शिमला, 11 नवम्बर : प्रदेश सरकार ने संस्कृत को तो दूसरी भाषा घोषित कर दिया लेकिन पहाड़ी को भाषा का दर्जा देने के लिए कोई कदम अभी तक क्यों नहीं उठाया। ये कहना है अर्श धनोटिया का जिन्होंने प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी और मांग राखी थी कि पहाड़ी को हिमाचल की आधिकारिक भाषा घोषित किया जाए। याचिका कर्ता के वकील भवानी प्रताप कुठलेरिया नें इस बारे में कई तथ्य कोर्ट के सामने रखे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश में संस्कृत बोलने वाले सिर्फ 936 लोग हैं जबकि पहाड़ी 40 लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। पर फिर भी पहाड़ी को राज्य में भाषा का दर्जा न देकर संस्कृत को दे दिया गया।
याचिका में नई शिक्षा नीति 2020 के तहत पहाड़ी (हिमाचली) और अन्य स्थानीय भाषाओँ को पाठशालाओं में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम बनाये जाने, 2021 कि जनगणना में पहाड़ी (हिमाचली) को अलग श्रेणी में रखने और साथ ही साथ लोगों, खासकर के युवा वर्ग को जागरूकता शिविरों के द्वारा पहाड़ी को प्रोत्साहन देने और उसे राज्य कि मातृ भाषा बनाने की मांग रखने के बारे में भी कहा गया। जिसके जवाब में हाई कोर्ट ने इस संदर्भ में सोमवार को आदेश जारी किए हैं।
न्यामूर्ति मुहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति सबीना की पीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा “कोर्ट राज्य सरकार को तब तक कोई निर्देश नहीं दे सकते जब तक यह साबित न हो कि पहाड़ी (हिमाचली) की अपनी एक संयुक्त लिपि है और पूरे राज्य में एक ही पहाड़ी बोली प्रचलित है। हालांकि, याचिकाकर्ता को एक सामान्य पहाड़ी (हिमाचली), सामान भाषा के ढांचे और सामान टांकरी लिपि को बढ़ावा देने की दृष्टि से एक शोध करने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार के भाषा कला और संस्कृति विभाग से संपर्क करने की स्वतंत्रता है और यदि याचिकाकर्ता प्रतिवादी-राज्य के पास, भाषा एवं संस्कृति विभाग के अतिरिक्त प्रमुख सचिव के माध्यम से पहुँचता है, तो यह विभाग के ऊपर है कि वह उसका निवारण कानून के हिसाब से करे।”
क्या है पहाड़ी भाषा का मतलब
अर्श धनोटिया का कहना है कि पहाड़ी (हिमाचली), हिमाचल प्रदेश में बोली जाने वाली पश्चिमी पहाड़ी बोली ऋंखला के लिए इस्तेमाल होने वाला संयुक्त पारिभाषिक शब्द है तथा इसमें मुख्यतः कांगड़ी, मंडेयाली, चम्बयाली, कुल्लवी, म्हासु पहाड़ी और सिरमौरी आती हैं। उसके अनुसार हिमाचल प्रदेश के गठन के समय से ही पहाड़ी (हिमाचली) को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग होती रही है। इसे आधिकारिक तौर पर 37 ऐसी अन्य भाषाओं के साथ सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें अनुसूचित श्रेणी में रखने की पहले से ही माँग है। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश विधानसभा में वर्ष 1970 और 2010 में इस संदर्भ में प्रस्ताव भी पारित किए जा चुके हैं।