नाहन, 3 जनवरी : हालांकि, शहर के प्राचीन श्री जगन्नाथ मंदिर को लेकर ये धारणा आम रही है कि समूचे उत्तर भारत में महाप्रभु का ये एकमात्र मंदिर है। लेकिन, ये बात अब धारणा नहीं रह गई है। शिलाई में मिस्त्री के घर जन्मीं बेटी नीलम ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में बतौर सहायक प्रोफैसर कार्यरत डाॅ. अंजली वर्मा के मार्गदर्शन में मंदिर से जुड़े इतिहास को लेकर एक शोध किया।
ये शोध, हाल ही में यूरोपियन बुलेटिन ऑफ हिमालयन रिसर्च के 57वें संस्करण में प्रकाशित हो गया है। इसमें ये तस्दीक हो गई है कि वास्तव में ही समूचे उत्तर भारत में भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर नाहन के साथ-साथ नारायणगढ़ में भी है। दरअसल, रियासतकाल में नारायगढ़ भी सिरमौर रियासत का ही एक हिस्सा था। शहर में तत्कालीन शासक बुध प्रकाश ने मंदिर का निर्माण 1681 में करवाया था। नारायणगढ़ (मौजूदा में हरियाणा का हिस्सा) में मंदिर का निर्माण 1767 में हुआ।
बता दें कि शोधपत्र एक साथ फ्रांस, जर्मनी, इंगलैंड समेत 7 देशों में प्रकाशित हुआ है। उड़ीसा के शासकों व अन्य भारतीय समकालीन शासकों के साथ महत्वपूर्ण धार्मिक परंपराओं का अध्ययन इस शोध का महत्वपूर्ण पहलू है। इसमें ये भी खुलासा हुआ है कि राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद मध्यकालीन भारत में देव परंपराओं व आस्थाओं का एक-दूसरे राज्यों में आदान-प्रदान साधुओं के माध्यम से होता था।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में नीलम का कहना था कि भगवान जगन्नाथ का सिरमौर में स्थापित होना, पंथ से संस्कृति का प्रतीक नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि जैसा कुल्लू व अन्य पहाड़ी राज्यों में हुआ है, वैसा इस मामले में नहीं है। स्पष्ट शब्दों में समझे तो स्थानीय देवी-देवताओं के दर्जे को सर्वोपरि ही रखा गया। इसे अतिव्यापी नहीं किया गया। उनका ये भी कहना था कि ये शोधपत्र 1600 से 1900 ई0 के काल में भारत के पूर्वी राज्य उड़ीसा से लेकर पश्चिमी हिमालय की पहाड़ी रियासतों के शासकों में एक महत्वपूर्ण कड़ी को स्थापित करता है।
ये शोधपत्र सिरमौरी शासकों की देव आस्था के प्रति अटूट लगाव को भी साबित करता है। सिरमौर रियासत के राजस्थान से आए शासकों का भगवान श्री जगन्नाथ को स्थापित करना, इस शोध का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बता दें कि शहर की स्थापना 1621 में हुई थी।
श्री बाबा बनवारी दास….
1621 में सिरमौर रियासत की राजधानी श्री बाबा बनवारी दास जी के आदेश पर ही नाहन में बनी थी। ऐसा भी बताया जाता है कि बाबा ने शासक को महल के निर्माण के लिए उस जगह को राजमहल के लिए सौंप दिया था, जहां वो तप किया करते थे। इसके बाद बाबा बनवारी दास ने उस जगह पर अपनी कुटिया बना ली, जहां इस समय ये मंदिर स्थित है।
शोध में इस बात का खुलासा भी किया गया है कि बाबा बनवारी दास ने शासक कर्म प्रकाश को राजधानी को स्थापित करने से पहले श्री जगन्नाथ पुरी से भगवान की मूर्तियों को लाकर स्थापित करने के भी आदेश दिए थे। 1621 में छोटा सा मंदिर राजा कर्म प्रकाश द्वारा बनवा दिया गया। इसे 1681 में राजा बुध प्रकाश ने भव्य रूप प्रदान किया। 1767 में सिरमौर रियासत के ही नारायणगढ़ में भी मंदिर का निर्माण हुआ। बता दें कि बाबा बनवारी दास जी की समाधि आज भी प्राचीन मंदिर के प्रांगण में विद्यमान है।
निष्कर्ष…
शोध में कुल मिलाकर ये बात साबित होती है कि श्री जगन्नाथ पुरी से नाहन का गहरा संबंध है। मंदिर को लेकर इस तरह का शोध पहली बार किया गया है। बाबा बनवारी दास से जुड़ी स्मृतियां इस मंदिर में आज भी मौजूद हैं। शोध में ये भी साबित हुआ है कि द टे्रल आॅफ एन इंस्टर्न डेयटी इन इ वैस्टर्न हिमालयन में ठाकुरद्वारों की स्थापना भी श्री जगन्नाथ से ही जुड़ी है।
उधर, इतिहासकार कंवर अजय बहादुर सिंह ने इस शोध पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह खुशी की बात है कि शोधकर्ता ने इस मंदिर के इतिहास पर रिसर्च की। उन्होंने कहा कि सिरमौर रियासत के शासक देव आस्थाओं के प्रति गहरा लगाव रखते थे।