नाहन, 03 नवंबर : उत्तराखंड की सीमा पर पांवटा साहिब विधानसभा (Paonta Sahib Assembly Seat) क्षेत्र में घमासान मचा हुआ है। भाजपा से बगावत कर दंगल में उतरे दो प्रत्याशी अपनी जीत के लिए नहीं, बल्कि ऊर्जा मंत्री (Power Minister) को हराने के लिए पसीना बहा रहे हैं।
दरअसल, ये विधानसभा क्षेत्र गिरिआर व गिरिपार क्षेत्रों में विभाजित है। आज भोज की 14 पंचायतों से मनीष तोमर ने भाजपा से बगावत कर चुनावी ताल ठोकी हुई है, जबकि गिरि आर से ऊर्जा मंत्री की अपनी ही बिरादरी से रोशन लाल चौधरी भी चुनावी मैदान में हैं। अटकलें हैं कि अगर भाजपा के बगावतियों में से एक ही मैदान में कूदता तो भी सुखराम चौधरी (Sukhram Chaudhry) के पक्ष में माहौल बन सकता था। लिहाजा, तोमर व चौधरी दोनों ही मैदान में उतर गए।
बाहती बिरादरी से तीसरे उम्मीदवार सुनील कुमार चौधरी मैदान में हैं, लेकिन ये साफ नहीं है कि क्या उनकी मंशा भी ऊर्जा मंत्री को हराने की है या नहीं। बिरादरी के मतों का विभाजन होने से भाजपा प्रत्याशी को नुकसान हो सकता है। हलके में सिख व मुस्लिम बिरादरी भी प्रभाव रखती है। बिरादरी के वोट भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
बता दें कि पांवटा साहिब सीट पर 9 उम्मीदवार दंगल में हैं। उधर, आम आदमी पार्टी के युवा प्रत्याशी मनीष ठाकुर भी इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। कांग्रेस छोड़कर मनीष ने आम आदमी पार्टी का दामन थामा था।
ये भी खास…
पांवटा साहिब निर्वाचन क्षेत्र में बाहती बिरादरी का प्रभुत्व रहा। 1990 से बात की जाए तो भाजपा ने फतेह सिंह को टिकट दिया, वो हिमाचल निर्माता (Founder Of Himachal) के बेटे कुश परमार (Kush Parmar) को हराकर विधायक बन गए। इसके बाद से बाहती समुदाय पर ही भाजपा दांव खेलने लगी। हालांकि, 1993 के चुनाव में फतेह सिंह हार गए थे। कांग्रेस के मौजूदा प्रत्याशी किरनेश जंग ने जनता दल के टिकट पर 12.02 प्रतिशत वोट लेने में सफल हुए थे।
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1998 में भाजपा ने टिकट बदलकर बाहती बिरादरी के सुखराम चौधरी को दे दिया। समुदाय से फतेह सिंह ने भी हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर जंग में छलांग लगा दी। चुनाव में भी बाहती समुदाय के वोट विभाजित हुए थे। सुखराम चौधरी व फतेह सिंह के मतों को जोड़ा जाता तो बाजी भाजपा के हाथ में थी। बेशक ही अंतर मामूली रहता।
बाहती समुदाय में दरार की वजह से कांग्रेस के रतन सिंह ने बाजी मार ली थी। सरदार रतन सिंह 2420 मतों के अंतर से जीते थे। 2003 में कांग्रेस की जबरदस्त फूट के कारण कांग्रेस के रतन सिंह को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में बाहती बिरादरी ने एकजुट होकर सुखराम चौधरी को समर्थन दिया। परिणाम ये हुआ कि सुखराम चौधरी ने लोकतांत्रिक मोर्चा के निकटतम प्रत्याशी किरनेश जंग चौधरी को 5862 मतों से हरा दिया।
कांग्रेस प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। 2007 में कांग्रेस ने जनता दल व लोकतांत्रिक मोर्चा के टिकट पर हार का सामना कर चुके किरनेश जंग चौधरी को टिकट दे दिया। चुनाव में किरनेश जंग ने सुखराम चौधरी को टक्कर तो दी, लेकिन 4862 मतों से हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में भी बाहती समुदाय सुखराम के साथ रहा।
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2012 व 2017 का अंकगणित….
