नाहन, 2 अक्तूबर : औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब के साथ सटे देवनी गांव के मनदीप सिंह ने अर्द्धसैनिक बल सीआरपीएफ (CRPF) में 39 साल 3 महीने 15 दिन का सफर तय किया है। इंस्पेक्टर (Inspector) के पद से सेवानिवृत (Retired) होने के बाद दिवंगत लंबरदार विजय सिंह का बेटा घर लौटा है।
जय जवान के नारे को सार्थक करने के बाद अब वो जय किसान के नारे को सार्थक करने की तैयारी में जुटा है। हालांकि, मनदीप सिंह की शौर्य गाथा 20 साल पुरानी है, लेकिन रिटायरमेंट के बाद पहली बार सामने आई है। 11 सितंबर 1962 को जन्में मनदीप सिंह ने हालांकि जम्मू व कश्मीर (Jammu and Kashmir) नाॅर्थ ईस्ट व नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जांबाजी की कई दास्तानें लिखी, लेकिन 12 अगस्त 2020 को जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिला में आतंकी मुठभेड़ (Terrorist Encounter) में अपनी जान की परवाह किए बगैर आतंकी को ढेर करने पर पहचान हासिल हुई थी। इसके लिए तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी द्वारा पुलिस पदक (Police Medal) से भी नवाजा गया था।
ये ऐसा दौर था, जब आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ने में तकनीक के साथ-साथ आधुनिक हथियारों की कमी भी हुआ करती होगी। आतंकी एके-56 राइफल (AK-56 Rifle), 56 राउंड चाईना मेड ग्रेनेड व अन्य सामग्री से लैस था, बावजूद इसके मनदीप सिंह नहीं घबराए। आतंकी को तो मार गिराया ही था, साथ ही जखीरा भी बरामद किया था।
सिपाही के पद से सेवा शुरू करने वाले मनदीप सिंह को सीआरपीएफ के महानिदेशक द्वारा भी सराहनीय कार्य के लिए सम्मानित किया गया था। 15 जून 1983 को सीआरपीएफ की 20 वीं बटालियन देश के कई संवेदनशील इलाकों में तैनात थी। इस दौरान वो आरक्षी भर्ती हुए थे।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में सेवानिवृत निरीक्षक मनदीप सिंह ने कहा कि 22 साल पुरानी घटना इस समय भी जहन में ताजा है। मुठभेड़ 14 घंटे चली थी। आतंकियों ने टीम पर ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी थी। देश के प्रति अटूट जज्बे ने ही न केवल आतंकी को ढेर करने में मदद की, बल्कि मुझे भी सुरक्षा प्रदान की।
कुल मिलाकर सेवानिवृत्त निरीक्षक मनदीप सिंह की जांबाजी पर सिरमौर को गर्व है। ऐसी शख्सियतें अनसंग हीरो की फेहरिस्त में शामिल होती हैं, जिन्हें उस दिन तो सुर्खियां मिलती हैं, जब जांबाजी का अदम्य प्रदर्शन किया जाता है, लेकिन ऐसे वीर सपूतों को बाद में याद तक करने की जहमत नहीं उठाई जाती।