नाहन, 9 नवंबर : हिमाचल प्रदेश की राजनीति में सरदार रतन सिंह एक पहचान रही है। इसका कारण ये भी है कि वो अल्पसंख्यक समाज से ताल्लुक रखते थे। साथ ही पांवटा साहिब जैसे ऐसे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, जहां एक जाति विशेष के वोट बैंक की जंजीरों को तोड़ना आसान नहीं था।
खैर, दिवंगत नेता सरदार रतन सिंह का पोता हरप्रीत सिंह रतन अचानक ही चर्चा में आ गया। बुधवार को हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अलावा तमाम पदों की सदस्यता से इस्तीफा देने का ऐलान कर डाला। बाद दोपहर उन्होंने दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में अपने समर्थकों सहित भाजपा की सदस्यता ग्रहण की।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अल्प संख्यकों के लिए कुछ नई योजनाएं लेकर आ रहे हैं। उन्होंने जेपी नड्डा के स्वभाव की सराहना करते हुए कहा कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष होने के बावजूद जो मान-सम्मान उन्हें मिला, उसका उनको अंदाजा भी नहीं था। फिलहाल, उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि वो बचे दो दिनों में पार्टी प्रत्याशी सुखराम चौधरी के पक्ष में प्रचार करेंगे या नहीं।
कौन है हरप्रीत…
हरप्रीत सिंह कांग्रेस अल्प संख्यक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष के पद पर काबिज थे। आपको बता दें कि 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सिख समाज से ओंकार सिंह को टिकट दिया था, लेकिन पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। इस बार हरप्रीत सिंह भी टिकट के फ्रंट रनर थे, लेकिन शायद कांग्रेस ने 2012 को याद करते हुए गलती को नहीं दोहराया।
हरप्रीत सिंह ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले थे। बुधवार सुबह पहले उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर कांग्रेस से इस्तीफे की घोषणा की, बाद दोपहर उन्होंने जेपी नड्डा के निवास पर दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने का ऐलान किया।
वैसे तो ये विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस की गुटबाजी को लेकर 15 साल से खासा चर्चित रहता है, लेकिन इस बार कांग्रेस की गुटबाजी नजर नहीं आ रही थी। अब हरप्रीत सिंह रतन के इस्तीफे के बाद कांग्रेस प्रत्याशी किरनेश जंग की डगर को कठिन करने की कोशिश की गई है।
दिलचस्प ये है कि हरप्रीत सिंह रतन नेे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को फेसबुक पोस्ट के जरिए इस्तीफा दिया। दादा सरदार रतन सिंह की विरासत को हरप्रीत सिंह नहीं संभाल पाए। यही कारण है कि मौजूदा में हालात ऐसे पैदा हुए कि कांग्रेस को नमस्ते करने की नौबत आ गई।
उल्लेखनीय है कि सरदार रतन सिंह ने 1982 में पहला चुनाव लड़ा था। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भी 22.95 प्रतिशत वोट लेने में सफल हो गए थे। इसके बाद 1993 व 1998 में रतन सिंह चुनाव जीते। 2003 में बगावत की वजह से कांग्रेस के टिकट पर दिवंगत रतन सिंह चुनाव हार गए।
इसके बाद पौत्र हरप्रीत सिंह के पास विरासत को संभालने का मौका था। 2003 में भी सरदार रतन सिंह को 28.18 प्रतिशत वोट मिले थे। मौजूदा राजनीति में इस बात का सवाल कतई भी नहीं उठता कि परिवार इस मत प्रतिशतता को हासिल कर सकता है।
कुल मिलाकर देखना ये भी होगा कि कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाकर ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी दोबारा विधानसभा की दहलीज पार कर सकते हैं या नहीं।
दीगर है कि दिवंगत सरदार रतन सिंह के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ भी घनिष्ठ संबंध रहे हैं। 2003 में जब स्टार प्रचारकों का दौर बड़े स्तर पर नहीं हुआ करता था तो भी मनमोहन सिंह बतौर पूर्व वित मंत्री वो सरदार रतन सिंह के प्रचार में पांवटा साहिब पहुंचे थे।