शिमला, 30 मई : हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम (Himachal Pradesh Transport corporation) की दिल्ली-लेह बस सेवा (Delhi-Leh Bus) देवभूमि की शान है। हो भी क्यों न, ये सेवा न केवल अनोखी है, बल्कि दुनिया का सबसे लंबा रूट भी है।
शायद ही कोई जानता होगा कि इस सेवा का पहला पायलट कौन था। चलिए बताते हैं…
एचआरटीसी (HRTC) में “लाला जी” के नाम से पहचान रखने वाले अमरनाथ (Amarntah) वो शख्स हैं, जिसने सबसे पहले सीमित संसाधनों में बस को केलांग से लेह पहुंचाया था। उस समय ये सड़क बेहद ही खतरनाक हुआ करती थी। लाला जी को तारीख याद नहीं है, लेकिन ये याद है कि उस समय निगम के चेयरमैन धामी हुआ करते थे।
प्रबंधन के जहन में जब केलांग से लेह तक बस सेवा शुरू करने का विचार कौंधा था, तब मुख्यालय से लाला जी को चालक बनाने की सिफारिश हुई थी। बता दें कि घुमारवीं के कुठेडा गांव के रहने वाले निगम के रिटायर्ड चालक अमरनाथ ने बतौर पायलट निगम के केलांग डिपो (Keylong Depot) में ही सेवाएं दी हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दुनिया की खतरनाक सड़कों पर बस को चलाने का तजुर्बा किस हद तक था।
बताते हैं….
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से खास बातचीत में अमरनाथ ने बताया कि बस को केलांग से लेह पहुंचने में 18 से 22 घंटे लग गए थे। बस में रिपेयरिंग के लिए दो मिस्त्री मौजूद थे। इसके अलावा चिकित्सकों की टीम भी साथ गई थी। सरकार के कुछ वीआईपी लोगों ने भी बस में ट्रैवल किया।
लेह पहुंचने पर जबरदस्त स्वागत हुआ था। बस में लेह पहुंचे तमाम लोगों को उन्होंने इलाके के तमाम मठों में भी घुमाया था। इसमें भी बस की ही सेवा ली गई थी। उन्होंने बताया कि 80 के दशक में इस सड़क पर बस के चलने की कल्पना बहुत ही धूमिल हुआ करती थी।
उन्होंने बताया कि कुछ समय बाद ही बस का रूट लेह से दिल्ली कर दिया गया। अक्सर ही उनकी डयूटी लगा करती थी। सुंदरनगर में रिलीवर मिलता था। दो बार ऐसा मौका भी आया, जब उन्हें किसी कारण से सुंदरनगर में रिलीवर नहीं मिला तो लेह से चंडीगढ़ तक बस को चलाना पड़ा था। उस जमाने में बस में खूब भीड़ हुआ करती थी। चूंकि पूरी सेवाएं केलांग में ही रही, लिहाजा परिवार भी कुल्लू में ही सैटल हो गया। उन्होंने कहा कि वो शानदार समय था।
उस समय दर्रों (Passes) से गुजरना खतरे से खाली नहीं होता था, लेकिन कहीं न कहीं आपका अनुभव काम आता था। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जब वो पहली बार बस को लेकर लेह गए थे तो रास्ते में सड़क में कई कमियां थी। कमियों के बारे में सरकार को बताया गया। बाद में इसे ठीक भी किया गया।
उन्होंने कहा कि बस के लेह पहुंचने के बाद 6-7 दिन तक खुशियां मनाई जाती रही थी। आठवें दिन पूरी टीम वापस लौटी थी। लाला जी का कहना है कि मौजूदा समय में सड़क काफी बेहतरीन हो चुकी है। 36 साल पहले तो इस सड़क पर बस को चलाना खतरे से खाली नहीं था।
बेटी है अनमोल को भी किया सार्थक…
एचआरटीसी के लाला जी ने बेटी है अनमोल के नारे को भी जीवन में सार्थक किया है। 4 बेटियों को उच्च शिक्षा देने में कोई कोर कसर नहीं रखी। इसका परिणाम ये है कि 4 बेटियां उच्चशिक्षित तो हैं ही, साथ ही दो बेटियां सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हैं।
बाद में बने इंस्पेक्टर….
2011 में अमरनाथ निगम में इंस्पेक्टर के पद से सेवानिवृत हुए। अधिकांश समय लाहौल स्पीति व कुल्लू की सर्पीली सड़कों पर ही बसों में यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाया। बेटे कमल कपिल का कहना है कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि दुनिया के सबसे लंबे रूट पर चलने वाली बस के पहले पायलट उनके पिता रहे।
मौजूदा में भी खतरनाक हैं रूट…. ये देश का सबसे ऊंचा व लंबा रूट है। बस को 1036 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। इस साल लेह से दिल्ली का किराया 1740 रुपए निर्धारित हुआ हैै। पहली बस को जहां केलांग से लेह पहुंचने में करीब 20 से 22 घंटे लग गए थे। वहीं ये बस केलांग से अब मात्र 10 घंटे में ही लेह पहुंच जाती है।
बता दें कि ये बस सेवा लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकाॅर्डस (Limca Book of World Records) में भी दर्ज है। इस साल ये सेवा करीब डेढ़ महीना पहले ही शुरू हो गई। बस 16,500 फीट की उंचाई पर बारालाचा दर्रे (Baralacha Pass) को पार करती है। 17,480 फीट की ऊंचाई पर तंगलंगला दर्रे (Tanglangala Pass), 16616 फीट की उंचाई पर लाचुंगला दर्रों (Lachungala Pass) की खूबसूरत वादियों से निकलती है।
अटल टनल (Atal Tunnel) बनने से इस सेवा को भी फायदा मिला है। केलांग से दिल्ली की दूरी घट गई है। अब इस बस को रोहतांग दर्रा (Rohtang Pass) पार नहीं करना पड़ता।