शिमला, 07 जून : प्रवासी हिमाचलियों के साथ सौतेला व्यवहार न किया जाए। हिमाचल प्रवासियों को मेडिकल शिक्षा में 85 प्रतिशत कोटा बहाल करो। यह बात मंगलवार को शिमला में आयोजित प्रेस वार्ता दौरान अखिल भारतीय प्रवासी हिमाचली संयुक्त मोर्चा के चेयरमेन राजेश ठाकुर ने कही। उन्होंने कहा कि प्रवासी हिमाचली लोगों के खेत खलियान व जन्मभूमि हिमाचल है। रोजगार के चलते लोग मजबूरी से हिमाचल से बाहर गए है, लेकिन प्रदेश सरकार प्रवासियों को हिमाचली मानने को तैयार नहीं है।
उन्होंने कहा कि बाहरी राज्य में रह रहे हिमाचल के प्रवासी छात्र मेडिकल शिक्षा में रोजगार पाने के लिए तरस रहे है। बच्चों ने 12वीं तक की पढ़ाई तो बाहरी राज्य से कर ली है, लेकिन हिमाचल में प्रवासी छात्रों को मेडिकल शिक्षा क्षेत्र एमबीबीएस, बीडीएस. व आयुर्वेद में नीट की परीक्षा नहीं दे सकते हैं।
सवाल यह है कि 2018 में भाजपा सरकार के आने पर प्रवासियों के लिए मेडिकल शिक्षा में 85 प्रतिशत कोटे पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन अब इस कोटे को बहाल नहीं किया जा रहा है। ऐसे में अब प्रवासियों में सरकार के खिलाफ रोष पनप गया है। बाहरी प्रदेशों में 18 लाख के करीब प्रवासी रोजगार कर रहे हैं। ऐसे में उनके बच्चे अगर हिमाचल में नीट का एग्जाम देना चाहते है तो प्रवेश ही नहीं दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि 2013 से 2017 तक कांग्रेस सरकार के दौरान बच्चों के दाखिले हो रहे थे, लेकिन भाजपा सरकार के दौरान प्रतिबंध लगा दिया गया। प्रवासी हिमाचल में राज्यपाल व मुख्यमंत्री तक मिल चुके है। फिर अभी तक इस कोटे को बहाल करने को लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए है। प्रवासी पहले 1995 से इस लड़ाई लड़ रहे थे और 2013 में वे अपनी लड़ाई लडने में कामयाब हो गए थे। अब फिर से प्रतिबंध लगा है।
उन्होंने कहा कि उनसे उनका मूल अधिकार ना छिना जाए। अगर बच्चों ने बाहरी राज्य में पढ़ाई की है तो क्या वे हिमाचली नहीं है। प्रवासियों ने सरकार को चेताया है कि अगर मांगे पूरी नहीं की तो आने वाले विधानसभा चुनाव में नोटा का प्रयोग करेंगे। हिमाचल में मत डालने उन्हें भी अधिकार है।