शिमला/ पालमपुर : हिमाचल में एक ज़माने पहले ऐसी बासमती (Basmati) उगाई जाती थी, जिसका स्वाद केवल राजघराने के सदस्य ही कर सकते थे। इसे पैदा करने वाले को भी इसे खाने की अनुमति नहीं थी। दरअसल, पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने राज्य के दूरदराज के क्षेत्रों में उगाई जाने वाली पारंपरिक फसलों व नस्लीय पौधों की किस्मों को बचाने और पंजीकृत करने की पहल शुरू की है। इसी दौरान ये तथ्य सामने आया है। लेकिन अब अगर यूनिवर्सिटी की कोशिश कामयाब हुई तो इसका स्वाद आम लोगो को भी नसीब होगा।
विश्वविद्यालय ने मंडी के सुंदरनगर क्षेत्र के ब्याला गांव में उगाए जाने वाले बासमती चावल और सिरमौर के बधाना कलाथा पंचायत में उगाई जाने वाली अदरक की किस्म के लिए भौगोलिक संकेतक (geographical indication) टैग प्राप्त करने के लिए कदम बढ़ाया है।
पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के वीसी प्रोफेसर एचके चौधरी ने द ट्रिब्यून से बात करते हुए कहा कि सुंदरनगर क्षेत्र के दौरे के दौरान उन्हें स्थानीय लोगों द्वारा बताया गया था कि दूरदराज के ब्याला गांव में एक विशेष किस्म की बासमती उगाई जाती है।बताया गया कि एक समय में क्षेत्र में बोई जाने वाली बासमती विशेष रूप से मंडी राज्य के राजघरानों (Royals of Mandi State) के लिए होती थी। जो किसान बासमती की इस किस्म को उगाते थे, उन्हें इसे खुद भी खाने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि यह विशेष रूप से स्थानीय राजघरानों के लिए होती थी प्रोफेसर चौधरी ने आगे कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के क्षेत्र के दौरे से पता चला है कि गांव के किसानों ने अभी भी बासमती के बीज को बचाया हुआ है।
चूंकि फसल की उपज कम थी, लिहाजा खेती के तहत क्षेत्र भी कम हो गया था। विश्वविद्यालय एक बार फिर किसानों को पारंपरिक बासमती उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा हैं। विश्वविद्यालय बियाला की बासमती धान की किस्म को प्लांट वैरायटी एंड फार्मर्स राइट एक्ट के तहत पंजीकृत करने की प्रक्रिया में है। विश्वविद्यालय बासमती चावल की किस्म की रूपरेखा भी तैयार करेंगे ताकि किसानों को सदियों से संरक्षित उनकी पारंपरिक किस्म का पर्याप्त मूल्य मिल सके।
वीसी ने आगे कहा कि बधाना कलाथा पंचायत सिरमौर के सुदूर इलाके में हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित है, सुदूर गांव अपनी अदरक की फसल के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। गाँवों ने स्वदेशी छिलके विकसित किए हैं, जिनसे वे अदरक के छिलके को छीलते हैं और इसे सौंठ के रूप में सूखे अदरक रूप में बेचते हैं। गांव का दौरा करने वाले विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पाया कि क्षेत्र में उत्पादित अदरक मिट्टी के गुणों के कारण सुगंध में अद्वितीय था। अदरक का पौधा किस्म एवं किसान अधिकार अधिनियम के तहत भी पंजीकृत किया जा रहा है। अदरक के अनोखे गुणों के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इसकी रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि फसल के लिए एक जीआई भी मांगा जाएगा ताकि गांव के किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिल सके