2012 में कांग्रेस को बगावत (Revolt) का सामना करना पड़ा। पार्टी ने बड़ी गलती करते हुए किरनेश जंग चौधरी का टिकट काटकर सरदार ओंकार सिंह को दे दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। आजाद उम्मीदवार के तौर पर किरनेश जंग चुनाव जीत गए। हालांकि, जीत का अंतर मात्र 790 वोटों का था।
आजाद उम्मीदवार व बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों ने भी सुखराम चौधरी का खेल बिगाड़ा था। 2017 के चुनाव में कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा सुखराम चौधरी को मिला। हालांकि, कांग्रेस में बगावत नहीं हुई, लेकिन अंदरखाते काफी कुछ चला। इसके विपरीत भाजपा का कुनबा एकजुट था। सुखराम चौधरी ने एकतरफा मुकाबला जीता। जीत का अंतर 12619 मतों का था। ये अंतर ही इस बार के चुनाव का अहम भूमिका निभा सकता है।
ये तय है कि भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी 20 हजार मतों से शुरुआत करेंगे। गौरतलब है कि सुखराम चौधरी को धूमल का कट्टर समर्थक माना जाता है। इस बार भी धूमल गुट ने सुखराम चौधरी को टिकट दिलवाने में सफलता हासिल की, अन्यथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के समर्थक मदन मोहन शर्मा भी फ्रंट रनर थे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी चुनाव प्रचार करने पहुंचे।
मैदान में ये डटे…
2022 के चुनाव में 11 प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र दाखिल किया। शमशेर अली व अनिंदर सिंह ने नामांकन पत्र वापस लिए। भाजपा व कांग्रेस के अलावा मनीष कुमार ठाकुर, रोशन लाल चौधरी, अश्वनी वर्मा, रामेश्वर, सुनील कुमार चौधरी, सीमा व मनीष तोमर मैदान में हैं। राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी ने पत्रकार अश्वनी वर्मा को टिकट दिया है, जबकि बहुजमन समाज पार्टी ने सीमा को मैदान में उतारा है।
ये है पांवटा साहिब में मतदाताओं का आंकड़ा….
वैसे तो सिरमौर के पांच विधानसभा क्षेत्रों में पांवटा विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक रहती थी, लेकिन इस बार निर्वाचन क्षेत्र दूसरे स्थान पर है, क्योंकि नाहन विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाता हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक पांवटा विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 84,828 है। इसमें मतदाताओं की संख्या 40,524 है। जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 44,303 दर्ज हुई है।
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युवा मतदाता हो सकते हैं निर्णायक….
10 अक्तूबर के बाद मतदाताओं की संख्या में आंशिक वृद्धि दर्ज की गई है। 103 मतदान केंद्रों पर वोटर्स अपने प्रत्याशी को चुनने जा रहे हैं। 2074 युवा मतदाता ऐसे हैं, जो पहली बार मत का इस्तेमाल करेंगे। इसमें पुरुषों की संख्या 1123 है। 20 से 29 साल के मतदाताओं की संख्या 9246 है। ऐसे में युवा मतदाता प्रत्याशियों की हार जीत का फैसला करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
मुद्दे…
ये निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखंड (Uttarakhand) के साथ-साथ हरियाणा (Haryana) की सीमा से भी लगता है। लॉ एंड ऑर्डर की ( Law &order) चुनौती रहती है। पड़ोसी राज्यों से यमुना पार कर आपराधिक गतिविधियों की भी संभावना रहती है। इसके अलावा अवैध खनन (Illegal Mining ) को लेकर सुर्खियों में रहता है।
पांवटा साहिब कस्बा औद्योगिक (Lndustrial Area) नजरिए से भी राष्ट्रीय पटल पर पहचान रखता है। उद्योगों द्वारा सीएसआर का खर्च स्थानीय स्तर पर नहीं किया जाता। सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया का उपक्रम भी है। इस उपक्रम में स्थानीय युवाओं को रोजगार का संशय रहता है।
एक अहम बात ये है कि ये निर्वाचन क्षेत्र रेलवे लाइन से नहीं जुड़ पाया, जबकि देहरादून, यमुनानगर व सहारनपुर जैसे कस्बे नजदीक हैं। रेलवे लाइन के सर्वे की दुहाई दशकों से दी जाती रही है।
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प्रत्याशियों का सबल व निर्बल पक्ष..
