राजगढ़, 04 अगस्त : पझौता घाटी के गांव जालग में स्थित हाब्बी मानसिंह कला केंद्र में इन दिनों आदिकालीन भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के निर्माण का कार्य किया जा रहा है। यह कार्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी अपने निजी संसाधनों से करवा रहे हैं। भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के निर्माण के साथ-साथ जोगेंद्र हाब्बी सांस्कृतिक दल के कलाकारों को परिधानों के निर्माण का भी प्रशिक्षण दे रहे हैं।
जोगिन्द्र हाब्बी ने बताया कि सिरमौर जनपद सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहां सिरमौरी नाटी के अलावा ठोडा नृत्य, बूढ़ा नृत्य, हारूल नृत्य जैसी अनेकों समृद्ध नृत्य विधाएं विद्यमान है। जिन्हें संजोए रखना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। पिछले 30-32 वर्षों से सांस्कृतिक दल के कलाकारों ने पद्मश्री विद्यानंद सरैक के प्रयासों व जोगेंद्र हाब्बी के विशेष योगदान से सिंहटू नृत्य, डग्याली नाच, भड़ाल्टू नृत्य जैसी आदिम एवं जनजातीय झलक प्रदान करने वाली विलुप्त लोक सांस्कृतिक विधाओं पर शोध एवं अध्ययन कर लोक सांस्कृतिक जगत के समक्ष लोक संस्कृति का नायाब नमूना प्रस्तुत कर सिरमौर की लोक संस्कृतिक विरासत को और ऊंचे आयाम प्रदान किए।
इस कड़ी में परिधान निर्माण की श्रृंखला में सिंहटू, डग्याली व भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों में पारंपरिकता, मौलिकता और आकर्षण के साथ-साथ जनजातीय झलक दिलाने में जोगेंद्र हाब्बी व गोपाल हाब्बी एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं। इस कड़ी में पिछले पांच-छह वर्षों से जौगेंद्र हाब्बी द्वारा लोक कलाकारों के सहयोग से भड़ाल्टू नृत्य के नए परिधानों का निर्माण किया जा रहा है।
गत वर्ष नवंबर माह में भड़ाल्टू नृत्य के परिधानों के लिए भेड़ बकरी की खालों को साफ कर मुलायम करने का कार्य चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है।उन्होंने बताया कि प्रथम चरण में सिरमौर व शिमला जनपद के अनेकों गांव से भेड़ बकरियों की व्यर्थ पड़ी खालों को एकत्र किया गया। दूसरे चरण में खालों को साबुन से साफ किया गया तथा तेल व घी लगाकर तीन चार महीने तक घर के अंदर रखा गया। वर्तमान में तीसरे चरण में खालों को मुलायम करने का कार्य किया जा रहा है। खालों के मुलायम हो जाने पर चतुर्थ व पंचम चरण में इन खालों से परिधानों का निर्माण किया जाएगा।
इस सारी प्रक्रिया में लगभग एक वर्ष का समय लग जाना स्वाभाविक है। बताया कि हमारा लक्ष्य हाटी समुदाय की समृद्ध संस्कृति व विलुप्त लोक कलाओं को संजोने, सहेजने व आम जनमानस के समक्ष प्रदर्शित करना है ताकि आधुनिकता की चकाचौंध में व्यस्त युवा वर्ग अपनी समृद्ध पुरातन संस्कृति को न भूलें।