नाहन, 19 दिसंबर : सिरमौर के पच्छाद का “हरड़” मशहूर है। भारत (India) के साथ-साथ इसकी डिमांड सरहद पार पाकिस्तान (Pakistan) मे भी है। हरड़ का प्रयोग आयुर्वेदिक दवाइयों के अतिरिक्त त्रिफला (Triphala) बनाने में किया जाता है। भारत तथा पाकिस्तान के लोग “हरड़” का उपयोग पाचन शक्ति मजबूत (Strong digestive Power) करने की औषधि (Medicine) के रूप में भी करते हैं।
सिरमौर में उत्पादित हरड़ (Myrobalan) का दाम इन दिनों 15 से 25 प्रति किलो मिल रहा हैं, उचित दाम न मिलने की वजह से इस साल उत्पादक मायूस है। किसानो द्वारा हरड़ की 4 ग्रेड तैयार किये जाते है। जिन्हे ए,बी,सीव डी वर्गों में बांटा जाता है। इसके मुताबिक ही किसानों से हरड़ आढ़ती खरीदते हैं। इसके अतिरिक्त मांग पर कुछ किसान हरड़ की भुनाई भी करते हैं। भुनी (Roasted) हुई हरड़ का मूल्य 70 से लेकर 100 प्रति किलो तक चल रहा है। लंबे समय से भारत व पाकिस्तान के रिश्तो ( Indo Pak Relations) में कड़वाहट (bitterness) से सिरमौर के किसानों को हरड़ उत्पादन में नुकसान उठाना पड़ रहा है। रिश्तो ( Relations) में लगातार कड़वाहट से पाकिस्तान में भारी मांग के बावजूद इसका निर्यात नहीं हो पा रहा है।
सिरमौर के किसान हरड़ को सस्ते दामों पर बेचने को मजबूर है। पाकिस्तान में सिरमौर के हरड़ की काफी मांग रहती है। जानकारों का मानना है कि पंजाब तथा राजस्थान के कुछ आढ़ती हरड़ (Tropical almond) को पाकिस्तान भेजते हैं। मगर उत्पादकों को बावजूद इसके अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं। सिरमौर के पच्छाद व नाहन उपमंडल के कुछ इलाको की जलवायु हरड़ की पैदावार (Cultivation) के लिए उपयुक्त है। मगर प्रदेश सरकार ने हरड़ उत्पादन के लिए कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई।
प्राचीन औषधीय विज्ञान (ancient medicine) के अनुसार, हरड़ ने महान प्रभाव की वजह से ‘दवाओं के राजा’ होने की प्रतिष्ठा भी अर्जित की है, क्योंकि यह शरीर में तीनों दोषों – वात, पित्त और कफ को अच्छी तरह से संतुलित करती है। आयुर्वेद में इसे ‘रसायन प्रभाव’ कहते हैं, एक जड़ी बूटी या दवा जो रोग को ठीक करती है, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। समय से पहले बुढ़ापे के लक्षणों से भी रक्षा करती है।
हरड़ उत्पादन के लिए किसानों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। कुछ पौधे (Plants) तो प्राकृतिक (Natural) रूप से किसानों के खेतों में उग जाते हैं। हाइब्रिड हरड़ (Hybrid Myrobalan) की प्रजाति के पौधे भी लगाए जाने लगे है। हरड़ का उत्पादन सिरमौर के अतिरिक्त कांगड़ा के कुछ क्षेत्रों तथा सिरमौर की सीमा के साथ लगते हरियाणा के मोरनी हिल्स (Morni Hills) में भी होती है। सिरमौर के किसान हरड़ को लाइसेंस (Licensce) प्राप्त आढ़ती (agent )को बेचते हैं, इसके बाद ये दिल्ली, अमृतसर, होशियारपुर व उदयपुर मंडियों में पहुंचती हैं।
सिरमौर के किसान प्रदेश सरकार से लंबे समय से मांग (Demand) कर रहे हैं कि हरियाणा (Haryana) की मोरनी हिल क्षेत्र की तरह हिमाचल में भी किसानों (Famers) को हरड़ (Harad) बेचने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। हिमाचल में किसानों को हरड़ बेचने के लिए वन विभाग से लाइसेंस लेना पड़ता है,इसकी एक लंबी प्रक्रिया होती है। जिसके चलते किसान हरड़ को सस्ते दामों पर आढ़तियों को बेच देते हैं।