हमीरपुर, 03 जुलाई : पहाड़ के मजदूरों की दबंग आवाज खामोश हो गई। हिमाचल प्रदेश भवन एवं अन्य कामगार कल्याण बोर्ड के चेयरमैन व भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. राकेश शर्मा बबली का रविवार दोपहर अंतिम संस्कार कर दिया गया।
पार्थिव देह को अंतिम संस्कार के लिए रविवार को पैतृक गांव बुडान में लाया गया। राकेश बबली के सात साल के बेटे ने मुखाग्नि दी। वो अपने पीछे माता- पिता, पत्नी और बेटा (7) व बेटी (3) को छोड़ गए है। राकेश बबली के छोटे भाई विजय का भी निधन हार्ट अटैक के कारण हुआ था।
शायद ही कोई कल्पना कर सकता है कि इस तरीके से भी वो संसार को छोड़ देंगे। महज 47 साल की उम्र में दिवंगत राकेश ने अपने व्यक्तित्व की वजह से मुकाम हासिल किया, फलक को छूने की तरफ तेजी से अग्रसर थे। बता दे कि शनिवार देर शाम अचानक ही राकेश शर्मा के निधन की खबर आई इस पर हर कोई हैरान रह गया क्योंकि वो बिलकुल ठीक थे।
किन्नौर की सीमा में दाखिल होते ही छाती की दर्द महसूस हुई, कुछ देर बाद ही दम तोड़ दिया। भाजपा संगठन के लिए उनका जाना बड़ी क्षति है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से शुरू हुआ राजनीतिक जीवन इस समय चरम पर था। डॉ. बबली के जाने से बड़सर विधानसभा के क्षेत्र को भी गहरा आघात पहुंचा है।
विधानसभा चुनाव के लिए हल्के से टिकट के प्रबल दावेदारों में शुमार थे। जनता उन्हें सशक्त नेता के रूप में देख रही थी। राजनीतिक तौर पर वह दशकों से इस क्षेत्र में सक्रिय थे। संगठन के प्रति निष्ठा और सेवा भाव खून में रच बस चुका था। विडंबना देखिए, उन्होंने जब अंतिम सांस ली तब भी वह संगठन के काम में व्यस्त थे।
कामगार कल्याण बोर्ड का चेयरमैन
पांच अगस्त 2021 को कामगार कल्याण बोर्ड का चेयरमैन बनने के बाद से राकेश शर्मा बबली ने मजदूरों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू करवाई। यही नहीं, मजदूर के बच्चों की शिक्षा के लिए नई योजनाओं की शुरुआत कर सरकार से बोर्ड के बजट में तीन गुणा तक बढ़ोतरी भी करवाई।
यह सिर्फ योजनाएं बनाने तक ही नहीं रुके बल्कि मजदूरों को उनका हक दिलवाने के लिए प्रदेश के गांवों की गलियां भी नापी। गांव-गांव घूम मजदूरों को न केवल उनके हक बताए, बल्कि बोर्ड की योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए दिन-रात मेहनत की।
बचपन से राजनीति का शौक
हमीरपुर के बिझड़ी कस्बे से सटी सकरोह पंचायत के गांव बुदान के रहने वाले डॉ. राकेश शर्मा छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ गए थे। राजनीति से उनके परिवार का गहरा नाता रहा है। उनके पिता बंसीधर शर्मा आरएसएस के कर्मठ कार्यकर्ताओं में शुमार रहे हैं।
भाषा अध्यापक के रूप में रिटायर पिता की राजनीतिक विरासत को बबली ने पूरी निष्ठा और कर्मठता के साथ आगे बढ़ाया। स्थानीय स्कूल से 10वीं पास करने के बाद यह आगे की पढ़ाई के लिए हमीरपुर कॉलेज से की। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से उनको छात्र राजनीति को नया आयाम मिला।