शिमला, 30 नवंबर : जेसीसी की बैठक में आरक्षी के पद पर तैनात पुलिसकर्मियों की अनदेखी का मामला गर्माया हुआ है। कर्मियों ने सरकारी मैस का खाना त्यागा हुआ है। चूंकि पुलिस बल के कर्मियों को अपनी मांग रखने के लिए कोई आंदोलन करने का भी हक नहीं है, लिहाजा ‘अन्न त्याग आंदोलन’ शुरू किया हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पुलिस के ये जवान ही असल हीरो हैं। कोविड संकट के दौरान अमूल्य योगदान दिया, अब सरकार को पे बैंड से जुड़ी मांग को पूरा करने में जाने क्या मुश्किल है।
मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में भी निराशा ही मिली। खाना त्यागने की रिपोर्ट रोजाना रोजनामचा में भी डाली जा रही है। मिली जानकारी के मुताबिक 2013 में भर्ती होने वाले कर्मियों को 5910 प्लस 1900 का वेतनमान दिया गया था। दो साल बाद 10,300 प्लस 3200 कर दिया गया। लेकिन 2015 के बाद से भर्ती होने वाले आरक्षियों को पुराना पे बैंड ही दिया जा रहा हैै। 10,300 प्लस 3200 के लिए 8 वर्ष का प्रोबेशन पीरियड रखा गया है। अंदरखाते पुलिस कर्मियों का दर्द छलक कर सामने आ रहा है।
बड़ा प्रश्न यही है कि जब अन्य विभागों के कर्मचारियों को दो साल बाद वेतनमान मिल जाता है तो उन्हें क्यों नहीं। पुलिस जवानों की कोई यूनियन भी नहीं है। न ही कोई विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं। इसकी वजह उनके ऊपर लागू होने वाले आर एंड पी रूल्स हैं। सोशल मीडिया में अपरोक्ष तौर पर पुलिस कर्मियों की भावनात्मक संदेश भी सामने आ रहे हैं। इसमें कहा जा रहा है कि आपकी रक्षा में तैनात ये जवान किसके आगे फरियाद करें।
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माना ये भी जा रहा है कि बेशक ही आरक्षी के पद पर तैनात कर्मी खुद आंदोलन खड़ा नहीं कर सकते, लेकिन उनके परिवार वालों को नहीं रोका जा सकता। इतना तय है कि इस मामले में सरकार में भी खलबली है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क को मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में सरकारी मैस में खाना न खाने के फैसले पर बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी अडिग हैं। मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद भी निराशा ही पैदा हुई।
अंदरखाते ये भी हैरानी जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री के कहने के बावजूद भी इस मुद्दे पर बैठक नहीं हो सकी। उधर, कांग्रेस के युवा विधायक विक्रमादित्य सिंह इस मसले पर पुलिस कर्मियों के साथ खड़े हो गए हैं। इससे पहले विधायक राकेश सिंघा ने भी पुलिस कर्मियों की मांग को सही ठहराया था।