भाजपा उम्मीदवार सुखराम चौधरी जनता के साथ सीधे जुड़े होने के चलते अब तक पांवटा विधानसभा में शानदार पारियां खेल रहे हैं। वह आम जनमानस को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। ग्रामीणों के छोटे-छोटे प्रशासनिक कार्यों के लिए अधिकारियों को मौके पर फोन लगा देते हैं। उनकी बिरादरी का क्षेत्र में सबसे बड़ा वोट बैंक उनके लिए चुनावी वैतरणी में पार लगाने का काम करता रहा है। वह लोगों की बात ध्यान से सुनते हैं, ओवर रिएक्ट (Over React) नहीं करते। अधिकतर विवादों से दूर रहते हैं। कम बोलना उनका मजबूत पक्ष है।
उधर, पडोसी राज्य उत्तराखंड के विकासनगर के विधायक मुन्ना चौहान भी चौधरी के समर्थन में डटे है। सीमा से सटे हिमाचल के इलाके में मुन्ना चौहान की अच्छी पकड़ बताई जाती है।
सुखराम चौधरी जब से कैबिनेट मंत्री बने, तब से लोगों को यह शिकायत रहने लगी कि वो आम लोगों से दूरी बनाने लगे हैं। कोरोना काल में लोगों का खास ध्यान नहीं रख पाए। मंत्री बनने के बाद विधानसभा क्षेत्र में कम रहे। पुराने वफादार बेवफा हो गए। इनमें से कई अलग-अलग प्रत्याशियों के साथ जाकर अंदर खाते सुखराम को निपटाने की बात कर रहे हैं।
मतदाताओं में यह फैलाया जा रहा है कि मंत्री बनने के बाद उन्होंने चंद नए समर्थकों को ही लाभ पहुंचाया। उनकी बिरादरी में सरकारी नौकरियों को लेकर भी उनके समुदाय के कुछ लोग नाराज हैं, जिसका खमियाजा उनकी बिरादरी से दो निर्दलीय उम्मीदवारों का उनके खिलाफ खड़ा होना भी माना जा रहा है। एक भाजपा कार्यकर्ता के टिकट मांगने पर मंडल से निष्कासित करना भी उनके पक्ष में नहीं जा रहा। नलकूप व हैंडपंप लगाना सुखराम की उपलब्धियों की जगह उनके लिए दुश्वारियां पैदा कर रहा है, क्योंकि मतदाता यह आरोप लगा रहे हैं कि ये सुविधा उन्होंने अपने चंद चहेतों को उपलब्ध करवाई है।
वहीं, पूर्व कांग्रेसी विधायक किरनेश जंग का सबल पक्ष एक ही है कि वो हॉली लॉज के नजदीकी हैं। मुस्लिम वोटर्स उनकी ताकत बन सकते हैं। उनका सबसे निर्बल पक्ष यह है कि वह जनता को आसानी से नहीं मिलते। उन्हें मिलने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। उनके इर्द-गिर्द एक खास जुंडली के कारण भी मतदाता उन्हें आसानी से नहीं पचा पाते।
वहीं, आम आदमी पार्टी के मनीष ठाकुर ने पिछले दो सालों में लोगों की मदद की है। कोरोना काल में वो काफी एक्टिव रहे। उनका सबसे निर्बल पक्ष बाहरी होना है। हालांकि, पिछले कई साल से उन्होंने पांवटा साहिब में अपना रैन बसेरा बसाया हुआ है, मगर विरोधी उन्हें बाहरी करार देकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं।
