शिमला, 14 जनवरी: हाल ही में हिमाचल प्रदेश में प्रवास के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को भांग के रेशे से बनने वाली ‘चप्पलें’ पसंद आ गई थी। तुरंत ही सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को ये चप्पलें काशी विश्वनाथ के पुजारियों, सेवादारों व सुरक्षा कर्मियों के लिए भेजने का आग्रह कर दिया। हाल ही में कुल्लू प्रशासन ने 100 जोड़ी चप्पलें प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी हैं, ताकि इन्हें काशी विश्वनाथ धाम में भिजवाया जा सके।
लाजमी तौर पर आपके जहन में एक सवाल उठ रहा होगा कि इन चप्पलों की क्या खासियत है, जिसके मुरीद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो गए। दरअसल, कुल्लू की स्थानीय बोली में इसे ‘पूहल’ कहा जाता है। ये चप्पल आरामदेह होने के साथ-साथ पवित्र भी हैं। हाल ही में वाराणसी दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने पाया था कि खडाऊ के इस्तेमाल से पुजारियों व सेवादारों को काफी दिक्कतें आ रही थी।
मंडी-कुल्लू में पूहलों को भांग के रेशे के साथ-साथ जड़ी बूटियों से तैयार किया जाता है। इन्हें पवित्र तो माना ही जाता है। साथ ही इन्हें पहनकर देवस्थल के भीतर जाने में कोई पाबंदी नहीं होती। लिहाजा, काशी विश्वनाथ के पुजारियों, सेवादारों व सुरक्षाकर्मियों के लिए खडाऊ का बेहतरीन विकल्प है। भांग के पत्ते के तने के साथ-साथ ब्यूल के रेशों का भी इस्तेमाल होता है। ऐसा बताया गया है कि एक पूहल को बनाने में 3 से 4 घंटे लग जाते हैं।
बता दें कि मंडी व कुल्लू के तमाम देवी-देवताओं के मंदिरों में पुजारी इन्हीं पूहलों का इस्तेमाल करते हैं। महिलाएं भी सर्दियों के दौरान पूहलें पहनती हैं।
ऐसा पता चली थी प्रधानमंत्री को खासियत….
27 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंडी पहुंचे थे। मौका था, सरकार के चार साल पूरे होने के जश्न का। इस दौरान प्रदर्शनियां भी लगाई गई थी। एक स्टाॅल पर प्रधानमंत्री को पूहलें भी नजर आई। इसके बाद इससे जुड़ी तमाम जानकारी को प्रधानमंत्री ने जुटाया। प्रधानमंत्री ने विस्तृत रूप से जानकारी लेने के बाद इसकी डिमांड की।
भांग की खेती पर बहस…
हिमाचल में भांग की खेती को वैध करने को लेकर लंबे अरसे से बहस चली आ रही है। एनडीए-1 की सरकार में भाजपा के शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद वीरेद्र कश्यप ने सदन में भी इसकी वकालत की थी। लेकिन एक तबका नहीं चाहता है कि इस खेती को प्रोत्साहित किया जाए। भांग का इस्तेमाल दवा उद्योगों में तो हो ही सकता है। बल्कि इसके रेशे से चप्पलों व वस्त्रों की डिमांड विदेशों में भी है। मंदिर परिसर में चमड़े व रबर से बने जूतों का उपयोग वर्जित होता है, लेकिन भांग से बनी चप्पलों को पवित्र माना जाता है।