रोनहाट, 27 सितंबर : शिलाई उपमंडल में बेहद ही गमगीन कर देने वाले हादसे में दो साल के लक्ष्य (Lakshy) ने मम्मी-पापा के साथ तीन छोटे-छोटे भाई-बहनों का दुलार भी खोया है। नन्हीं जान को नहीं पता कि वो अब कभी नहीं लौटेंगे।
कुदरत ने इतना रहम किया कि हादसे के वक्त ‘लक्ष्य’ दादा-दादी के साथ दूसरे गांव में था। वहीं, एक नई जानकारी के मुताबिक लैंडस्लाइड (Landslide) की चपेट में आई महिला 7 माह की गर्भवती थी। अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले परिवार में ‘लक्ष्य’ को दादा-दादी (Grandparents) का सहारा बचा है।
ऐसा भी प्रतीत हो रहा है कि एक गरीब परिवार (Poor Family) को इस तरह का जख्म देकर कुदरत भी पछता रही होगी। सोशल मीडिया (Social Media) में एक यूजर ने लिखा, ‘भगवान ऐसा दुश्मन के साथ भी न करें’। बता दें कि सात माह की गर्भवती ममता का अंतिम संस्कार तीनों बच्चों के साथ एक चिता पर किया गया।
सोमवार रात बच्चों के पिता प्रदीप का भी अंतिम संस्कार गांव में कर दिया गया। दीगर है कि आईजीएमसी (IGMC) ले जाते वक्त प्रदीप ने त्यूणी के समीप दम तोड़ दिया था। हादसे में एक बात साफ है कि प्रदीप ने जिंदगी व मौत के बीच लंबी जंग लड़ी। मलबे में दबने के 12 घंटे तक सांसें चलती रही। एक बच्ची को भी जब मलबे से निकाला गया तो उसकी सांसें चल रही थी। रोनहाट में सही तरीके की मेडिकल सुविधा (Medical Facility) होती तो दो जीवन बचाए जा सकते थे।
मासूम लक्ष्य के दादा दौलत राम व दादी मेहंदी देवी सहमे हुए हैं। रिमोट इलाके (Remote Area) के रहने वाले सीधे-सादे लोग भगवान (God) से यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या गलत कर दिया था कि एक साथ बच्चों को माता-पिता के साथ ही अपने पास बुला लिया। हादसे में एक बच्ची का भाग्य भी देखिए, वो अपने मामा के घर मेहमान बनकर आई थी, लेकिन अर्थी निकली।
रास्त पंचायत के पूर्व प्रधान सतपाल चौहान ने कहा कि दिवंगत प्रदीप की पत्नी सात माह की गर्भवती थी। समूचा इलाका दुख की घड़ी में प्रदीप के माता-पिता के साथ खड़ा है। उनका कहना था कि जीवन में इस तरह का खौफनाक हादसा पहली बार देखा।
खैर, उम्मीद की जानी चाहिए कि चार बच्चों व दंपत्ति के अलावा एक अजन्मे शिशु की मौत के बाद सरकार की नींद टूटेगी। दुर्गम इलाकों में इतनी व्यवस्था तो हो जाए कि घायलों को उपचार हासिल करने के लिए घंटों का सफर न तय करना पड़े।
ये अफसोसजनक….
एक शख्स मलबे में दबे हुए भी 12 घंटे तक मौत से लड़ता है। रेस्क्यू होने के बाद भी घायल अवस्था में कई घंटों का सफर तय कर लेता है, ताकि वो आईजीएमसी शिमला (IGMC Shimla) पहुंच जाए। लेकिन आखिर में जीवन की डोर हाथ से छूट जाती है। रेस्क्यू होने के बाद भी कई घंटों तक संघर्ष जारी रखा था। घायल हालत में उसे व बेटी को लेने हैली एंबूलेंस (Heli Ambulance) आ जाती तो काफी हद तक दो अनमोल जीवन के बचाव की उम्मीद थी।
जानकारों की मानें तो तत्काल स्वास्थ्य सेवा (Health Care) मिलती तो मासूम लक्ष्य के सिर से पिता का साया न उठता, एक बहन भी दुलार देने के लिए बच जाती।
आपको बता दें कि रोनहाट से आईजीएमसी पहुंचने के लिए 6-7 घंटे लग जाते हैं। ऐसे में एक सवाल हम आपके लिए छोड़ते जा रहे हैं कि क्या 12 घंटे में मलबे में दबे रहने वाला व्यक्ति इतना लंबा सफर तय कर जीवन की डोर को थामे रख सकता है…..?