नाहन, 31 दिसंबर : क्या, भाजपा ने ट्रांसगिरि के मुद्दे पर दोबारा राजनीतिक रोटियां सेंकनी शुरू कर दी हैं। ये सवाल, कई कारणों से उठ रहा है। जयराम सरकार के चार साल पूरा होने से चंद रोज पहले अचानक ही पार्टी प्रदेश अध्यक्ष द्वारा दिल्ली में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया से मुलाकात की जाने लगी। साथ ही केंद्रीय मंत्रियों से भी इस मुद्दे को उठाने का तर्क दिया जाने लगता है। दशकों से लंबित इस मामले ने विगत 10 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखें हैं।
ट्रांसगिरि के कई इलाकों में मांग को लेकर खुमलियां भी आयोजित होने की खबरें हैं। हिमाचल चुनावी दहलीज पर पहुंच चुका है। 2022 के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगर सिरमौर की बात की जाए तो ट्रांसगिरि का मुद्दा 5 में से चार विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इसमे शिलाई, श्री रेणुका जी, पांवटा साहिब व पच्छाद विधानसभा क्षेत्र है। स्पष्ट शब्दों मे समझेें तो ट्रांसगिरि के बाशिंदें इन हलकों में हार-जीत का फैसला करते हैं। बशर्ते संगठित होकर इसी मुद्दे पर वोट डले।
शिलाई विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से ही गिरिपार में आता है। हालांकि, रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र का 80 फीसदी इलाका गिरिपार में ही है। पुनर्सीमांकन के बाद सैनधार व धारटीधार पंचायतें इस विधानसभा क्षेत्र में शामिल हुई हैं। पच्छाद हलके में स्थिति 50-50 है। इसी तरह पांवटा साहिब में भी 30 से 40 फीसदी इलाका गिरिपार का है। बड़ी बात ये है कि राजनेता सीधे तौर पर इस बात को स्वीकार नहीं करते कि ये एक टेढ़ी व जटिल प्रक्रिया है। ऐसा करने की सूरत में नेताओं के हाथ से मुद्दा फिसल सकता है।
उधर, जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो कांग्रेसी नेता भी इस मुद्दे का सियासी फायदा उठाने की कोई कोशिश नहीं गंवाएंगे। बड़ा सवाल ये है कि चुनाव के समय में ही ये मु्द्दा क्यों सतह पर आता है। चार साल तक सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के नेता क्यों चुप्पी साधे रहते हैं।
कुल मिलाकर अब गिरिपार की जनता को ही ये तय करना है कि दशकों से चले आ रहे इस मुद्दे पर चुनाव में क्या रणनीति तय करनी है।