बिलासपुर, 17 जून : हिमाचल प्रदेश में एक पिता उमेश गौतम ने 1999 में बेटे के जन्म के वक्त ही एक सपना देखा था। कारगिल युद्ध (Kargil War) में कैप्टन अमोल कालिया (Captain Amol Kalia) के अदम्य साहस से देश पर प्राण न्योछावर करने को देख चुके थे।
कैप्टन कालिया के शहीद होने के बाद मन में ये ठान लिया था कि वो अपने बेटे को सैन्य अधिकारी (Army Officer) ही बनाएंगे। इसके लिए बेटे का नामकरण भी अमोल ही किया था। बेटा, अमोल गौतम लेफ्टिनेंट बनकर घर लौटा है। एक परिवार के लिए इकलौते बेटे को सेना में भेजने का फैसला कठिन होता है। मां नैना देवी (Maa Naina Devi) के मंदिर के पुजारी उमेश गौतम को साहसिक फैसले में पत्नी मीना गौतम का साथ मिला।
पोते को सैन्य अधिकारी की वर्दी पहने देख दादी कमलेश की तो आंखें ही भरी हुई थी। पिता उमेश गौतम ने कहा कि कैप्टन अमोल कालिया की शहादत के वक्त ही ये फैसला ले लिया था कि अपने बेटे को सैन्य अधिकारी बनाएंगे।
लेफ्टिनेंट अमोल गौतम (Lt. Amol Gautam) ने कहा कि शुरू से ही परिवार का सहयोग मिलता रहा। विशेष रूप से माता-पिता ने अहम योगदान दिया है। दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अकादमी में मोहाली भेज दिया था। पंजाब सरकार की महाराजा रणजीत सिंह अकादमी (Maharaja Ranjit Singh Academy) में दो साल तक प्रशिक्षण लिया। इस दौरान सैन्य अधिकारी बनने का ही प्रशिक्षण मिला।
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आपको बता दें कि लेफ्टिनेंट अमोल गौतम ने यूपीएससी (UPSC) द्वारा आयोजित की जाने वाली एनडीए (NDA) परीक्षा में 12वां रैंक हासिल किया था। जब भी अमोल घर आता था तो पिता सुबह फिटनेस के मकसद से उसके साथ रनिंग किया करते थे। अमोल का ये भी कहना है कि सैन्य अधिकारी बनना थोड़ा कठिन तो है, लेकिन असंभव नहीं है।
गौरतलब है कि लेफ्टिनेंट अमोल गौतम को पहली पोस्टिंग असम में मिली है, वो पासिंग आउट परेड के जेंटलमैन कैडेट बनने के बाद असम रेजिमेंट का हिस्सा बने हैं। अमोल की छोटी बहन भी भाई के भारतीय सेना में अधिकारी बनने पर चहक रही है।
कारगिल युद्ध में कैप्टन अमोल कालिया की गिनती देश के शूरवीरों में होती है। कैप्टन अमोल कालिया भारतीय सेना की 12 जम्मू -कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में तैनात थे। कारगिल युद्ध में कैप्टन अमोल कालिया ने अदम्य साहस दिखाया था। टुकड़ी में मशीनगन ऑपरेटर सैनिक शहीद हो गया था। इसके बाद कैप्टन अमोल कालिया ने खुद मशीनगन उठाई। जमीन पर चलाए जाने वाली मशीनगन को कंधों पर उठाकर चारों तरफ घुमा दिया। इससे पाकिस्तान के कई सैनिक ढेर हो गए थे।
बड़ी बात ये है कि भारतीय सेना को कारगिल दिवस से करीब एक महीने पहले लेफ्टिनेंट के तौर पर अमोल गौतम मिला है। इसमें करीब 22 साल का वक्त लगा है।