नाहन, 26 अक्तूबर : हिमाचल के शिलाई उपमंडल के रिमोट इलाके की पंचायत बालीकोटी के बोबरी गांव में जन्मी एक बेटी ने अपनी मां के सपनों को साकार किया है। एक वक्त था, जब घर पर इतने संसाधन (Resources) नहीं थे कि परिवार बेटी को उच्च शिक्षा (High Education) दिलवा सकता। लिहाजा, मां ने शिलाई के बाजार में आइसक्रीम (Ice cream) बेचकर अपनी होनहार बेटी की पढ़ाई में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। हालांकि काफी समय पहले अपनी काबलियत के बूते बेटी स्वावलंबी (Independent) हो गई थी, लेकिन 23 अक्तूबर 2021 को वो पल आए, जब बेटी को पीएचडी (PhD) की डिग्री मिल गई। वो राधा से डाॅ. राधा हो गई।
माता-पिता के अलावा डाॅ. राधा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने गाइड व रजिस्ट्रार (Guide & Registrar) प्रो. सुनील पुरी व कुलाधिपति (Chancellor) प्रो. पीके खोसला को दिया है। उल्लेखनीय है कि आज की डाॅ. राधा ने दसवीं तक की पढ़ाई (Primary Education) शिलाई से हासिल की। वहीं, जमा दो पढ़ाई शिमला के पोर्टमोर स्कूल से पूरी की। आरकेएमवी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई करने के बाद (HNBGU (Hemvati Nandan Bahuguna University) केंद्रीय विश्वविद्यालय उत्तराखंड से एमएससी (M.Sc ) की शिक्षा हासिल की थी। बेटी की इस कामयाबी पर मां विद्या देवी का सीना फक्र से चौड़ा हो गया है।
शोध का भी शानदार विषय…
शूलिनी विश्वविद्यालय में दाखिला मिलने के बाद ही डाॅ. राधा ने अपना लक्ष्य (Target) निर्धारित कर लिया था। वो, हिमाचल में जंगली पौधों के चिकित्सीय गुणों (therapeutic properties) का ज्ञान हासिल करना चाहती थी। बचपन में एक मर्तबा डाॅ. राधा के मन में विचार कौंधा था कि आखिर जंगलों व दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के पास ऐसी क्या दवा होती है कि वो अस्पतालों में नहीं आते। अपने सपने को साकार करने के लिए डाॅ. राधा ने ऊंचाई व मध्यम ऊंचाई के पहाड़ों में चरवाहों के साथ समय बिताया।
पौधों के औषधीय गुणों का अध्ययन करने के लिए जातीय समूहों के साथ लंबा समय बिताया। एक लड़की के लिए जंगलों में रहकर रिसर्च (Research) करना आसान नहीं था, लेकिन वो डगमगाई नहीं। ऐसा बताया जाता है कि दुनिया भर में दवाओं में इस्तेमाल होने वाले लगभग 70 हजार पौधों की प्रजातियां (Species) उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें से कई ऐसी प्रजातियां भी हैं, जो आज भी इंसान की पहुंच से दूर हैं। साथ ही पारंपरिक ज्ञान का हस्तांतरण अगली पीढ़ी को नहीं हो पा रहा।
ये बोली…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में डाॅ. राधा ने कहा कि अगली पीढ़ियों को ज्ञान का हस्तांतरण (transfer of knowledge) जरूरी है। हिमालय जैव विविधता व औषधीय पौधों (Medicinal Plants) का अनुसंधान व प्रलेखन का इस्तेमाल सतत किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अब तक 40 कॉपीराइट (Copyright) , 51 शोध पत्र (Research Paper) व दो पेटेंट (Patent) पंजीकृत (Registered) हो चुके हैं, जो स्कोपस व यूजीसी (Scopus and UGC) सूचीबद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। डाॅ. राधा ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद मुंबई (Indian Council of Agricultural Research Mumbai) के डाॅ. मनोज कुमार की मदद से भी काफी कुछ सीखने को मिला है। उन्होंने कहा कि हमेशा ही मन में एक जिज्ञासा रहती थी कि जंगली पौधों के साथ जानवर खुद को कैसे रखते हैं, क्योंकि वो भी बीमार तो होते ही हैं।
ऐसे ही नहीं मिला मुकाम…
डाॅ. राधा ने ये मुकाम ऐसे ही हासिल नहीं किया है। वो, रोजाना 14 से 15 घंटे तक लैब में ही बिताती थी। भूख-प्यास की कोई परवाह नहीं करती थी। शूलिनी विश्वविद्यालय (Shoolini University) ने डाॅ. राधा को प्रयोगशाला की वो तमाम सुविधाएं उपलब्ध करवाई, जिसके बगैर रिसर्च पूरी नहीं होती। वो बताती हैं कि कई मर्तबा तो लगातार दो दिन तक भी प्रयोगशाला (Laboratory) में अपने कार्य में मशगूल रहती थी। वैश्विक महामारी के दौरान डाॅ. राधा ने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली। इसी का नतीजा है कि आज क्वालिटी पब्लिकेशन (Quality Publication) कर पाई है।
अब सपना ये है कि दुनिया भर में वो अपनी रिसर्च को जारी रखे। इसके लिए जर्मनी, फ्रांस, यूएसए, रशिया, पोलैंड व इटली इत्यादि देशों के संस्थानों के साथ सहकार्यता (collaboration) भी कर चुकी है। उन्होंने कहा कि ये भी खुशी की बात है कि भारतीय अनुसंधान परिषद के वैज्ञानित डाॅ. मनोज कुमार का सहयोग मिल रहा है। वो बताती हैं कि डाॅ. मनोज कुमार भारत के एक नामी वैज्ञानिक हैं।
उपलब्धियां….
शूलिनी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफैसर (Assistant Professor) के पद पर तैनात डाॅ. राधा की सफलताओं (Successes) का सिलसिला 2016 के बाद ही शुरू हो गया था। ये वो तमाम उपलब्धियां हैं, जो राधा ने पीएचडी के दौरान हासिल की। 2019 में युवा महिला वैज्ञानिक (Young Female Scientist) पुरस्कार हासिल किया। एक साल बाद ही युवा वैज्ञानिक अवार्ड पर भी कब्जा किया। अब तक यूजीसी से संबद्ध जर्नल्स (Journals) में डाॅ. राधा के 51 शोधपत्र प्रकाशित हो चुके है। इसके अलावा वो अपने रिसर्च के माध्यम से 40 काॅपीराइटस भी हासिल कर चुकी हैं। दो पेटेंट भी हैं।
पीएचडी के दौरान डाॅ. राधा ने दुनिया के 17 देशों के विश्वविद्यालयों से ऑनलाइन कोर्स भी किए। शोध कार्यों के लिए डाॅ. राधा ने किन्नौर के ग्लेशियर रीजन, रकछम व सांगला इत्यादि में डेरे डाले। इसके अलावा रिसर्च की कर्मभूमि शिमला व सिरमौर में भी रही। यानि, समुद्रतल से 1500 फीट की ऊंचाई से लेकर 18 हजार फीट की ऊंचाई तक शोध के दौरान वो न घबराई न ही हौंसला छोड़ा। इसी का नतीजा है कि आज डाॅ. राधा का डंका बज रहा है।