नाहन, 07 जनवरी : कड़कती ठंड में चाय की चुस्की लेते “चाय लवर्स” कहीं भी दिखाई दे जाते हैं। खास तौर पर सर्दियों में पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में चाय की डिमांड काफी रहती है। वैसे तो चाय का जायका सबका अलग-अलग होता है। मगर भट्टी की चाय की तो बात ही अलग होती है। शायद, आधुनिक समय में भट्टी पर चाय बनाने वाले भी इक्का दुक्का ही होंगे।
सोचिए,अगर किसी के पास कमर्शियल जगह पर दुकान होगी तो क्या वो भट्टी में कोयले तपाकर चाय का कारोबार करेगा,शायद आपका जवाब “न” में हो सकता है, क्योंकि बस स्टॉप जैसी जगह पर कोई भी मुनाफे वाला कारोबार किया जा सकता है। इसके विपरीत 1621 में बसे शहर में एक बेटा अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहा है। इस सवाल पर बोले, दो वक्त की रोटी सही तरीके से चल रही है, बस इतना ही काफी है।
ऐसा भी नहीं है कि गर्मियों में कारोबार बदल जाये वैसे ही जून के महीने में भट्टी तपती है, जैसा की सर्दियों में। 1968 में पवन के पिता कश्मीर चंद ने चाय की दुकान खोली थी, बेटे ने 1980 में इस कारोबार को संभाला। फर्क सिर्फ इतना है कि पिता जी मिट्टी की भट्टी पर चाय बनाते थे लेकिन बेटे को बाद में सीमेंट की भट्टी बनवानी पड़ी थी।
लिटन मैमोरियल के नीचे स्पेशल चाय को बनाने में पवन माहिर है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अधेड़ उम्र के पवन को भट्टी पर चाय बनाने का हुनर विरासत में मिला है। भट्टी की चाय के मुरीद घंटों इंतजार करने को तैयार रहते हैं। सुबह-सुबह कश्मीरी टी स्टाल पर चाय पीने वालों की लाइन लगी रहती है। दाम भी किफायती हैं। मात्र 10 रुपए में ही स्वादिष्ट चाय की चुस्कियां ली जा सकती हैं।
कश्मीरी की चाय न केवल स्वाद में सबसे अलग है, बल्कि इसे एक बार पीने वाला रोजाना यहां आना चाहता है। यहां तक की चाय न पीने वाले भी एक बार इसका स्वाद चख लें तो यकीनन चाय के तलबगार हो जाए। पवन ने आधुनिकता की दौड़ में गैस सिलेंडर, इंडक्शन इत्यादि का इस्तेमाल करने से परहेज ही रखा। पवन पिता की चाय का स्वाद आज भी बरकरार रखे हुए हैं। चाय की तलब रखने वाले तड़के ही दुकान में पहुंच जाते हैं। कई बार तो टी लवर्स भट्टी जलने का इंतजार भी करते नजर आते हैं।
सुबह 6 बजे से पवन चाय बनाने की तैयारी करते हैं। भट्टी जलाने का कोयला अंबाला से मंगाया जाता है। एक बार भट्टी अच्छी तरह सुलग जाए तो दिन भर इस पर चाय बनती है। चाय का स्वाद इतना अलग है कि तलबगारों को एक प्याली से संतुष्टि नहीं मिलती।
आमतौर पर चाय को बनाने में चीनी, चायपत्ती व दूध का इस्तेमाल होता है। मगर पवन की भट्टी, उनका मुस्कुराता चेहरा व सौम्य स्वभाव चाय में अलग ही मिठास भर देता है।