरकार के खिलाफ मतदान किया।
इसके अलावा महंगाई, ओपीएस, सरकारी रोजगार में कमी भाजपा की हार के कारण बने ही बने। उत्तराखंड में चुनाव जीतने के बाद भाजपा अति उत्साहित हो गई थी। वह उत्तराखंड की जीत के बाद ही राग अलापने लगी थी कि प्रदेश में रिवाज बदलेगा। मगर उत्तराखंड व हिमाचल की सामाजिक परिस्थितियों में बेहद अंतर है। हिमाचल के लोग काफी शांत व समझदार हैं।
प्रधानमंत्री (Prime Minister) हिमाचल से जुमलेबाजियों में ही प्यार जताते रहे, मगर उन्होंने कभी भी हिमाचल को कोई बड़ा वित्तीय पैकेज अनाउंस नहीं किया। इस चुनाव में जनसभाओं के दौरान भी मोदी ने स्थानीय मंदिरों, नदियों, खान-पान व भाषाओं का जिक्र कर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया, मगर जनता इन सब बातों में नहीं आई।
प्रदेश में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद कर्ज लेकर प्रदेश सरकार के कर्मचारियों को एरियर की किस्त दी गई। यही हाल पेंशनर्स के साथ किया गया। कुछ पेंशनर्स इसलिए भी नाराज थे कि वो उम्र के इस पड़ाव पर बैठे हैं कि किसी भी समय संसार को अलविदा कह सकते हैं, उनके एरियर का भुगतान एकमुश्त होना चाहिए था।
इसके अलावा ये भी आरोप लगते रहे कि प्रदेश सरकार में आईएएस लाॅबी सरकार के निर्णयों को प्रभावित करती है, जिसके चलते कई बार जयराम ठाकुर को कई मामलों में यू टर्न लेना पड़ा। हालांकि, मुख्यमंत्री ने कई अच्छे कार्य भी किए, मगर उन्हें भुनाने में भाजपा असफल साबित हुई।