शिमला, 4 नवंबर : प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। सत्ता का रास्ता इस जिला से होकर शिमला पहुंचता है। दिवंगत वीरभद्र सिंह इस बात को अच्छी तरह से जानते थे, जिसकी वजह से आज धर्मशाला प्रदेश की दूसरी राजधानी है। विधानसभा का शीतकालीन अधिवेशन कांगड़ा जिला के तपोवन में आयोजित होता है।
क्यों है कांगड़ा का राजनीतिक महत्व….
कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है। प्रदेश की 15 सबसे अधिक विधानसभा सीटें इसी जिला में हैं। जिस वजह से इस जिला का राजनीतिक महत्व प्रदेश में सबसे अलग है। जिसने कांगड़ा को फतेह कर लिया, प्रदेश में उसी की सरकार बनती है। ऐसा कांगड़ा ने हमेशा सिद्ध किया है।
जिसकी ज्यादा सीटें, उसी की सरकार….
कांगड़ा जिला प्रदेश का राजनीति नीति निर्धारक है। यह पिछले दो चुनाव में सिद्ध हो चुका है। वर्ष 2012 में जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो 15 में से 10 सीटें कांग्रेस के खाते में थी। वर्ष 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी तो कुल 15 में से 11 सीटें भाजपा ने जीत कर प्रदेश की कमान संभाली थी।
यही नहीं, इस जिला के मतदाता पाॅलटिकली प्रदेश में सबसे जागरूक हैं। ये हर बार सत्ता के विरोध में सरकार चुनते हैं, जिसका ये कई बार उदाहरण पेश कर चुके हैं। यहां जिस भी सीट पर बागी खड़े होते हैं, उसके उलट नतीजे आते हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं, जिसने अपने पाॅलिटिकल इंटरनल डैमज पर कंट्रोल कर लिया, वो यहां बहुमत पाने में सफल होता है।
इस चुनाव में क्या है 15 विधानसभा क्षेत्रों की स्थिति…
धर्मशाला कांगड़ा का जिला मुख्यालय है। यहां कांग्रेस के सुधीर शर्मा दोबारा चुनाव मैदान में हैं। हालांकि, ये उप चुनाव में गायब हो गए थे, मगर इस बार चुनावी ताल ठोक रहे हैं। कबिना मंत्री रहे सुधीर फिलहाल किसी विद्रोह का सामना नहीं कर रहे हैं। वहीं, भाजपा ने विशाल नैहरिया का टिकट काटकर इस दफा राकेश चौधरी को टिकट थमाया है। विशाल ने तो फिलहाल विद्रोह नहीं किया, मगर विपिन नैहरिया भाजपा के बागी के रूप में राकेश की चुनौती कमजोर कर रहे हैं। शेष प्रत्याशियों का यहां ज्यादा असर दिखाई नहीं दे रहा है।
जयसिंहपुर, रिजर्व विधानसभा से कांग्रेस ने यादवेंद्र गोमा को टिकट दिया है। गोमा स्व. नेता मिल्खी राम के सुपुत्र हैं। उनके पिता भी विधायक रहे हैं। वहीं, भाजपा ने एक पुलिस अधिकारी रविंद्र कुमार धीमान को टिकट थमाया है। इन दोनों के मध्य तगड़ा मुकाबला होने के आसार हैं। कैडर वोट के अलावा जिस मतदाता ने ज्यादा जोर लगाया, वह जीत का सेहरा पहनेगा।
जसवां परागपुर, यहां प्रदेश के उद्योग व परिवहन मंत्री विक्रम ठाकुर भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में हैं। वह पिछले दिनों विवादित गुरु राम रहीम के दरबार में हाजिरी लगाने को लेकर भी सुर्खियों में आए थे। इसको लेकर काफी विवाद हुआ। साथ ही उनकी नींद भाजपा के बागी व निर्दलीय चुनाव में उतरे संजय पराशर ने उड़ा रखी है। संजय पराशर को क्षेत्र में एक युवा समाज सेवी के रूप में पहचाना जाता है।
वहीं, कांग्रेस ने पूर्व कर्मचारी नेता सुरेंद्र मनकोटिया को ही फिर से टिकट दिया है। सुरेंद्र मनकोटिया पिछली बार चुनाव हार गए थे। पिछली हार का बदला लेने के लिए मनकोटिया पूरी तरह से भाजपा में वोटों के ध्रुवीकरण पर नजर टिकाए हुए हैं।
इंदौरा, इस सीमावर्ती रिजर्व विधानसभा क्षेत्र में भाजपा हमेशा दोफाड़ रही है। यहां भाजपा ने निवर्तमान विधायक रीता देवी को फिर से टिकट दिया है। लेकिन पूर्व विधायक व भाजपा के बागी मनोहर लाल धीमान उनके खिलाफ निर्दलीय लड़ रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने एक युवा व नए उम्मीदवार मलेंद्र राजन को टिकट दिया है। यहां भी भाजपा की आपसी फूट के चलते कांग्रेसी प्रत्याशी की राहें आसान नजर आ रही हैं।
