रिकांगपिओ, 16 नवंबर : हिमाचल प्रदेश में सर्दियां शुरू होते ही सेब के बगीचे को चिलिंग आवर्स की दरकरार होती है। इसके अलावा सर्दियों में पौधों की काट-छांट, पौधों में तौलिया बनाने से लेकर खाद भी आवश्यक होती है। बगीचे में आवश्यक कार्य के मद्देनजर बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र शारबो (किन्नौर) के सेब विशेषज्ञ डॉ. अरुण नेगी पीरोमाथ्स से विशेष चर्चा की गई।
डॉ. नेगी ने बताया कि हाल ही में किन्नौर में हुई बर्फबारी व बारिश सेब की फसल के लिए लाभदायक है। बर्फबारी के बाद सेब के बगीचे में चिलिंग आवर्स की शुरुआत हुई है। उन्होंने बताया कि सेब के पौधों को लगभग 1000 से 1600 घंटे 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान चाहिए होता है। अगर तापमान पौधे की बढ़ोतरी के समय 21 से 24 डिग्री तक रहेगा तो आने वाले साल में सेब की अच्छी पैदावार होने की पूरी उम्मीद रहती है।
सर्दियां शुरू होते ही सेब के पौधों में काट-छांट का कार्य शुरू हो जाता है, जो सेब की अच्छी पैदावार को बनाए रखने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब के पेड़ अत्याधिक ठंड के कारण जम जाते हैं। ऐसे में कटाई व छंटाई के कार्य करने से पेड़ों की टहनियों के टूटने, सूखने, कैंकर व अन्य बीमारियों का खतरा बना रहता है। इसलिए अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के बागवानों को अपने बगीचों में सेब के पौधे की प्रूनिंग फरवरी के अंत से लेकर रस चढ़ने से 10 दिन पहले तक यह कार्य पूरा करना चाहिए। निचले क्षेत्रों में जहां ठंड ऊंचे क्षेत्रों की अपेक्षा कम रहती हो वहां पुर्निग का कार्य दिसंबर माह के बाद शुरू कर सकते है।
उन्होंने बताया कि बागवान अपने-अपने बगीचे में तौलिए बनाने का कार्य शुरू कर सकते है। इसके अतिरिक्त खाद डालने का कार्य भी शुरू किया जा सकता हैं। नेगी ने बताया कि दिसम्बर और जनवरी के महीने में गोबर की खाद के साथ-साथ पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा का प्रयोग करें। संभव हो सके तो गोबर की खाद का ही उपयोग करना चाहिए। अगर बागवान रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं तो पहले मिट्टी की जांच कराएं। जांच के अनुसार आवश्यकता हो तो ही पौधों में रासायनिक खाद डालें। मुख्य रासायनिक खाद दिसंबर व जनवरी माह में डालनी चाहिए।
वहीं सेब विशेषज्ञ डॉ. अरुण नेगी ने यह भी बताया कि क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं परीक्षण केंद्र शारबो में अब तक 300 से अधिक बागवानों को सेब के पौधे से संबंधित जानकारियां मुहैया करवाई जा चुकी है। हिमाचल के दूरदराज क्षेत्रों से बागवान व्हाट्सएप के माध्यम से भी जानकारी ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि सेब की पैदावार किन्नौर में कम हो रही है। इस में बढ़ोतरी के लिए बागवानों को नई वैज्ञानिक विधियों को अपनाना होगा।