नाहन, 23 अक्तूबर: चंद रोज पहले कंधों पर चढ़कर घर पहुंची गौमाता का निधन हो गया है। डेढ़ किलोमीटर की खतरनाक पगडंडी पर करीब पांच क्विंटल वजनी गाय को कंधों पर पालकी में उठाकर घर तक पहुंचाना आसान नहीं था। इस दौरान न केवल हरिपुरधार के निकट बरयाल्टा गांव के लोगों ने हेला प्रथा का उदाहरण पेश किया था, साथ ही गौमाता के प्रति सही मायनों में भक्ति दिखाने का साक्षात व सजीव उदाहरण पेश किया था। घर पहुंचने के बाद गाय की दिन-रात सेवा हुई। साथ ही डाॅक्टरी इलाज में भी कोई कोर कसर नहीं रखी गई, मगर ढांक से गिरकर पूरी तरह जख्मी गाय को बचाया नहीं जा सका।
उल्लेखनीय है कि गौमाता की सेवा को लेकर ग्रामीणों का एक वीडियो भी सोशल मीडिया में जमकर वायरल हुआ था। इसमें साफ तौर पर ये बात सामने आ रही थी कि कैसे गाय का जीवन बचाने के लिए गांव के लोग एकजुट हो गए हैं। एक तरफ हर रोज घायल व नकारा पशुओं को देखकर हर कोई आंखें चुरा लेता है, लेकिन बरयाल्टा गांव के लोगों ने गौमाता के प्रति प्रगाढ़ आस्था का परिचय देते हुए समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया था। साथ ही ये भी उदाहरण पेश किया था कि चाहे मनुष्य हो, चाहे मवेशी, मदद करना ही सच्ची मानवता है।
उल्लेखनीय है कि गिरिपार के इलाके के कई गांवों में आज भी एक-दूसरे को संकट से उबारने के लिए हेला प्रथा जारी है। गाय के निधन से बरयाल्टा के कूपड के रहने वाले संजय ठाकुर की आंखें भी नम हैं। साथ ही उन लोगों ने भी कुदरत के फैसले को स्वीकार कर लिया है, जिनके कंधों पर दुल्हन की तरह घायल अवस्था में गाय घर पहुंची थी। उल्लेखनीय है कि गौवंश की रक्षा को लेकर पांवटा साहिब में शनिवार शाम को ही सचिन ओबराॅय का अनिश्चितकालीन अनशन भी समाप्त हुआ है।
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उधर, संगड़ाह बीडीसी के चेयरमैन मेला राम शर्मा ने कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण था कि गाय का घर पहुंचने के दो दिन बाद निधन हो गया है। लेकिन ग्रामीणों ने अपने मवेशियों के प्रति प्रेम का जो प्रदर्शन किया हैै, उसकी चारों तरफ प्रशंसा हो रही है। उन्होंने बताया कि गाय घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर पहाडी से गिरकर घायल हो गई थी। टांग में चोट लगने के कारण वो उठ नहीं पा रही थी। जब दो दिन तक गाय सड़क पर ही कराहती रही तो मालिक संजय ने ग्रामीणों से मदद का आग्रह किया था।
गाय की दयनीय हालत को देखकर ग्रामीणों ने एक डोरीनुमा विशाल ढांचा तैयार किया। इस पर गाय को बिठाकर घर तक पहुंचाने का निर्णय लिया गया था। पांच क्विंटल से अधिक वजन की गाय को उबड-खाबड़ रास्ते से घर पहुंचाना चुनौतीपूर्ण था। लेकिन ग्रामीणों के जज्बे ने हार नहीं मानी। कुल मिलाकर भले ही गौमाता ने संसार को त्याग दिया है, लेकिन ग्रामीणों का अनुकरणीय उदाहरण गौ भक्तों के लिए हमेशा प्रेरणा रहेगा।