हमीरपुर, 24 नवंबर : हॉकी की स्टिक को संभालने वाले हाथ रेहड़ी चलाने पर मजबूर हैं। राष्ट्रीय खेल हॉकी की नेशनल खिलाड़ी नेहा सिंह अपनी छोटी बहन निकिता के साथ हमीरपुर बाजार में फास्ट फूड की रेहड़ी लगा रहीं है। यह नेहा का शौक नहीं, बल्कि मजबूरी है। असल मायने में बहनो ने ये साबित कर दिखाया है कि बेटियां अनमोल होती है। दया का पात्र बनने की बजाय स्वाभिमान से विपदा का सामना कर रही है।
कॉलेज की पढ़ाई और खेल के करियर को बीच में छोड़कर नेहा परिवार का पेट पालने पर मजबूर हैं। कुछ माह पहले ही पिता की तबीयत बिगड़ने के बाद वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए। पिता चंद्र सिंह मछली कॉर्नर चलाते थे। पिता के बीमार होने पर परिवार की पूरी जिम्मेवारी नेहा सिंह और उनकी छोटी बहन पर आ गई।
झुग्गी में परिवार के पांच सदस्यों के साथ बकरी और एक मुर्गी
मूलतः मंडी के कोटली के रहने वाले इस परिवार के पास जमीन भी नहीं है, इस वजह से बाजार के बीचो बीच वह एक झुग्गी में वो परिवार के चार अन्य सदस्यों के साथ रह रही हैं। न तो नहाने की कोई व्यवस्था है और न ही शौचालय का कोई प्रबंध। झुग्गी में नेहा बीमार पिता भी रह रहे हैं, जिन्हें डॉक्टर ने स्वच्छ वातावरण में रहने की सलाह दी है। झुग्गी में 5 सदस्यों का परिवार है तो वहीं पिछली तरफ बने बाड़े में एक बकरी और मुर्गी रखी हैं। नेहा के पिता पिछले कुछ समय से बीमार हैं, पहले उनका मेडिकल कॉलेज हमीरपुर में उपचार हुआ, उसके बाद उन्हें टांडा मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया। वह कई महीनों से अब बिस्तर पर हैं। दोनों बेटियां रेहड़ी लगाकर परिवार के रोटी का भी प्रबंध कर रही हैं और पिता की दवाई का भी।
स्कूल और कॉलेज में पढ़ रहा छोटा भाई
नेहा सिंह स्कूली पढ़ाई के दौरान ही साई हॉस्टल धर्मशाला के लिए चयनित हो गई। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के हॉस्टल में रहते हुए राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में नेहा ने सिल्वर मेडल भी अपने नाम किया। हिमाचल की टीम की तरफ से दो नेशनल हॉकी टूर्नामेंट खेले। इसके अलावा पंजाब यूनिवर्सिटी से वेटलिफ्टिंग में भी एक नेशनल गेम में हिस्सा लिया। उभरती हुई खिलाड़ी की किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। पिता अचानक बीमार हुए तो नेहा ने छोटी बहन निकिता जो बीए की पढ़ाई कर रही है,के साथ परिवार का जिम्मा संभाल लिया। छोटा भाई अंकुश है वह बाल स्कूल हमीरपुर में पढ़ रहा है।
पैसे के लिए खेलती है नेहा
परिवार को उम्मीद थी कि बेटी नेहा राष्ट्रीय खिलाड़ी है तो उसे नौकरी मिल ही जाएगी। लेकिन न तो सरकारी नौकरी ही मिली और न ही अब नेहा खेलने के बारे में सोच रही हैं। इतना जरूर है कि जब कभी किसी टीम से खेलने के लिए पैसे मिल जाते हैं तो वह मैच में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो जाती हैं। नेहा का कहना है कि एक मैच खेलने के उन्हें 1500 रुपए और खाने पीने का और रहने का खर्च मिल जाता है। मैच खेलने से मिलने वाले पैसे को भी नेहा पिता के इलाज और परिवार के पालन पोषण पर ही खर्च करती हैं।
भूमिहीन होने पर सरकार
कुछ समय पहले ही भूमिहीन होने पर उन्हें सरकार की तरफ से हमीरपुर नगर परिषद के ही वार्ड नंबर 10 के समीप 4 मरले जमीन आवंटित की गई थी। नेहा की मां निर्मला देवी कहती हैं कि सरकार की तरफ से उन्हें जमीन आवंटित की गई है। अधिकारियों का तो हमें पूरा सहयोग मिल रहा है, लेकिन बेटी को नौकरी न मिलने से उन पर विपदा दोगुना हो गई है। पति के बीमार होने के बाद बेटियों ने किसी तरह से परिवार को संभाला है।
इतना कहते-कहते नेहा की मां की आंखों में आंसू भी आ गए। रुंधे हुए गले से उन्होंने सरकार से बेटी के लिए नौकरी की मांग की है। निर्मला का कहना है कि कमेटी की तरफ से घर के निर्माण के लिए सरकार की तरफ से पैसे दिलाए जाने की बात कही गई है, लेकिन अभी तक पैसे का कोई प्रबंध नहीं हो पाया है। उन्होंने उधार लेकर मकान के निर्माण काम शुरू किया था, लेकिन अब यह काम भी पति के बीमार होने के बाद अधर में लटक गया है।
नेहा का कहना है अब तो खेल में करियर की कोई उम्मीद नहीं है। अब सिर्फ परिवार के गुजारे के लिए वह मैच खेल लेती हैं ताकि कुछ पैसे मिल जाए। आठवीं कक्षा के दौरान ही उनका चयन स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के धर्मशाला हॉस्टल के लिए हो गया था। हॉकी में उन्होंने जूनियर वर्ग में 2 नेशनल खेले हैं और वेटलिफ्टिंग में पंजाब की तरफ से नेशनल स्पर्धा में हिस्सा लिया। उन्होंने सरकार से मांग उठाई है कि जल्द से जल्द घर के निर्माण के लिए उन्हें पैसा मिल जाए तथा सरकार की तरफ से राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले खिलाड़ियों को रोजगार भी दिया जाए।
नगर परिषद हमीरपुर के कार्यकारी अधिकारी किशोरी लाल ठाकुर ने कहा कि यह मामला उनके ध्यान में है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इस परिवार को घर निर्माण के लिए निदेशालय को प्रपोजल भेजी गई है। उम्मीद है कि इस प्रपोजल को जल्द ही मंजूरी मिलेगी।