शिमला, 3 अप्रैल : कुफरी में रविवार को रोटरी क्लब की ओर से अंगदान के विषय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें रोटरी क्लब के नॉर्थ जोन के करीब 350 से अधिक अध्यक्ष व उपाध्यक्ष मौजूद रहे। इस कार्यशाला में मोहन फाउंडेशन के पदाधिकारी भी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत में रोटरी क्लब के उपाध्यक्ष वीपी काल्टा ने उपस्थित सभी पदाधिकारियों का स्वागत किया। इस मौके पर स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) हिमाचल प्रदेश के नोडल अधिकारी व आईजीएमसी के सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ पुनीत महाजन ने अंगदान के विषय में प्रतिभागियों को अवगत करवाया। उन्होंने बताया कि मरने के बाद भी व्यक्ति अपने आप को दूसरे के शरीर में जिंदा रख सकता है यह अंगदान से संभव हो सकता है।
अंगदान से व्यक्ति एक नहीं बल्कि 8 लोगों का जीवन बच सकता है। हमारे देश में अंगदान की कमी के कारण लाखों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। रोजाना हजारों लोग सड़क दुर्घटना के कारण मर जाते हैं, इनमें से कई लोग अंगदान करने के लिए सक्षम होते हैं, लेकिन सही जानकारी न होने की वजह से अंगदान नहीं हो पाता। वहीं दूसरी ओर देश में हर साल करीब दो लाख लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है।
बदलती जीवन शैली के चलते ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय की बीमारी, ब्रेन स्ट्रोक व फेफड़े की बीमारियां बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से किडनी हार्ट और लीवर बड़ी संख्या में फेल हो रहे हैं।उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि कई बार मरीज के तीमारदारों में भ्रम होता है कि अंगदान करवाने के चलते डॉक्टर उनके मरीज को ठीक करने की कोशिश नहीं करेंगे जबकि यह धारणा बिल्कुल गलत है।
अस्पताल में इलाज करने वाले डॉक्टर मरीज को हर संभव मेडिकल इलाज उपलब्ध करवाते हैं। इसके बावजूद अगर मरीज में इंप्रूवमेंट नहीं होती है और मरीज ब्रेन डैड की स्थिति में पहुंच जाता है तभी अंगदान के बारे में तीमारदारों को अवगत करवाया जाता है। तीमारदारों की रजामंदी के बाद ही मरीज के शरीर से अंग निकाले जाते हैं। साथ ही कई बार तीमारदारों की धारणा होती है कि ब्रेन डेड होने के बाद भी मरीज वापस जिंदा हो सकता है, उन्होंने बताया कि मरीज कोमा से वापस आ सकता है लेकिन ब्रेन डेड होने के बाद उसका रिकवर होना असंभव है।
वही लोगों को लगता है कि अमीर मरीजों की जान बचाने के लिए ब्रेन डेड की स्थिति में चल रहे मरीज से अंग लिए जाएंगे, जबकि निकाले गए अंगों को दूसरे के शरीर में प्रत्यारोपित करने से पहले कई प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं। अंग दाता और अंग लेने वाले मरीज के ब्लड सैंपल मैच के जाते हैं, टिशु टाइपिंग, ऑर्गन साइज, मेडिकल इमरजेंसी, वेटिंग टाइम और भौगोलिक स्थिति के आधार पर दान किए गए अंग दूसरे मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट किए जाते हैं। अस्पताल में ब्रेन डेट डिक्लेअर करने वाली कमेटी उपलब्ध होती है।
अस्पताल के किसी भी वार्ड के आईसीयू में अगर कोई मरीज ब्रेन डेड की स्थिति में पहुंचता है तो ब्रेन डेथ कमेटी एक्टिवेट हो जाती है। यह कमेटी आगामी 36 घंटे के भीतर मरीज की पूरी तरह से मॉनिटरिंग करती है पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही मरीज को ब्रेन डेड डिक्लेअर किया जाता है। उन्होंने बताया कि समय रहते गलत धारणाओं और अंगदान के प्रति फैले भ्रम को दूर किया जाना चाहिए ताकि लोग मरने के बाद किसी और की जीवन में उजाला कर सकें।
ब्रेन डेथ कार्डियक डेथ में अंतर…
उन्होंने बताया कि व्यक्ति की मृत्यु दो तरह से होती है। एक ब्रेन डेथ तो दूसरी कार्डियक डेथ। ब्रेन डेथ के तहत मरीज के दिमाग के सभी फंक्शन काम करना बंद कर देते हैं। यह मरीज पूरी तरह वेंटिलेटर पर निर्भर रहता है जहां उसे आर्टिफिशियल तरीके से ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जाती है और उसके शरीर के बाकी ऑर्गन काम कर रहे होते हैं। अधिकतर हेड इंजरी और ब्रेन ट्यूमर के मरीजों के साथ यह स्थिति बनती है। इस स्थिति में मरीज के सभी ऑर्गन दान किए जा सकते हैं।
वहीं दूसरी तरफ कार्डियक डेट में हॉट पंप करना बंद कर देता है। शरीर में रक्त संचार होना बंद हो जाता है और शरीर के ऑर्गन भी करना बंद कर देते हैं। स्थिति में अंगदान संभव नहीं होता।