देहरा, इस चुनावी हलके में चुनावी जंग सबसे रोचक है। यहां भाजपा ने अपने एसोसिएट विधायक व पूर्व में निर्दलीय जीते होशियार सिंह ठाकुर का टिकट काट दिया है। जयराम ठाकुर के खासमखास होशियार सिंह को अंत तक टिकट की आस थी। मगर भाजपा के राष्ट्रीय युवा तुर्क के दबाव में रमेश ध्वाला को ज्वालामुखी से शिफ्ट कर यहां चुनावी मैदान में उतारा है। पिछली दफा यहां से रविंद्र रवि चुनाव हार गए थे। कांग्रेस ने पेशे से डाॅक्टर राजेश शर्मा को टिकट थमाया है। यदि ध्वाला व होशियार सिंह के मतों में ध्रुवीकरण हुआ तो इस सीट पर भी सीधा फायदा कांग्रेस को मिलता दिखाई दे रहा है।
ज्वालामुखी, यहां भाजपा ने पूर्व मंत्री रहे रविंद्र रवि को देहरा से शिफ्ट कर चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने अपने पुराने उम्मीदवार संजय रतन को टिकट दिया है। यहां फिलहाल दोनों प्रत्याशियों में आमने-सामने की टक्कर है। कांग्रेस के संजय रतन यहां से वीरभद्र सिंह सरकार में विधायक चुने गए थे। उन्होंने यहां काफी विकास कार्य भी करवाए। लेकिन रविंद्र रवि के पुराने विधानसभा क्षेत्र थुरल की कुछ पंचायतें ज्वालामुखी में आने से रविंद्र रवि यहां मजबूत दिखाई दे रहे हैं।
ज्वाली से कांग्रेस के चंद्र कुमार मैदान में हैं। चंद्र कुमार वृद्ध नेता हैं। सांसद रह चुके चंद्र कुमार कांग्रेस की कई सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। वहीं, भाजपा ने अर्जुन ठाकुर का टिकट काटकर यहां से संजय गुलेरिया को मैदान में उतारा है। चंद्र कुमार साफ छवि के उम्मीदवार हैं। हालांकि उनके बेटे व पूर्व विधायक नीरज भारती काफी विवादों में रहे हैं। वहीं, संजय गुलेरिया भाजपा युवा मोर्चा से यहां तक पहुंचे हैं। आमने-सामने की भिडंत में दोनों उम्मीदवारों में जंग दिलचस्प है।
नगरोटा बगवां, कांग्रेस ने यहां पूर्व मंत्री जीएस बाली के बेटे रघुबीर बाली को चुनावी मैदान में उतारा है। परिवार का इलाके में तगड़ा रसूख है। स्व. बाली कई चुनाव जीतने के बाद पिछले चुनाव में हार गए थे। भाजपा ने बाली को हराने वाले अरुण कुमार कुक्का को दोबारा मैदान में उतारा है। यहां भी आमने-सामने की लड़ाई है। बाली को सहानुभूति लहर का भी फायदा मिलता दिख रहा है। वहीं, अरुण ने इलाके में विकास कार्य करवाने में काफी मेहनत की है। उनका ताल्लुक ओबीसी बिरादरी से है, जिसके वोटों की संख्या इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा है। यहां दोनों दलों में कोई आपसी फूट नहीं है।
कांगड़ा सदर, यहां से भाजपा ने पवन काजल को टिकट देकर पूरे बीजेपी मंडल को नाराज कर लिया है। पवन काजल कांग्रेस से भाजपा में आए हैं। हालांकि, राजनीति की शुरूआत में वह भाजपा में थे, मगर टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय जीत कर वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पिछले चुनाव में भी जीत गए थे। मगर इस बार दल बदल कर मैदान में उतरे हैं। उन्हें बगावत का सामना करना पड़ रहा है। यहां कुलभाष चंद ने काजल की नींदें उड़ाई हुई हैं। वहीं, कांग्रेस ने भाजपा में जा चुके अपने एक पूर्व विधायक सुरेंद्र काकू को वापस पार्टी में लाकर लड़ाई को रोचक बना दिया है। दोनों का ताल्लुक ओबीसी बिरादरी से है। इस सीट पर अप्रत्याशित नतीजे आ सकते हैं।
