नाहन, 19 जुलाई : हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला की नैनाटिक्कर पंचायत के वार्ड नंबर-1 में पशु एक गंभीर संक्रामक रोग से गुजर रहे हैं। क्षेत्र के पालतू पशु तड़प-तड़प कर मरने की तरफ अग्रसर हैं।
पशुपालन विभाग ने बीमारी को ‘लुंपी त्वचा संक्रमण’ (Lumpy Skin Infection) के रूप में चिन्हित किया है। ये बीमारी मूलतः साउथ अफ्रीका (South Africa) के पशुओं में पाई जाती है। विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक कुछ अरसा पहले शिमला में एक पशु इस बीमारी की चपेट में आया था।
इसके बाद सिरमौर से भी सैंपल जांच के लिए भोपाल की लैब में भेजे गए, वहां से भी पशुओं में इस संक्रमण की पुष्टि कर दी गई। सिरमौर के पशुपालन विभाग ने बमुश्किल पशुओं के लिए रिंग वैक्सीनेशन (Ring Vaccination) का इंतजाम किया। करीब 700 से 800 पशुओं को ये वैक्सीन अब तक दी जा चुकी है।
बताया जा रहा है कि शिमला व सिरमौर के बाद सोलन में भी पशुओं में इस बीमारी के लक्षण मिले हैं। सोलन से भी सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे गए हैं। ये बताया जा रहा है कि मक्खी के काटने से ये संक्रमण फैलता है।
स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो कई पशु जान गवां चुके हैं। क्षेत्र के जागरूक युवक पीयूष सेवल की मानें तो संक्रमण रोग में पहले पशु के शरीर पर फोड़े हो रहे हैं। इस कारण शरीर पर सूजन व खुबार आ जाता है। पीयूष सेवल की मानें तो जख्म होने के बाद पशु खाना-पीना छोड़ देते हैं।
दर्दनाक बात ये है कि जख्मों की वजह से पशु लगातार 8-10 दिन खड़े रहने पर मजबूर हो जाते हैं या फिर बैठने के पश्चात उठ नहीं पा रहे हैं। ग्रामीणों की मानें तो स्थानीय पशु चिकित्सकों ने अपने स्तर पर पशुओं को बचाने की पूरी कोशिश की है, लेकिन उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं।
ग्रामीणों की मानें तो बीमारी का सबसे अधिक प्रभाव दुधारू पशुओं व गर्भवती गाय पर हो रहा है। बताया जा रहा है कि नैनाटिक्कर क्षेत्र के कई गांवों, रेंजी, पंडाह, दभाड़ा, ढाकी व नैनाटिक्कर इत्यादि गांवों में ये बीमारी बड़े पैमाने पर फैल चुकी है।
हालांकि नैनाटिक्कर पशु चिकित्सालय से रोग पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन कोई समाधान न हो पाने से बेजुबान तड़प रहे हैं तो पशु मालिक बेहद ही विकट परिस्थिति का सामना कर रहे हैं।
ग्रामीणों की मानें तो पशुपालकों ने 20 से 70 हजार की राशि खर्च कर दुधारू पशु पाल रखे हैं। लेकिन पशुओं की मृत्यु से पशुपालकों की कमर भी टूट रही है।
स्थानीय निवासी पीयूष सेवल, माघवनंद शर्मा, इंद्र दत्त शर्मा, हरनाम सिंह, ईश्वर सिंह, विजय गौतम, अमी चंद गौतम व विक्रम ठाकुर इत्यादि ने पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर से मांग की है कि तत्काल प्रभाव से पशु विशेषज्ञों की उच्च स्तरीय टीम को जांच के लिए भेजा जाए। बीमार पशुओं के सैंपल्स की भी उचित जांच की जानी चाहिए।
उधर, पशुपालन विभाग की सहायक निदेशक डाॅ. नीरू शबनम ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में कहा कि बीमारी को लुंपी रोग संक्रमण के रूप में चिन्हित किया गया है। एक सवाल के जवाब में डाॅ. शबनम ने माना कि ये बीमारी साउथ अफ्रीका में पाई जाती है। उन्होंने संभावना जताई कि बाहरी राज्य से पशुओं की खरीद के कारण ये बीमारी हिमाचल में भी पहुंची है।
डाॅ. शबनम ने कहा कि अमूमन ये संक्रमण राज्य में नहीं पाया जाता है। ये एक तरह का वायरस है। पशुओं को ठीक होने में दो से तीन सप्ताह का समय भी लग सकता है। उन्होंने कहा कि अच्छी बात ये है कि पिछले पांच दिनों में कोई भी नया केस पॉजिटिव नहीं पाया गया। डाॅ. शबनम ने कहा कि बीमार पशुओं के सैंपल राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान भोपाल (National Institute Of High Security Veterinary Disease Bhopal) भेजे जा रहे हैं। 700 से 800 पशुओं को वैक्सीन दी जा चुकी है।