शिमला, 03 नवंबर : क्या, सत्ता के घमंड व अति आत्मविश्वास ने उप चुनाव में भाजपा की लुटिया को डुबो दिया। अमूमन ये इतिहास रहा है कि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की उप चुनाव में इस तरह की शर्मनाक हार नहीं होती। मंडी को 50-50 माना जा रहा था तो दो विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त थी। ये हार, इस कारण भी शर्मनाक साबित हुई है, क्योंकि जहां कांग्रेस सहानुभूति हासिल कर जीतने में सफल रही है, वहीं कोटखाई-जुब्बल में बीजेपी ने सहानुभूति का भी मौका खो दिया।
ये गलतियां…
मंडी… हार का अंतर मात्र एक प्रतिशत का रहा। चूंकि सत्तापक्ष के पास कई अतिरिक्त व्यवस्थाएं होती हैं। ऐसे में भाजपा अपने खुफिया नेटवर्क के जरिए ये कैसे पता लगाने में चूक गई कि पौने 2 प्रतिशत के आसपास मतदाता नोटा का इस्तेमाल कर लेंगे। ये आंकड़ा कांटे की टक्कर में मामूली नहीं माना जा सकता। इसके अलावा एक निर्दलीय प्रत्याशी ने 0.48 प्रतिशत मत हासिल किए। संभवतः भाजपा अपने अति आत्मविश्वास के कारण धरातल पर डैमेज कंट्रोल करने को लेकर एक्टिव नहीं हुई। केवल यही गलतफहमी रही कि मुख्यमंत्री का गृह निर्वाचन क्षेत्र है, लिहाजा सीएम फैक्टर के बूते ही चुनाव जीता जा सकता है।
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बेशक ही कारगिल बयान पर प्रतिभा सिंह ट्रोल हुई हो, लेकिन धरातल की तस्वीर कुछ ओर ही थी। वो बात, सही चरितार्थ हुई कि जो दिखता है असल में वो नहीं होता। चार निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी खेल बिगाड़ा। 20,431 मतदाता ऐसे थे, जिन्होंने भाजपा व कांग्रेस को नकारा। कांग्रेस की प्रत्याशी 7490 के अंतर से जीती। 20,431 में से भाजपा अगर 8 हजार मतदाताओं का ही जुगाड़ कर लेती तो परिणाम कुछ ओर होता। हालांकि, सीएम का कहना है कि हार के कारणों की समीक्षा होगी। चुनाव हारने वाली पार्टी का अक्सर यही रटा रटाया जवाब होता है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुख्यमंत्री ने बेबाक तरीके से इस बात को भी स्वीकार किया है कि महंगाई भी वजह बनी। अब ये भी सवाल उठता है कि क्या भाजपा ने महंगाई के मुद्दे को हार के बाद स्वीकार किया है या फिर भाजपा पहले से जानती थी कि महंगाई के कारण शर्मनाक हार का सामना करना पड़ेगा।
फतेहपुर…
कांगड़ा के इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ये कैसे भूल गई कि कांग्रेस को सहानुभूति भी मिल सकती है। पूर्व ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद कांग्रेस ने बेटे भवानी सिंह को ही मैदान में उतारने का फैसला लिया था। सहानुभूति के साथ-साथ वो अपनी काबलियत के दम पर कांग्रेस के किले को बरकरार रखने में सफल हुए, जबकि भाजपा के किले में डाॅ. राजन सुशांत ने सेंध लगा ली।
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राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो निर्दलीय प्रत्याशी डाॅ. राजन सुशांत को कम आंका गया। वो अकेले ही अपने दम पर 22.64 % वोट हासिल करने में सफल हो गए। ऐसे भी क्यास हैं कि भाजपा ने डॉ. सुशांत को 5 से 7 हजार के बीच आंका था। नतीजे के बाद ये साफ जाहिर है कि डाॅ. राजन सुशांत ने भाजपा के खेमे में जमकर सेंध लगाई। डाॅ. सुशांत को 12,927 मत प्राप्त हुए, वहीं भाजपा को 18,660 वोट पड़े। कांग्रेस को 24,449 मत हासिल हुए।
