शिमला, 18 जून : भाजपा शासित नगर निगम शिमला का पांच साल का कार्यकाल आज शनिवार को पूरा हो रहा है। नगर निगम का वर्तमान कार्यकाल समाप्त होने और नई निगम का गठन न होने के कारण राज्य सरकार वर्तमान निगम को भंग कर प्रशासक की नियुक्ति कर देगी। ऐसे में करीब 36 साल बाद एक बार फिर नगर निगम शिमला की कमान प्रशासक के हाथों में होगी।
दरअसल निगम के दो वार्डों के पुनर्सीमांकन को लेकर एक मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन होने के चलते समय पर चुनाव नहीं हो पाए। यही वजह है कि नगर निगम की कमान प्रशासक के हाथों में सौंपने की तैयारी है। हालांकि राज्य चुनाव आयोग ने हाईकोर्ट का फैंसला आने के बाद चुनावी प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन चुनावी प्रक्रिया के लिए समय लगेगा और तब तक प्रशासक ही नगर निगम की कमान संभालेगा।
निगम की महापौर सत्या कौंडल का कहना है कि नगर निगम ने पांच सालों में शहर के विकास के लिए बहुत काम किया है, जिसमें शहरी विकास मंत्री व स्थानीय विधायक सुरेश भारद्वाज का मार्गदर्शन हमेशा मिला है।
आपको बता दें कि नगर निगम में सत्तारूढ़ भाजपा का पांच वर्ष का कार्यकाल आज 18 जून को समाप्त हो रहा है। अब जब तक चुनाव नहीं हो जाते तब तक प्रशासक ही कामकाज देखेगा और महापौर, उप महापौर, पाषर्दों की भूमिका समाप्त हो जाएगी। चरित्र प्रमाण पत्र, बीपीएल सर्टिफिकेट के लिए सर्टिफिकेट, रेजिडेंस प्रूफ सहित अन्य तरह के प्रमाण पत्र जो पाषर्दों की ओर से जारी किए जाते थे, अब वह निगम कार्यालय से ही मिलेंगे। इसके अलावा विकास कार्यों के लिए पहले पाषर्द प्राथमिक्ता बताते थे अब प्रशासक स्वयं निर्णय लेंगे।
गौरतलब है कि वर्ष 1851 में शिमला में नगर पालिका बनी थी। 26 अगस्त 1855 में पहली बार नगर पालिका के चुनाव करवाए गए थे। इससे पूर्व नगर निगम के पदेन सदस्य होते थे। शिमला नगर पालिका तत्कालीन पंजाब की पहली नगर पालिका थी। 31 जुलाई 1871 में शिमला प्रथम श्रेणी नगर पालिका गठित हुई थी।
एक सितंबर 1970 को प्रदेश सरकार ने शिमला नगर पालिका का स्टेटस बदलकर नगर निगम किया था। 1968 के एक्ट के बाद प्रदेश एमसी एक्ट 1979 बना। इसकी स्वीकृति राष्ट्रपति से 22 अगस्त 1980 को मिली। 1986 तक नगर निगम के चुनाव नहीं हुए। इस अवधि के दौरान पांच अलग-अलग प्रशासक इसके प्रमुख रहे।