नूरपुर, यहां भाजपा ने प्रयोग करते हुए मंत्री राकेश पठानिया का हलका बदल दिया है। उन्हें फतेहपुर शिफ्ट किया गया है। नए व युवा उम्मीदवार रणबीर निक्का को क्षेत्र में तगड़ी पकड़ के चलते भाजपा ने चुनावी मैदान में उतारा है। यहां, कांग्रेस ने पूर्व मंत्री दिवंगत सत महाजन के पुत्र अजय महाजन को टिकट दिया है। महाजन पर सबसे बड़े आरोप ये लगते रहे हैं कि वह ज्यादातर समय पठानकोट में रहते हैं। वहीं, निक्का की पहचान इलाके में समाज सेवक व बाहुबली के रूप में होती है। यहां भी दोनों में तगड़ी टक्कर है।
पालमपुर, यह पहली बार है कि पालमपुर में इस दफा बुटेल परिवार को हार का डर सता रहा है। यहां भाजपा ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए गद्दी नेता व भाजपा महामंत्री त्रिलोक कपूर को टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस ने वर्तमान विधायक आशीष बुटेल को ही चुनाव में उतारा है। इस सीट पर गद्दी वोटरों की संख्या ज्यादा होने से त्रिलोक ने मुकाबले को बेहद कड़ा बना दिया है। यहां फिलहाल दोनों में से कौन जीतेगा, कहना आसान नहीं है।
शाहपुर, इस सीट पर भी भाजपा को अपनो से ही चुनौती मिल रही है। कैबिनेट मंत्री सरवीण चैधरी यहां भाजपा उम्मीदवार है। वहीं, कांग्रेस ने केवल सिंह पठानिया को टिकट दिया है। यहां भाजपा के दो बागी निर्दलीय रूप से चुनावी ताल ठोक रहे हैं। जिस वजह से सरवीण चैधरी की डगर कठिन है। हालांकि, भाजपा ने कांग्रेस के मेजर विजय सिंह मनकोटिया को भाजपा में शामिल कर सरवीण के पक्ष में लाने की कोशिश की है। धरातल पर यह कितनी सही उतर पाएगी, यह तो चुनाव ही बताएंगे।
फतेहपुर, यहां से भाजपा ने कैबिनेट मंत्री राकेश पठानिया का चुनाव क्षेत्र बदल कर मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने विधायक भवानी सिंह पठानिया को टिकट दिया है। भाजपा के बागी व पूर्व सांसद कृपाल परमार विद्रोह कर पठानिया के खिलाफ निर्दलीय मैदान में ताल ठोक रहे हैं। हलका नया होने व बागी के मैदान में उतरने से कांग्रेस के भवानी पठानिया के लिए राह उतनी आसान नहीं है, क्योंकि भाजपा उम्मीदवार राकेश पठानिया काफी जुझारू प्रकृति के हैं। देखना है कि वह कृपाल परमार की बगावत पर कितना कंट्रोल कर पाएंगे।
उधर, भाजपा के पूर्व नेता व मंत्री रहे डाॅ. राजन सुशांत को आम आदमी पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है। राजन सुशांत के राजनीतिक कैरियर के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। अगर वो जीते तो शायद आम आदमी पार्टी में वो हिमाचल में अपना अस्तित्व कायम करने में कामयाब होंगे। अगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा तो उनके राजनीतिक कैरियर का शायद यह अंतिम चुनाव हो सकता है। इस कारण उन्होंने भी जीतने के लिए पूरी ताकत झौंक रखी है।
बैजनाथ, ये रिजर्व विधानसभा है। यहां से कांग्रेस ने किशोरी लाल को टिकट थमाया है। वहीं भाजपा से मुल्ख राज मैदान में हैं। आम आदमी के प्रमोद चंद व बहुजन समाज के अजय कुमार भी यहां से चुनावी मैदान में हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस के किशोरी लाल व बीजेपी के मुल्ख राज के मध्य है।
सुलह, यह एक ऐसी सीट है, जहां कांग्रेस को बगावत का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस ने यहां टिकट बदला है। जगदीश सिपहिया को कांग्रेस ने पूर्व विधायक जगजीवन पाल का टिकट काट कर मैदान में उतारा है, जिससे रुष्ट होकर जगजीवन पाल निर्दलीय ही मैदान में कूद गए हैं। वह कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है। वहीं, विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार को भाजपा ने टिकट दिया है। विपिन परमार के लिए यहां मुकाबला थोड़ा आसान होता नजर आ रहा है।