नाहन, 24 अगस्त : सिरमौर रियासत का शाही महल…अचानक ही कौतूहल पैदा कर देता है। सूरज ढलने से पहले पैलेस के सामने से गुजरने वाले ठिठक कर पैलेस के मुख्य गेट पर कई फुट की ऊंचाई पर एक ध्वज लहराता हुआ देखते हैं। ये तो समझ आ जाता है कि ये झंडा सिरमौर रियासत (Princely State Sirmour) का है। लेकिन ये साल में एक-दो बार ही क्यों नजर आता है।
राहगीरों को इस सवाल का जवाब तो मिलता नहीं है, अचानक ही सूरज ढलने के बाद ध्वज की जगह रेड लाइट जल उठती है। शाही महल के बाहर निजी सुरक्षा व्यवस्था भी चाक चौबंद होती है। राजस्थान पुलिस (Rajasthan Police) का सुरक्षा कर्मी भी नजर आता है तो काले रंग की पोशाक में दो शख्स भी कदमताल करते नजर आते हैं।
चलिए, आपकी जिज्ञासा को दूर करते हैं….
दरअसल, रियासत के ध्वज का लहराना व रेड लाइट के जलने का मतलब है, किंग इस समय महल में मौजूद है। बेशक ही राजा-महाराजा की पदवी समाप्त हुए दशकों बीत चुके हैं, लेकिन राजघरानों में रियासत की शानो शौकत को बरकरार रखा जा रहा है। बेशक ही ये रीत प्रतिकात्मक हो, लेकिन रिवायत असल में ही निभाई जाती है।
2013 में जयपुर के राजघराने की राजमाता व सिरमौर रियासत के अंतिम शासक की बेटी पदमिनी देवी (Padmini Devi) के छोटे नाती को सिरमौर के राजघराने का मुखिया घोषित किया गया था। बाकायदा राजसी तरीके से मंगल तिलक हुआ। हालांकि, ये एक तरह का राज तिलक था, लेकिन बेहद ही खूबसूरत तरीके से इसे मंगल तिलक करार दे दिया गया था, ताकि राजतिलक को लेकर कोई अनाप-शनाप प्रतिक्रियाएं व चर्चा न हो।
23 को पहुंचे लक्ष्यराज….
काफी कम अंतराल में जयपुर से युवा लक्ष्यराज प्रकाश (Lakshay Raj Prakash) दूसरी बार शाही महल में पहुंचे। पिता नरेंद्र सिंह के अलावा बहन भी साथ बताई गई। सुरक्षा कर्मी सोमवार को ही नाहन पहुंच गए थे। लक्ष्यराज के शाही महल में दाखिल होते ही गेट पर रियासत का ध्वज लहराने लगा। शाम ढली तो रैड लाइट ऑन हो गई।
चूंकि शाही महल के एक हिस्से का पुरानी शानो शौकत के तहत जीर्णोद्धार कर दिया गया है, लिहाजा अब परिवार को यहां स्टे करने में कोई दिक्कत नहीं होती।अच्छी बात ये है कि चंद महीने में लक्ष्यराज के शाही महल में पहुंचने से चहलकदमी तो बढ़ी ही, साथ ही रौनक भी लौटी है।
बता दें कि अप्रैल 2022 में लक्ष्यराज प्रकाश मंगलतिलक (Mangal Tilak) के बाद आधिकारिक तौर पर पहली बार शाही महल में पहुंचे थे। 16 मई 2013 को राजसी ठाठ बाठ से 9 साल के बालक को रियासत का महाराज बनाया था।
करीब चार महीने पहले जब लक्ष्यराज प्रकाश पहुंचे थे तो उनका स्वागत “Welcome His Highness” कहकर भी किया गया था। इस पर वो मुस्कुराए भी थे।
सिरमौर रियासत का इतिहास….
देश की आजादी के बाद रियासतों को विलय करने का सिलसिला शुरू हुआ। सिरमौर रियासत के अंतिम शासक राजेंद्र प्रकाश (Last ruler of Princely State Sirmour Rajendra Prakash) ने 13 मार्च 1948 को विलय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन कानूनी तौर पर सिरमौर रियासत का विलय 15 अप्रैल 1948 को चौगान मैदान में किया गया। अंतिम शासक का निधन 1964 में हो गया था। तब तक महाराज की उपाधि उनके पास ही रही।
39 साल बाद रियासत के अंतिम शासक की बेटी पद्मिनी देवी ने अपने 9 साल के नाती को मुखिया घोषित किया। इसके लिए बाकायदा लक्ष्यराज प्रकाश के गौत्र को बदलने की भी रिवायत पूरी की गई थी।