नाहन, 4 दिसंबर : वैसे तो शनिवार को सूर्य की किरणों में अलग ही चमक कई जगह महसूस की जा रही थी, मगर भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि की तपोस्थली ‘तपे का टीला’ तो सोने की तरह चमक रहा था। ददाहू व समीपवर्ती इलाके के लोगों ने इस दुर्लभ नजारे को अपने मोबाइल में कैद कर लिया। शुक्रवार शाम को भी तपे का टीले की चमक अलग थी।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक आर्यव्रत शासक से तंग आकर महर्षि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ इस टीले पर आकर रहने लगे थे। यहां आकर दोनों ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने ऋषि को पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। इसी स्थान को भगवान परशुराम की जन्मस्थली भी माना गया है।
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मां के गर्भ से भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार के रूप में जन्में थे। इसी स्थान से मां रेणुका ने छलांग लगाई थी, जो आज भी एक लेटी हुई नारी की आकार की झील के रूप में नजर आती है। तपे का टीला से इसे महसूस भी किया जा सकता है। यहां से देखने पर श्री रेणुका जी झील सोई हुई नारी की आकृति की लगती है।
ऐसी धारणा है कि माता रेणुका की चीख सुनकर महेंद्र पर्वत पर तपस्यारत भगवान परशुराम का ध्यान भंग हो गया था। वो तुरंत ही चीख की दिशा में दौड़ पड़े थे। जब वो यहां पहुंचे तो मां ने वृतांत सुनाया, फिर झील में समा गई। पिता के वध की बात सुनते ही महा दयालु भगवान परशुराम महा क्रोधित हो गए थे। उन्होंने सेना सहित सहस्त्रबाहु को मार गिराया।
उधर एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत करते हुए ददाहू के रहने वाले इंद्र प्रकाश गोयल ने कहा कि उन्होंने जीवन में तपे के टीले पर इस तरह का नजारा नहीं देखा है। वहीं, ददाहू के पत्रकार अमित अग्रवाल ने कहा कि ये एक दुर्लभ नजारा था, जो अपने जीवन में पहली बार महसूस किया।