चंडीगढ़, 29 नवंबर : पीजीआई के बाहर करीब 21 साल से लंगर लगाने वाले पदमश्री जगदीश आहूजा ने सोमवार को संसार त्याग दिया। हर उस गरीब की दुआ उनके साथ थी, जिनको इतनी लंबी अवधि में भूखे होने पर खाना परोसा था। एक साल पहले ही उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पदमश्री से अलंकृत किया गया था। 4-5 हजार कहना तो आसान है, लेकिन नियमित तौर पर इतने लोगों को रोजाना लंगर परोसना आसान कतई नहीं हो सकता।
देश के बंटवारे के वक्त मात्र 12 साल की उम्र में पंजाब आ गए थे। रेलवे स्टेशन पर नमकीन तक बेची। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक परियाला में उन्होंने गुड व फ्रूट भी बेचा। 1956 में लगभग 21 साल की उम्र में उस समय चंडीगढ़ आ गए थे, जब इस शहर को योजनाबद्ध तरीके से बनाने की कवायद शुरू हुई थी। यहां भी रेहड़ी पर केले बेचने शुरू किए। कैंसर की चपेट में आने से पहले वो खुद गाड़ी में दो से तीन हजार लोगों को खाना खिलाते थे।
जीवन के लंबे सफर में पदमश्री जगदीश आहूजा ने चंडीगढ़ में कई संपत्तियां भी बनाई, लेकिन लंगर चलाने के लिए धीरे-धीरे अपनी संपत्तियां बेच दी। 21 सालों के इतिहास में केवल कोविड के दौरान पीजीआई के बाहर 7 दिन का लंगर रोकना पड़ा था। उनकी इच्छा थी कि वो चंडीगढ़ में जरूरतमंदों के लिए सराय का निर्माण भी करवाएं। एक साक्षात्कार में लंगर वाले बाबा के नाम से मशहूर जगदीश आहूजा ने कहा था कि जब वो लोगाों को सड़कों पर भूखे पेट देखते हैं तो बेचैनी होने लगती हैै।
ये भी जानकारी है कि उन्होंने अपने बेटे के 8वें जन्मदिन पर 100 से 150 बच्चों को खाना खिलाना शुरू किया था। 18 साल तक सैक्टर-23 में घर से लंगर चलाया। 2001 में पीजीआई चंडीगढ़ के बाहर हर दिन लंगर लगाना शुरू कर दिया था। हर कोई दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना कर रहा है।