घुमारवीं/सुभाष कुमार गौतम : भारतवर्ष में सबसे बड़ा पर्व दीपावली है। लोग इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिमाचल प्रदेश में यह पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। बड़ी दीपावली, छोटी दीपावली व बूढ़ी दीपावली के रूप में इस पर्व की पहचान है, लेकिन वास्तव में निचले जिलों में पर्व का पुराना प्रचलन लगभग खत्म हो गया है। आधुनिक चकाचौंध के कारण लोग घरों तक ही सीमित हो रहे हैं।
कुछ साल पहले बच्चे इस पर्व को आठ दिन पहले मनाना शुरू करते थे, मगर वो आपसी मेलजोल का प्रचलन ही समाप्त हो गया है। कुम्हार घर-घर आकर दिये व अन्य जरूरी सामान दे जाया करते थे। बदले अनाज ले जाया करते थे।
बच्चे आठ दिन पहले खेतों में जाकर रात को “घेरसू” जलाया करते थे। चीड़ के पेड़ों पर बड़ी-बड़ी चला खड़िया लगती है, जो गोल आकार की होती है, जिन्हे रस्सी से बांध कर आग में डाला जाता था इसे बच्चे अपने चारों तरफ घुमाते थे। आठ दिनों तक बच्चे खेतों में इकट्ठा हो जाते थे और इन्हे जलाया करते थे, लेकिन अब ये प्रचलन खत्म हो गया है।
आधुनिक चकाचौंध में बच्चे इस कल्चर से दूर हो गए और इंटरनेट मोबाइल तक सीमित रह गए हैं। उस समय मनोरंजन का कोई साधन नहीं होता था लिहाजा गांव के बच्चे रात को इकट्ठा होकर खेलते थे, समय बदला तो दीपावली का महत्व भी बदल गया।