सोलन, 30 मई : आम तौर पर सड़क व रास्ते के किनारे पड़ी लकड़ी को बेकार समझकर या तो ईंधन के लिए इस्तेमाल किया जाता है या फिर वहां से उठाकर कही और फेंक दिया जाता है। लेकिन, ओच्छघाट पंचायत के गधोग गांव के राकेश ने ग्रामीणों के साथ मिलकर इसे आय का साधन बना दिया।
ओच्छघाट पंचायत के गधोग गांव के राकेश ने ग्रामीणों के साथ मिलकर लकड़ी के कई उत्पाद तैयार किए हैं। इसमें मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना उनकी मददगार बनी है। राजेश और ग्रामीणों ने खराब लकड़ी से अपनी कारीगिरी के इस्तेमाल से ऐसे उत्पाद तैयार किए हैं, जिनकी कोई कल्पना भी नही कर सकता था।
राजेश पहले अपने शौक के लिए लकड़ियों पर दस्तकारी (handcrafted wood) करता था। उनकी म्यूजियम बनाने की योजना थी। इससे कोई आमदनी भी नही होती थी,, लेकिन खंड विकास अधिकारी सोलन रमेश शर्मा व एसईबीपीओ सुनिला शर्मा ने उन्हें मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना (Chief Minister Village Skill Scheme) से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसका उन्हें लाभ भी मिला।
इस योजना में बतौर प्रशिक्षक जुड़ने से उन्हें हर माह 7500 रुपए तो मिल ही रहे हैं, साथ ही पांच ट्रेनी भी उनके साथ जुड़ गए हैं। इन ट्रेनी को भी 3 -3 हजार रुपए प्रति माह मिल रहे हैं। मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना के तहत प्रशिक्षण ले रही सुषमा का कहना है कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का घर द्वार पर अवसर मिला है। नई चीज सीखने को मिल रही है।
मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना से विलुप्त होती जा रही परम्परागत कला को बढ़ावा मिला है। इस योजना के तहत 6 माह से एक साल का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए प्रशिक्षण देने वाले के साथ ट्रेनी को भी मानदेय दिया जाता है। अब इस योजना से जुड़े लोगों को अपने उत्पाद भेजने के लिए स्थान भी दिया जाएगा।
इस योजना के तहत राजेश उनकी टीम ने लकड़ी के ऐसे उत्पाद बनाए हैं, जो रसोई से लेकर ड्राइंग रूम तक की शोभा बढ़ाएंगे। हालांकि ज्यादातर उत्पाद मंहगे हैं, क्योंकि उनके बनाने पर समय के साथ-साथ लागत भी महंगी है। ब्यूल की जड़ का सांप बनाया हुआ है। जड़ो से ड्रैगन बनाया जा रहा है। उसकी बॉडी को वास्तविकता देने के लिए टिम्बर के कांटे का प्रयोग किया जा रहा है।
तेंदुआ, टिम्बर की लकड़ी का मगरमच्छ, जड़ो का शो केस, मोर, चम्मच, कड़छी व मंदिर जैसे बहुत से उत्पाद बनाए हुए हैं। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि इसके लिए वेस्ट लकड़ी का इस्तेमाल कर रहे है। सबसे बड़ी बात यह है कि लकड़ी की यह व्यवस्था वे गांव में ही करते हैं।