सुंदरनगर, 16 अक्तूबर : मंडी जिला के प्रसिद्ध सामूहिक भोज ‘धाम’ की राजा-महाराजाओं के जमाने से लेकर आधुनिक हिमाचल तक अपनी अलग ही पहचान है। वहीं धाम के दौरान लजीज व्यंजन परोसने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हरी पत्तल का महत्व सबसे ऊपर है। धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को समेटे देवभूमि हिमाचल के कई इलाकों में पत्तों से बनी हरी पत्तल में खाना परोसने की परंपरा आज भी जारी है। टौर से बनने वाली इस पत्तल में सामाजिक समरसता के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।
पहाड़ की यह पत्तल टौर नामक बेल के पत्ते से बनती है। यह बेल मध्यम ऊंचाई वाले मंडी, कांगड़ा व हमीरपुर जिले में ही पाई जाती है। तो जानते है कि टौर से बनी पत्तल के क्या-क्या हैं फायदे और इसे कैसे बनाया जाता है।
पर्यावरण मित्र थाली के तौर पर उपयोग में लाई जाती पत्तलवर्तमान में प्लास्टिक से बने ढोने व पत्तल पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रहे हैं। विवाह-शादियों व खास समारोहों में हजारों लोगों को पत्तल पर ही खाना परोसा जाता है। पत्तल पहाड़ की ऐसी थाली है, इसमें खाना खाने का मजा ही कुछ और है। जगंल में टौर नामक बेल में लगे पत्तों की यह पत्तल पर्यावरण मित्र थाली भी है। पत्तल के बिना मंडयाली धाम का स्वाद तो फीका रह जाता है।
द्रंग विधानसभा क्षेत्र के गांव बिहनधार के लोग करते हैं पत्तल का कारोबार
मंडी जिला के द्रंग विधानसभा क्षेत्र के गांव बिहनधार में लोग पिछले कई वर्षों से पत्तल का कारोबार करते हैं। इस गांव के लोग जंगलों से टौर की बेल से पत्ते तोड़कर और बांस के तिनकों से पत्तों को जोड़कर पत्तल का निर्माण करते हैं। इस प्रकार से पत्तल बनाकर ग्रामीणों द्वारा मंडी शहर में लोगों को बेचने के लिए गांधी चौक पर निश्चित स्थान पीपल के थड़े पर पहुंचाया जाता है।
कैसे होता है पत्तल का निर्माण पत्तल निर्माण को लेकर ग्रामीण सुबह जंगल की ओर निकल जाते हैं और टौर के झुरमुट से पत्तों समेत छोटी-छोटी टहनियों को निकाल लेते हैं। इसका बोझ पीठ पर उठाकर कई किलोमीटर की दूरी पैदल तय करके घर लाया जाता है। फिर पत्तों को अलग करके बांस की तीली से उन्हें जोड़ा जाता है। एक पत्तल के लिए पांच से सात पत्तों को जोड़ा जाता है। इन पत्तलों के पचास और एक सौ की तहें बनाई जाती है। पत्तलें तैयार होने के बाद उन्हें व्यापारी और निर्माता द्वारा लोगों को बेचा जाता है। एक अनुमान के अनुसार पत्तलों का यह कारोबार दो से तीन करोड़ रुपये सालाना तक पहुंच जाता है।
पत्तल निर्माताओं की कोरोना संक्रमण ने बढ़ाई मुश्किलें
कोरोना संक्रमण को लेकर लगाए गए लॉकडाउन के दौरान पत्तल निर्माताओं भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। सरकार द्वारा धार्मिक और समाजिक आयोजन पर रोक लगा देने के कारण सामूहिक भोज भी बंद कर दिए गए। इससे पत्तल की ब्रिक्री बंद हो गई और अपनी अजीविका के लिए इस व्यवसाय पर निर्भर लोगों पर उनके परिवार सहित समस्याओं का पहाड़ टूट गया। अब अनलॉक होने के बाद बड़े आयोजन शुरू होने से पत्तल निर्माताओं ने राहत की सांस ली है। वही पत्तल निर्माताओं ने प्रदेश सरकार से उन्हें राहत पैकेज प्रदान करने की भी अपील की है।
टौर की पत्तल की क्या है खूबियां
टौर की पत्तल को लेकर कृषि विज्ञान केंद्र मंडी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पंकज सूद ने कहा कि टौर की बेल कचनार परिवार से ही संबंधित है और इसमें औषधीय गुण को लेकर भी कई तत्व पाए जाते हैं। इससे भूख बढ़ाने में भी सहायता मिलती है। एक तरफ से मुलायम होने वाले टौर के पत्ते को नैपकिन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। टौर के पत्ते शांतिदायक व लसदार होते हैं। यही वजह है इनसे बनी पत्तलों पर भोजन खाने का आनंद मिलता है। अन्य पेड़ों के पत्तों की तरह टौर के पत्ते भी गड्ढे में डालने से दो से तीन दिन के अंदर गल सड़ जाते हैं। लोग इसका उपयोग खेतों में खाद के रूप में करते हैं।