शिमला, 16 अक्तूबर : हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव (Himachal Pradesh Assembly Elections) में 12 नवंबर 2022 को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप (BJP state president Suresh Kashyap) व राज्यसभा सांसद डाॅ. सिकंदर कुमार (Rajya Sabha MP Dr. Sikandar Kumar) का इम्तिहान भी होने जा रहा है। राज्य में 17 विधानसभा क्षेत्रों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा गया है।
प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी तकरीबन 28 फीसदी बताई जाती है। पार्टी ने जुलाई 2020 में नाहन के विधायक डाॅ. राजीव बिंदल (Dr. Rajeev Bindal) को हटाकर सुरेश कश्यप की प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी की थी। ये साफ था कि भाजपा की नजर 2022 के चुनाव में दलित वोट बैंक पर थी।
यही नहीं, मार्च 2022 में भाजपा ने डाॅ. सिकंदर कुमार को भी राज्यसभा में मनोनीत कर दिया। भाजपा के खेमे में दो दलित नेता होने के बावजूद भी ये वर्ग रूठा-रूठा नजर आ रहा है। यही कारण है कि सतौन रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) को भी ये कहना पड़ा था कि वो पैन से लिखकर देने को तैयार हैं कि अनुसूचित वर्ग के हितों की रक्षा होगी।
शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सुरेश कश्यप के अपने ही निर्वाचन क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, लेकिन बड़ी बात ये है कि 6 में से 4 पर कांग्रेस ने 2017 के चुनाव में कब्जा किया था। भाजपा को कसौली के अलावा पच्छाद सीट हासिल हुई थी। 2017 में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ही चुनाव जीते थे।
2022 के चुनाव में ये देखना होगा कि कोली बिरादरी में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद सुरेश कश्यप कोई जादू दिखा पाते हैं या नहीं। हालांकि ये अलग बात है कि कुल 17 सीटों में से 13 पर भाजपा ने कब्जा किया था। साफ जाहिर है कि 2017 में दक्षिण हिमाचल को छोड़ कर समूचे प्रदेश में अनुसूचित जाति ने चंबा, कांगड़ा, मंडी, ऊना व हमीरपुर में भाजपा की गोद में ही कमल का फूल डाला था।
हिमाचल में प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सवर्ण व दलित समाज के साथ होने का संकेत देते आए हैं। हमेशा ही एक तरफ मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व दूसरी तरफ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नजर आते थे।
बड़ा सवाल ये है कि भारतीय जनता पार्टी क्या इस बार 2017 की तरह ही इतिहास को दोहरा पाएगी या नहीं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के सामने ये भी बड़ी चुनौती है कि उनके अपने ही संसदीय क्षेत्र में ही 6 में से 4 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। अगर 2017 की बात की जाए तो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कसौली विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस बेहद ही मामूली अंतर से हार गई थी।
कांग्रेस के विनोद सुल्तानपुरी को 23,214 मत पड़े थे, जबकि भाजपा के मौजूदा मंत्री राजीव सैजल ने 23,656 वोट हासिल किए थे। 2012 में भी अंतर मामूली था। सुल्तानपुरी महज 24 मतों से चुनाव हार गए थे।
आंकड़़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि शिमला संसदीय क्षेत्र में अनुसूचित जाति का लगाव कांग्रेस के प्रति रहा है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के अपने गृह क्षेत्र सिरमौर में दो विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, लेकिन दोनों पर ही कांग्रेस का कब्जा है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सांसद सुरेश कश्यप व डाॅ. सिकंदर कुमार को भाजपा ने इसी मकसद से अहम ओहदों पर काबिज किया था कि ये नेता अनुसूचित जाति में कांग्रेस के तिलिस्म को तोडेंगे।
कुल मिलाकर 8 दिसंबर को इम्तिहान का परिणाम आएगा, इससे पता चलेगा कि तिलिस्म टूटा या नहीं।