कांग्रेस प्रत्याशी ने 42.82 प्रतिशत वोट हासिल किए। जानकारों का कहना है कि अगर भाजपा डाॅ. राजन सुशांत को गंभीरता से लेती तो नतीजे की हवा अपनी तरफ मोड़ सकती थी। फिर वही बात आती है कि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल अक्सर ही अति आत्मविश्वास के कारण बाजी को हार जाता है।
जुब्बल-कोटखाई…
ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने इस निर्वाचन क्षेत्र में गहरी चाणक्य नीति चलाने की कोशिश की। चेतन बरागटा का टिकट काटकर मतदाताओं को ये बताने की कोशिश की कि पार्टी परिवारवाद के खिलाफ है। मगर जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ता गया, भाजपा बेनकाब होने लगी। मतदाताओं को ये लगने लगा कि एक तरफ तो टिकट काटा है, मगर दूसरी तरफ स्पोर्ट की जा रही है। अलग-अलग चरणों में संगठन के पदाधिकारियों को निष्कासित किया जाता रहा।
भाजपा प्रत्याशी नीलम सरईक बगैर संगठन के ही मैदान में थी। भाजपा ये कैसे भूल गई कि संगठन व कर्मठ कार्यकर्ताओं के बगैर चुनाव नहीं जीता जा सकता। या फिर ये भाजपा की सोची समझी रणनीति थी। यहां कांग्रेस के प्रत्याशी मामूली अंतर से नहीं, बल्कि सम्मानजनक मतों से चुनाव जीते हैं। ध्यान रहे, इस चुनाव में मतदाताओं ने कांगड़ा व शिमला में कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ वोट नहीं डाली है, बल्कि भवानी सिंह पठानिया व रोहित ठाकुर को चुनाव जितवाए हैं।
हालांकि, इस हलके में भाजपा के तीसरे नंबर पर रहने की प्रबल संभावनाएं पहले ही नजर आने लगी थी, लेकिन भाजपा मात्र 4.67 प्रतिशत पर सिमट जाएगी, ये अवश्य ही आश्चर्यचकित कर देने वाला था। रोहित ठाकुर को 29,995 मत पड़े। वहीं चेतन सिंह बरागटा ने 23,662 मत प्राप्त किए। भाजपा की नीलम सरईक मात्र 2644 पर सिमट गई।
अर्की…
यहां भाजपा ने तेजतर्रार डाॅ. राजीव बिंदल को कमांडर बनाकर उतारा। साथ में स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. राजीव सैजल भी थे। यहां भी नोटा को 2.69 प्रतिशत वोट पड़े हैं। आंकड़ा 1626 का था। भाजपा ये कैसे भूल गई कि पूर्व विधायक गोविंद शर्मा इस हलके के चुनाव प्रचार में अहम भूमिका निभा सकते हैं। भाजपा इसी गलतफहमी में रही कि शर्मा ने बगावत नहीं की है। कांग्रेस प्रत्याशी का ताल्लुक ब्राह्मण समुदाय से है, वहीं शर्मा भी इसी बिरादरी से हैं। यानि, ब्राह्मणों के वोट बैंक में भाजपा के लिए शर्मा बखूबी सेंधमारी कर सकते थे। संभवतः भाजपा ये भी गलती कर बैठी कि कैबिनेट मंत्री के अलावा डाॅ. राजीव बिंदल वहां हैं। इसके अलावा खुद मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रचार किया।
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भाजपा प्रत्याशी रतन सिंह पाल ने 2017 के चुनाव में 44.34 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। इस बार ये आंकड़ा 45.5 प्रतिशत का रहा, यानि प्रदेश में भाजपा के शासन का कोई असर नहीं था। वहीं, संजय अवस्थी ने 2012 के चुनाव में 26.47 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। इस चुनाव में इसे डबल कर जीत हासिल कर ली। भाजपा को 30 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। इस हलके में भाजपा ने विगत के आंकड़ों को भी हलके में लिया।