शिमला, 20 नवम्बर : हिमाचल सरकार एक बार फिर से भारी-भरकम कर्ज लेने जा रहा है। इस बार प्रदेश सरकार दो हजार करोड़ का कर्ज लेगी। इस संबंध में राज्य सरकार की तरफ से अलग-अलग चार अधिसूचनाएं जारी हुई हैं। प्रत्येक अधिसूचना में 500 करोड़ का कर्ज अलग-अलग अवधि के लिए लिया जा रहा है।
यह कर्ज क्रमशः 9, 10, 11 और 12 वर्ष की अवधि के लिए लिया गया है। चालू वितीय वर्ष में यह तीसरा मौेका है, जब प्रदेश सरकार कर्ज उठाने जा रही है। कर्ज लेने के लिए प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार की भी स्वीकृति ले ली है। इसके लिए हिमाचल सरकार की प्रतिभूतियों की नीलामी होगी, इन्हें भारतीय रिजर्व बैंक विभिन्न बोलीदाताओं को आमंत्रित करेगा। प्रदेश सरकार ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान छह हजार करोड़ रुपये कर्ज लिया था।
प्रदेश सरकार पर पहले से ही 61 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। अब यह कर्ज करीब 63 हजार करोड़ रुपए के पार हो जाएगा। हिमाचल प्रदेश में कर्ज के आंकड़ों पर नजर डालें, तो यह राज्य के बजट से कहीं ज्यादा है। प्रदेश में 63 हजार करोड़ रूपये का कर्ज है, जबकि राज्य का बजट 50 हजार करोड़ रूपये का है।
राज्य सरकार का तर्क है कि दो हजार करोड़ कर्ज को लेने के पीछे का कारण विकास कार्यों के लिए होने वाला खर्च है। विकास कार्यों के लिए लिया गया कर्ज गलत नहीं है। लेकिन माना जा रहा है कि ताजा कर्ज को सरकारी कर्मचारियों को दिए जा रहे नए वेतन, महंगाई भत्ते और अन्य मदों पर खर्च करने लिए लिया जा रहा है।
दरअसल कर्मचारियों की जेसीसी की बैठक 27 नवंबर को प्रस्तावित है। इसमें कर्मचारियों से संबंधित कई फैसले लिए जाने हैं, जिसके लिए सरकार को अतिरिक्त बजट की जरूरत है। हिमाचल सरकार के सामने पंजाब के छठे वेतन आयोग की ओर से जारी किए गए नए वेतनमान की तर्ज पर कर्मचारियों को वेतन देने का दबाव है। कर्मचारियों और पेंशनरों के वेतन, पेंशन के अलावा महंगाई भत्ता तथा अन्य देनदारियों के लिए सरकार को कर्ज की जरूरत पड़ रही है।
बता दें कि हिमाचल में सतारूढ़ हर सरकार कर्ज लेती आ रही है। दिसम्बर 2017 में जब भाजपा की सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब सरकार पर करीब 45 करोड़ का कर्ज था, जो कि अब बढ़कर 63 हजार करोड़ पहुंच जाएगा।