शिमला, 27 नवंबर : ये साफ जाहिर है, जेसीसी की बैठक करवा सरकार ने 2022 के विधानसभा चुनाव के डैमेज को कंट्रोल करने की कोशिश की है। बेशक ही सरकार ने वेतन आयोग को लागू करने का बड़ा फैसला लिया है, लेकिन 24 घंटे जनता की सेवा के लिए तत्पर रहने वाले पुलिस कर्मी इस बैठक के फैसलों से नाखुश हैं।
ताजा जानकारी के मुताबिक सरकार के रवैये से नाराज 2015 के बाद विभाग में नियुक्तियां हासिल करने वाले कर्मियों ने पुलिस विभाग की सरकारी मैस में खाना न ग्रहण करने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि जब तक जायज मांगों को स्वीकार नहीं किया जाता, तब तक विभाग की सरकारी मैस में खाना ग्रहण नहीं किया जाएगा। इस निर्णय में कर्मचारियों के परिवार वाले भी साथ हैं। कर्मचारियों के परिजनों ने ये भी चेतावनी दी है कि अगर जायज मांगों को जल्द ही सरकार ने नहीं माना तो आने वाले चुनाव के मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे व भाजपा का कड़ा विरोध करेंगे।
पुलिस कर्मियों का ये भी कहना है कि विभाग में तैनात अन्य कर्मचारी भी वेतन विसंगतियों से जूझ रहे कर्मचारियों का समर्थन कर रहे हैं।
बड़ा सवाल ये उठाया जा रहा है कि अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण की अवधि तीन साल से घटाकर दो साल की जा रही थी तो पुलिस कर्मियों के प्रोबेशन पीरियड को लेकर क्यों नहीं सोचा गया। विधायक राकेश सिंघा ने एक फेसबुक पोस्ट में पूछा कि पुलिस जवानों के 8 साल के काॅन्ट्रैक्ट का क्या हुआ, क्या वे कर्मचारी नहीं हैं। ये विदित है कि संगठित होने को लेकर पुलिस कर्मियों के हाथ बंधे हुए होते हैं, लिहाजा वो खुलकर सामने नहीं आ सकते। लेकिन पता चला है कि समूचे प्रदेश में 8 साल का प्रोबेशन पीरियड पूरा कर रहे पुलिस कर्मियों में इस बात को लेकर रोष है कि उनके बारे में क्यों नहीं सोचा गया।
पुलिस कर्मियों ने अंदरखाते कहा कि 2015 के बाद भर्तीशुदा कर्मचारियों में हताशा बढ़ती जा रही है। ये भी कहा जा रहा है कि नया वेतनमान लागू करने के दौरान उनकी मांगों को दरकिनार किया गया। साथ ही सौतेला व्यवहार भी हुआ। कर्मचारियों का ये भी कहना था कि पुलिस भी देश व प्रदेश का हिस्सा है। अन्य विभागों में अनुबंधकाल कम हो सकता है, लेकिन पुलिस विभाग के कर्मचारियों के वेतनमान की बढ़ोतरी की समय सीमा को कम नहीं किया जा सकता। कोविड संकट के दौरान 24 घंटे डयूटी पर तैनात रहने वाले पुलिस कर्मियों की अनदेखी सरकार को चुनाव में भारी पड़ेगी।