उम्मीदवारों की चल-अचल संपत्ति
हिमाचल की हॉट सीट पांवटा साहिब से भाजपा उम्मीदवार व कैबिनेट मंत्री सुखराम चौधरी सवा दो करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। उन पर 69 लाख रूपये का कर्ज भी है। चुनावी हल्फनामे में सुखराम चौधरी ने अपनी चल एवं अचल संपत्ति 2.25 करोड़ दर्शाई है। इसमें उनके पास एक करोड़ की चल और 1.25 करोड़ की अचल संपत्ति है। हल्फनामे के मुताबिक सुखराम की पत्नी के नाम 27.76 लाख की चल संपत्ति है।
उनके बेटों के नाम क्रमशः 19.67 लाख, 1.54 लाख और 6.17 लाख दर्ज हैं। अचल संपत्ति में सुखराम के पास कृषि व रिहायशी भवन हैं। सुखराम ने कुल 69 लाख का लोन लिया है। उन्होंने हिमाचल विधानसभा से 45 लाख का हाउस लोन, एसबीआई पांवटा साहिब से 12.34 लाख का हाउस लोन और महिंद्रा फाइनेंस से 11.70 लाख का कार लोन उठाया है। सुखराम ने चालू वित्तीय वर्ष में 16.16 लाख का आयकर भरा है।
पांवटा साहिब से कांग्रेस ने इस बार फिर करनेश जंग को प्रत्याशी बनाया है। 65 वर्षीय करनेश जंग पहले भी विधायक रह चुके हैं। करोड़पति प्रत्याशियों की श्रेणी में वह भी शुमार हैं। उनकी पत्नी भी करोड़पति है। करनेश जंग के परिवार की चल एवं अचल संपत्ति 11.54 करोड़ है। निर्वाचन आयोग को दिए गए हल्फनामे में करनेश जंग ने अपनी चल संपत्ति 1.30 करोड़ और पत्नी की 1.15 करोड़ दिखाई है। इसके अलावा उनके बेटों के नाम क्रमशः 1.29 करोड़ और 30 लाख की अचल संपत्ति है। करनेश जंग ने पिछले वितीय वर्ष में 11 लाख का आयकर दिया है। उनकी अचल संपत्तियों में कृषि, गैर कृषि, व्यवयासिक और रिहायशी भवन हैं। सुखराम परिवार पर करीब 82 लाख का कर्ज भी है।
उधर, आजाद उम्मीदवार रोशन लाल चौधरी का परिवार भी करोड़पति है। रोशन लाल व उनकी पत्नी की चल एवं अचल संपत्ति 1.22 करोड़ है। चुनावी हल्फनामे में रोशन लाल ने अपनी चल संपत्ति 12.52 लाख और पत्नी की 41.07 लाख दिखाई है। उनके पास अढ़ाई लाख और पत्नी के पास 23 लाख के गहने हैं। उनकी धर्मपत्नी के नाम 15 लाख की एक कार भी है। इस तरह दोनों की चल संपत्ति 53.52 लाख है। वहीं अचल संपत्ति पर नजर डालें, तो रोशन लाल के नाम 49 लाख और पत्नी के नाम 19.13 लाख की अचल संपत्ति है। दोनों के पास कृषि भूमि और रिहायशी भवन हैं। रोशन लाल ने 9.83 लाख का लोन भी लिया है।
पांवटा साहिब से आम आदमी पार्टी ने पहली बार प्रत्याशी मैदान में उतारा है। आप की टिकट पर युवा मनीष ठाकुर (42) किस्मत आजमा रहे हैं। मनीष ठाकुर के पास 6 लाख 25 हजार रुपये की चल संपत्ति है। जबकि उनकी पत्नी के नाम 15.74 लाख हैं। जिसमें पांच लाख के आभूषण हैं। मनीष ठाकुर के पास कोई अचल संपत्ति नहीं है।